Monday, November 17, 2008

कांटे...फूल...आदमी....!!

हम सब एक साथ ही पुराने भी हैं,और नए भी....शरीर से नए...मगर मान्यताओं से पुराने...समय के साथ थोडा नए होते जाते... शरीर से थोड़ा पुराने होता जाते...बाबा आदम जमाने की रुदिवादिताएं भी हममे हैं..और सभ्य भी हम...हम क्या हैं..हम क्यूँ हैं...हम कौन हैं...हमारे वुजूद का मतलब क्या है...??हम कभी भी विचार नहीं करते...नहीं करते ना....!!
कांटे..फूल...आदमी....!!

...आदमी का तो काम ही यही है भाई....पहले नागफनी उगाना...फ़िर उसके काँटों में ख़ुद ही फंस भी जाना...बेशक उसके बाद भी वो कुछ नहीं सीखता....फूलों से भरे पौधों में से फूल तोडे जाते हैं....और कांटे वहीं-के वहीं....फूल फ़िर उगते हैं..फिर तोड़ लिए जाते हैं......टूटे हुए फूल आदमी के पास जाकर मुरझा जाते हैं....फूल ख़त्म हो रहे हैं....और कांटे बढ़ते जा रहे....और आदमी का दमन....खून से तर......!!

1 comment:

seema gupta said...

टूटे हुए फूल आदमी के पास जाकर मुरझा जाते हैं....फूल ख़त्म हो रहे हैं....और कांटे बढ़ते जा रहे....और आदमी का दमन....खून से तर......!!
" what to say m speechless....."

Regards