Monday, March 2, 2009
लोकतंत्र में धर्मतंत्र का मकड़जाल
बहुत दिनों से कट्टरपंथियों पर कई आलेख पढ़ रहा था। विभिन्न ब्लॉग्स-साइट्स और यहां वहां। कई लोग संस्कृति की रक्षा के नाम पर जो दमन चक्र चला रहे थे, उन्हें भी पढ़ा। अचरज हुआ कि कैसे कोई एक लोकतांत्रिक देश में आत्म अभिव्यक्ति, स्वेच्छा, व्यक्तिगत अधिकारों का चौराहे पर चीर-हरन कर सकता है? क्या किसी को इस देश में दूसरे की ज़िंदगी में इसलिए दखल देने का अधिकार है, क्योंकि उसे रोकने वाली सरकारें प्रसव पीड़ा के कारण अस्पताल के बेड में हैं। मुझे ऎसा लगता है कि भारत के हिन्दूवादी या इस्लामी कट्टरपंथियों को एक बार अफगानिस्तान का दौरा करवाना चाहिए। इसके लिए जितनी राशि खर्च हो, उसका वहन आम लोग करें। शायद किसी ने देखा नहीं कि कट्टरवाद के कारण कितना जाहिल और लाचार देश बन गया है अफगानिस्तान। वहां लोगों का मुख्य पेशा भीख मांगना रह गया है। न कोई उद्योग है, न कोई व्यवसाय, न उच्च कोटि की शिक्षा, न किसी प्रकार की ट्रेनिंग, न सभ्य समाज, न जीविकोपार्जन का साधन, न किसी बात को लेकर सोचने-समझने-विचारने और विमर्श करने की सलीका ही बचा है लोगों में, न उत्पादकता है, न दुनिया के किसी काम में अफगानियों की सहभागिता है, न किसी कला में उनका नाम है, न किसी खेल में वे आगे हैं, न ही देश की कोई एक ईमारत पूरी तरह से व्यवस्थित है। भारतीय कट्टरपंथी शायद उसी स्थिति में भारत को भी देखना चाहते हैं। इन्हें पता नहीं कि कट्टरपंथियों का शिकंजा सिर्फ भोले-भाले लोगों पर कस सकता है, शक्तिशालियों पर नहीं। कैसे अमेरिका ने अफगानिस्तान में कट्टरपंथियों से लेकर मासूमों तक को छिल कर रख दिया, देखा ना सभी ने, कैसे अमेरिका ने चुन-चुन कर जुल्म ढाये, सभी ने देखा ना.. वही हश्र होगा एक दिन भारत का और भारत के लोगों का। उस दिन न कोई राम सेना का आदमी होगा और न ही किसी रहीम सेना का। चौक चौराहों पर विदेशी फौजें इन्हीं कट्टरपंथियों की मां-बहनों की देह के साथ खिलवाड़ करेंगे और हम-आप जैसे पंगु मूक-दर्शक खड़े ताकते रहेंगे, क्योंकि हमने तो उस वक्त भी विरोध नहीं किया था, जब कट्टरवाद अपने पांव फैला रहा था और हमारी भुजाओं में शक्ति थी। तो फिर उस वक्त विरोध कैसे कर पायेंगे, जब देश की सम्प्रभुता ही गिरवी रख दी गयी होगी और शासन होगा अमेरिका-ब्रिटेन आदि देशों का। गर्व से कहो - मैं कट्टरवादी हूं!!! जय श्री....
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इज्जत लूट ली इन्होंने
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4 comments:
बन्धु, दौरे से आम पब्लिक की जेब भले कट जाए, उनसे बदलने की उम्मीद मत करिए. क्योंकि हश्र वे भी जानते हैं. पर क्या करिएगा, दिल है कि मानता नहीं. उन्हें देश में अमन-चैन या सुख-संतोष नहीं, सत्ता चाहिए. उन्हें सुधारने का एक ही रास्ता है और वह है जूता. पब्लिक का जूता.
सही कहा आपने कट्टरवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित समाज का कमजोर वर्ग ही होता है।
काबिले-गौर लेख है।
आपकी सोंच फले-फूले एवं आम नागरिकों में भी प्रसार हो। मैं आपके लिये वन्य प्राणी पर 5 मार्च एवं 12 मार्च को हाथी पर विशेष लेख पोस्ट कर रहा हूँ। अपना कंटैक्ट न0 उपलब्ध करा रहा हूँ।
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