चलते हुए वर्ग से बाहर निकाल दिया जाना कोई मामूली बात नहीं होती। वह भी उस उम्र में जब आप रजनीकांत की शैली में सिगरेट पीते हों और शाहरुख खान की एक भी फिल्म मिस नहीं करते हों। लेकिन उस दिन जब मैं अनुशासन तोड़ने के जुर्म में क्लास से बाहर निकाल दिया गया तो मुझे बहुत खुशी हुई और मैं बिना इस बात का जोड़-तोड़ किए खुशी-खुशी अध्ययन-कक्ष से बाहर हो लिया कि इस बेइज्जती के बाद सहपाठी-बिरादरी मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे। कि सहपाठी खासकर लड़की-सहपाठी के बीच मेरी छवि कितनी बिगड़ेगी, आदि- आदि !!
वर्ग से निकलते ही पहुंच गया उन संपेरों के बीच। अध्ययन-कक्ष की खिड़कियों से मैंने उनके करतब देखे थे। वह आया। आकर खिड़की के बगल के उस बरगद पेड़ के नीचे कुछ ढ़ूंढने लगा। मानो वहां उसका कोई समान गिर गया हो और जैसे उसे विश्वास हो कि वह वस्तु आसपास ही कहीं होगी। पांच मिनटों तक वह पेड़ की जड़ के आसपास कुछ खोजता रहा और उसके बाद उसके पांव एवं आंखें स्थिर हो गये। थोड़ी देर देर बाद उसके हाथ में एक जिंदा सांप का पूंछ था, जिसे उसने अपनी गिरफ्त में ले लिया था। मैं भारी उत्सुकता में उसे देखता रहा और इस कदर उत्तेजित हुआ कि अंततः शिक्षक ने मुझे क्लास से बाहर निकाल दिया। लीव द क्लास नाउ , मीट मी इन माय चैंबर आफ्टर द क्लास ब्रेक का फरमान सुना दिया था प्रोफेसर साहेब ने।
क्लास से निकलकर मैं सीधे उस संपेरे के पास पहुंचाजो सांप पकड़कर विश्वविद्यालय के काशी-विश्वनाथ मंदिर के गेट पर अवस्थित दूकान में चाय पी रहा था। दुकानदार के सवालों का जवाब दिए बगैर जिसका सवाल अपनी जगह बहुत तार्किक था कि आज चाय पीने मैं अकेले कैसे पहुंच गया। मित्रगण कहां हैं ? मैंने उसके सवालों को अनसुना कर दिया और संपेरों के नजदीक जाकर उससे पूछ डाला।
तुम्हें कैसे पता चला कि उस पेड़ के नीचे सांप रहता है ? पहले तो तुम विश्वविद्यालय परिसर में कभी दिखाई नहीं पड़े। हमलोग उस पेड़ के नीचे हर दिन खड़े होते हैं, लेकिन कभी कोई सांप नहीं दिखा न ही इसका कोई एहसास हुआ। संपेरा ने मुझे इस तरह देखा जैसे मैं कोई चार साल का बच्चा हूं और बेतुका सवाल पूछ रहा हूं। लेकिन मेरी उत्सुकता और उसकी चुप्पी के बीच धीरे-धीरे एक गुस्सा जन्म ले रहा थाऔर संपेरा को इस बात का अंदाजा लग चुका था कि अगर कुछ देर और उसने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया तो वह एक जोरदार तमाचा खा सकता है। शायद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का परिसर और एक छात्र के बिगड़ते मूड के मायने उसे समझ में आ गया था।
इसलिए उसके भाव गंभीर हो गये। उसने मेरे सवाल का जवाब भी सवाल में ही दिया। गिद्ध को मरे पशुओं की खबर कैसे हो जाती है? सांप को चूहा का पता कैसे चल जाता है ? शहर से अनजान नेता को कैसे मालूम रहता है कि किस मोहल्ले-टोले में दंगे फैलाये जा सकते हैं। बाबू, हर किसी को अपने शिकार का पता होता है। शिकारी बनोगे तो जान जाओगे। सचमुच उस संपेरे ने बड़ी मार्के की बात कही थी। शिकारी वही जो शिकार को दूर से ही पहचान ले। हां, यह बात अलग है कि कोई सांप का शिकार करता है तो कोई समाज का। संपेरा के पास एक टोकरी और एक लाठी मात्र होती है जबकि नेताओं के पास अनगिनत औजार होते हैं । विश्वास न हो तो एकांत में बैठकर राज ठाकरे प्रकरण पर आधा घंटा तक विचार कीजिए।
वर्ग से निकलते ही पहुंच गया उन संपेरों के बीच। अध्ययन-कक्ष की खिड़कियों से मैंने उनके करतब देखे थे। वह आया। आकर खिड़की के बगल के उस बरगद पेड़ के नीचे कुछ ढ़ूंढने लगा। मानो वहां उसका कोई समान गिर गया हो और जैसे उसे विश्वास हो कि वह वस्तु आसपास ही कहीं होगी। पांच मिनटों तक वह पेड़ की जड़ के आसपास कुछ खोजता रहा और उसके बाद उसके पांव एवं आंखें स्थिर हो गये। थोड़ी देर देर बाद उसके हाथ में एक जिंदा सांप का पूंछ था, जिसे उसने अपनी गिरफ्त में ले लिया था। मैं भारी उत्सुकता में उसे देखता रहा और इस कदर उत्तेजित हुआ कि अंततः शिक्षक ने मुझे क्लास से बाहर निकाल दिया। लीव द क्लास नाउ , मीट मी इन माय चैंबर आफ्टर द क्लास ब्रेक का फरमान सुना दिया था प्रोफेसर साहेब ने।
