इतना तनहा रहना भी अच्छा नहीं है....
सबसे जुदा रहना भी अच्छा नहीं है....!!
हर बात पर हैरत से आँखें फैला दे
आदमी अब इतना भी बच्चा नहीं है....!!
खुदा के नाम पर दे खुदा को ही गच्चा....
पक गया है ये अक्ल का कच्चा नहीं है..!!
आदमी के साथ मिल-बैठ मैंने जाना है ये
आदमी में अब रत्ती-भर भी बच्चा नहीं है..!!
आओ सब मिलके मुहब्बत को दफन कर दें
कि इसके बगैर तो अब कोई रास्ता नहीं है !!
तू आए और तेरे आते ही तेरे साथ चल दे...?
ओ कज़ा,"गाफिल"अभी इतना सस्ता नहीं है !!
5 comments:
हाँ भाई, फुर्सत किसको है.
बढ़िया !
घुघूती बासूती
सुन्दर कविता, बधाई।
I liked the second couplet.
आप सबों को इस भूत का हार्दिक प्रेम.....भटकना तो सबकी नियति है...इंसान हों चाहे भूत....मगर सब प्यार से रहें इतना भी बहुत है...जो पता नहीं कब जाकर सम्भव होगा....
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