Friday, December 5, 2008



मैं तो बहुत छोटा हूँ...मैं इस पर क्या लिखूं....,
हाँ मगर सोचता हूँ...मैं तुझे नगमा-ख्वा लिखूं....!!
एक चिंगारी तो मेरे शब्दों के पल्ले पड़ती नहीं...
जलते हुए सूरज को मैं फिर क्या लिखूं.....??
इक महीन सी उदासी दिल के भीतर है तिरी हुई...
नहीं जानता कि इस उदासी का सबब क्या लिखूं...!!
सुबह को देखे हुए शाम तलक मुरझाये हुए देखे..
सदाबहार काँटों की बाबत लिखूं तो क्या लिखूं...??
चाँद ने अक्सर आकर मेरी पलकों को छुआ है..
इस छुवन के अहसास को आख़िर क्या लिखूं...??
कुछ लिखूं तो मुश्किल ना लिखूं तो और मुश्किल
ना लिखूं तो क्या करूँ,अब लिखूं तो क्या लिखूं,
अजीब सी गफलत में रहने लगा हूँ मैं "गाफिल"
तमाम आदमियत के दर्द को आख़िर क्या लिखूं...??

2 comments:

डॉ .अनुराग said...

सोचता हूँ सच लिखूं या अदब की बात लिखूं
भीगे से है जज्बात कोई गरम बात लिखूं

दिगम्बर नासवा said...

आग उगलते सूरज की बात लिखूं
या चांदनी से नहाई इक रात लिखूं
इतनी अच्छी ग़ज़ल पर भूतनाथ जी,
कैसे मैं अपने ज़ज्बात लिखूं