क्लास से निकलकर मैं सीधे उस संपेरे के पास पहुंचाजो सांप पकड़कर विश्वविद्यालय के काशी-विश्वनाथ मंदिर के गेट पर अवस्थित दूकान में चाय पी रहा था। दुकानदार के सवालों का जवाब दिए बगैर जिसका सवाल अपनी जगह बहुत तार्किक था कि आज चाय पीने मैं अकेले कैसे पहुंच गया। मित्रगण कहां हैं ? मैंने उसके सवालों को अनसुना कर दिया और संपेरों के नजदीक जाकर उससे पूछ डाला।
तुम्हें कैसे पता चला कि उस पेड़ के नीचे सांप रहता है ? पहले तो तुम विश्वविद्यालय परिसर में कभी दिखाई नहीं पड़े। हमलोग उस पेड़ के नीचे हर दिन खड़े होते हैं, लेकिन कभी कोई सांप नहीं दिखा न ही इसका कोई एहसास हुआ। संपेरा ने मुझे इस तरह देखा जैसे मैं कोई चार साल का बच्चा हूं और बेतुका सवाल पूछ रहा हूं। लेकिन मेरी उत्सुकता और उसकी चुप्पी के बीच धीरे-धीरे एक गुस्सा जन्म ले रहा थाऔर संपेरा को इस बात का अंदाजा लग चुका था कि अगर कुछ देर और उसने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया तो वह एक जोरदार तमाचा खा सकता है। शायद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का परिसर और एक छात्र के बिगड़ते मूड के मायने उसे समझ में आ गया था।
इसलिए उसके भाव गंभीर हो गये। उसने मेरे सवाल का जवाब भी सवाल में ही दिया। गिद्ध को मरे पशुओं की खबर कैसे हो जाती है? सांप को चूहा का पता कैसे चल जाता है ? शहर से अनजान नेता को कैसे मालूम रहता है कि किस मोहल्ले-टोले में दंगे फैलाये जा सकते हैं। बाबू, हर किसी को अपने शिकार का पता होता है। शिकारी बनोगे तो जान जाओगे। सचमुच उस संपेरे ने बड़ी मार्के की बात कही थी। शिकारी वही जो शिकार को दूर से ही पहचान ले। हां, यह बात अलग है कि कोई सांप का शिकार करता है तो कोई समाज का। संपेरा के पास एक टोकरी और एक लाठी मात्र होती है जबकि नेताओं के पास अनगिनत औजार होते हैं । विश्वास न हो तो एकांत में बैठकर राज ठाकरे प्रकरण पर आधा घंटा तक विचार कीजिए।
10 comments:
बहुत पते की बात बतायी। शिकारी बनोगे तो जान जाओगे।
Sahmat hoon aapse. Kya aap abhi bhi BHU mein hain?
abhishek jee ek lamba antral ho gaya . yah bat 9 varsha pahle kee hi.
ranjit
bahut acchi rachana
dear humne bhi aaj hi saand pala he
do visit my post
regards
एय रणजीत भाई....बात तो आज आपने बड़ी कड़ी कह दी....हर शिकारी को अपने शिकार का पता होता है.....बात आपकी है....कि सपेरे की....मगर है इतनी गहरी की क्या बताऊँ... तो क्या हमारे इर्द-गिर्द शिकारी ही शिकारी घूम रहे है......??हम किसी भी क्षण किसी का शिकार बन सकते हैं...??तो ग़लत लोगों के हाथों शिकार बनने से पूर्व हम उनका ही शिकार क्यों ना कर लें....!!क्या ग़लत लोगों के ख़िलाफ़ हम साथ-साथ हो सकते है.....??या कि यह सब इक सपना ही रह जायेगा.....??
कहीं पढ़ा था:
सपेरे बाम्बियों पे बीन लिए बैठे हैं....
साँप चालाक हैं, दूरबीन लिए बैठे हैं.
:)
सपेरे बाम्बियों पे बीन लिए बैठे हैं....
साँप चालाक हैं, दूरबीन लिए बैठे हैं.
समीर भाई ....आप भी ना...कमाल करते हैं......
Bhootnath bhai, Ham log shikaree shayad nahin ban paayenge lekin ham shikar-sanskritee ke khilaf aakhiree dam tak rahenge. achhe log ek sath aayen to yah ladaaee aasan ho saktee hai. mujhe lagta hi achhe log hi antatah jitenge aur hamara sapna jaroor pura hoga.
aapka aabhar.
Ranjit
एय रणजीत भाई....मैं अपनी पूरी ताकत और सच्चाई के साथ आपके.....हम सबके साथ हूँ....और जब सारे पीछे भी हट जायेंगे तब भी मैं इसको अपने कन्धों पर उठाये हुए मिलूंगा.....ये मेरा ढंग है....जिन्दगी का.....
rajiv thepra....ranchi.....
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