हर इंसान के सीने में एक धड़कता हुआ दिल है. हर दिल को दर्द होता है. यह दर्द किसी को अपना बनाने, किसी का लव पाने के लिए होता है. हर दिल की अपनी कहानी होती है. हर इंसान के अपने सपने होते हैं. लेकिन नार्मली हम किसी कॉमन परसन के सपनों को नहीं समझ पाते. उसके दिल और दर्द को नहीं देख पाते.
फिल्म 'रब ने बना दी जोड़ी' का शाहरूख खान ऐसे ही एक इंसान के दिल और दर्द को सामने लाता है. राजकपूर की फिल्मों में आम इंसान के सपनों को सामने लाने की कोशिशेें होती थीं. लेकिन नार्मली कॉमर्शियल फिल्मों का नायक प्रायः कोई आम इंसान नहीं बल्कि खास होता है. अगर कोई नायक किसी आम इंसान के रूप में सामने आता भी है तो कुछ ही देर में वह खास आदमी में बदल जाता है. यानी अगर उसे लव करना है या सपने देखने हैं तो उसे स्पेशल परसन बनना ही होगा. आम इंसान का काम तो मेहनत मजूरी करना, फेमिली की रिस्पांसिबिलीटी संभालना है. अगर कोई कॉमन वुमन है तो कीचेन और चिल्डे्रन को संभालना ही उसकी पूरी लाइफ है. लव करना या सपने देखना एक चीज है और रोजी-रोटी चलाना दूसरी चीज. दोनों चीजें भला एक ही आदमी कैसे कर सकता है?
ऐसा माना जाता है कि आम आदमी की जिंदगी में रोमांस के लिए समय कहां? मेरे एक मित्र काफी प्राउडली कहा करते- 'यार हमें तो ये सेंटिमेंट, वेंटिमेंट समझ में नहीं आता. हमें इसके लिए फुरसत कहां है.' हालांकि यह स्टेटमेंट वह काफी सेंटिमेंटल होकर दिया करते थे. उनकी मासूमियत बता देती थी कि वह कितने सेंटिमेंटल और नरम दिल इंसान हैं. दूसरों की मदद के लिए वह हर वक्त तैयार मिलते. उनके धड़कते हुए दिल को देखना और समझना बेहद आसान था. लेकिन शायद ही कभी किसी ने इसे समझने की कोशिश की हो.
हम अपने आसपास के आम इंसानों के दिल और उसके दर्द को देखने या समझने की कोशिश नहीं करते. यही कारण है कि एक आम इंसान के रूप में शाहरूख खान एक नीरस और अपने काम से मतलब रखने वाला नजर आता है, वहीं अपने हीरोटिक रोल में एक हंसमुख स्मार्ट नौजवान बन जाता है. एक ही आदमी. फर्क सिर्फ मूंछों या चश्मे और ड्रेस का नहीं. असल डिफरेंस सोच का है. सुरींदर साहनी के रूप में वह एक आम इंसान है जो खुद को हर वक्त पंजाब पावर का एक कर्तव्यनिष्ठ कर्मचारी ही समझता है. वह अपने दिल और अपने दर्द को कभी अपनी न्यूली मैरिड वाइफ तक के सामने लाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता. लेकिन वही आदमी राज के रूप में एक बनावटी चेहरा और नकली नाम लेकर एक दिलफेंक रोमांटिक हीरो में बदल जाता है. यानी फिर कहूं तो यह डिफरेंस एक्सटर्नल आउटलुक का नहीं बल्कि इंटरनल पैटर्न ऑफ थिंकिंग का है. सुरींदर साहनी के दिल में धड़कता हुआ दिल है. लेकिन उसका दिमाग उसके दिल को कभी एक्सपोज नहीं होना देता. सुरींदर साहनी अपनी खोल में सिमटे रहने वाला इंसान है. इसके कारण उसके दिल को अपने एक्सपोजर के लिए एक आर्टिफिशियल तरीकों का सहारा लेना पड़ता है. अगर सुरींदर साहनी के दिमाग ने उसके दिल को कैद नहीं किया होता तो वह खुद ही डांसिंग पेयर कांपिटिशन में पार्टिसिपेट कर लेता. तब उसे किसी नकली चेहरे की जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन अपने असल रूप पर खुद उसे भरोसा नहीं. उसे यह भी कॉंन्फिडेंस नहीं कि उसके लव या डांसिंग टैलेंट पर उसकी पत्नी को भरोसा होगा या नहीं.
कुल मिलाकर पूरा मैटर इंसान को खुद पर और अपने पार्टनर पर कॉन्फिडेंस करने का है. अगर भरोसा होगा तो फिर एक आम इंसान के रूप में भी जॉयफुल लाइफ बितायी जा सकती है. इसके लिए किसी आर्टिफिसियल चीज की जरूरत नहीं पड़ेगी. लेकिन अगर खुद पर या साथी पर भरोसा नहीं तो हर चीज नीरस और थकानेवाली होगी. बनावटी चीजों के सहारे मिलने वाली हंसी भी बस क्षणिक और बनावटी ही होगी. इससे लाइफ में कॉम्पलिकेशन ही बढ़ेंगे. इसलिए सुरींदर साहनी के लिए बेहतर यही है कि वह अपनी खोल से तुरंत बाहर निकले. लेकिन वह राज बनने की कोशिश न करे. वह सुरींदर साहनी ही रहे. उसी रूप में अपने धड़कते हुए दिल और उसके दर्द को खुलकर एक्सपोजर का स्कोप बनाये. ऐसा होने पर ही उसकी लाइफ रीयली कलरफुल होगी.
(आइ-नेक्स्ट, 23.12.2008 से साभार)
2 comments:
Its a nice piece of thoughts. The article gives a meaning to the film- Rab ne bana di jodi.
Rajendra
soch to badi achhi hai...bas ye film utni achhi nahi thi
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