Friday, December 19, 2008

आदमी की इज्ज़त ही कुछ और होती है......!!!


भई बनी हुई चीजों की जीनत कुछ और होती है......
और टूटी हुई चीजों की कीमत कुछ और होती है.....!!
मर-मर कर जीना तो बहुत ही आसान है ऐ दोस्त....
जिंदादिल लोगों की तो हिम्मत कुछ और होती है.....!!
एक ही बार तो आता है आदम यहाँ धरती पर.....
बनकर रहे आदम ही तो रिवायत कुछ होती है....!!
हम गाफिल लोग ही रहते हैं आदतों के बाईस........
और फकीरों की तो हाजत ही कुछ और होती है...!!
जो "धन"को जीते हैं उनका चेहरा होता है कुछ और .......
प्यार बांटने वालों की तो लज्जत ही कुछ और होती है.....!!
लोग जाने क्या-क्या "फिजूल"चाहते हुए ही मर जाते हैं.....
जिन्दगी जीने वालों की तो चाहत ही कुछ और होती है.....!!
जब हम सिर्फ़ अपने लिए जीते हैं तो गम ही मिलता है.....
सबपे जीते इंसा पे अल्ला की इनायत कुछ और होती है....!!
धारा के साथ जीने को तो सब जीते हैं "गाफिल"
इसके ख़िलाफ़ वालों की ताकत कुछ और होती है.....!!

6 comments:

Udan Tashtari said...

सही है-अभी अभी इसे भूतनाथ पर पढ़ा.

Udan Tashtari said...

सॉरी..बात पुरानी है..पर :)

डॉ .अनुराग said...

सही बात है....

रंजना said...

sahi aur sundar baat..

नदीम अख़्तर said...

और माफी के स‌ाथ आज की राजनीति की चाटूकारिता पर दो लाइनें यहां शाया कर रहा हूं...

तमाशबीन स‌नमों की बुतपरस्ती बहुत हो चुकी भूतनाथ
महमूद-ओ-अय्याज की तो इबादत ही कुछ और होती है

shelley said...

achchha likha hai.