Friday, March 27, 2009

पापा मैं स्कूल नहीं जाउंगी !

अभी-अभी अपनी छोटी बिटिया मौली को स्कूल छोड़कर रहा हूँ,जिसे दस दिनों पहले ही स्कूल में दाखिल किया है....उसकी उम्र ढाई साल है....और रोज--रोज स्कूल के दरवाजे पर पहुँचते ही इतना रोटी है कि उसे वापस घर ले आने को मन करता है....और तक़रीबन सारे ही बच्चे स्कूल के गेट के एब सम्मुख आते ही जोरों से चिंघाड़ मारना शुरू करते हैं....और सारा माहौल ही रुदनमय हो जाता है...कितनी ही माताओं की आँखे नम हो जाती हैं....और कुछ को तो मैंने बच्चों को छोड़कर गेट पर ही रोते हुए भी देखता हूँ....ख़ुद मेरी भी आँखे कुछ कम नहीं नम होती...मगर बच्ची को स्कूल जाना है तो जाना है...अब चाहे रोये...चीखे या चिल्लाए....अपना दिल काबू कर उसे रोता हुआ छोड़कर अपने को रोज वापस जाना होता है......!!
सवाल बच्चे द्वारा नई जिन्दगी की शुरुआत का नहीं है....मेरे लिए सवाल बच्चे की उम्र का है...जो दो से ढाई साल का है...यहाँ तक कि बहुत से शहरों में तो ग्यारह-ग्यारह महीनों के बच्चे भी स्कूल में लिए जा रहे हैं...और उनके कामकाजी माता-पिता कितनी राजी-खुशी उन्हें स्कूल छोड़कर बड़े आराम से अपने काम को रवाना हुए जा रहे हैं.... और फिर बच्चा स्कूल से वापस दाई या नौकर के साथ लौटता है....और फिर माँ-बाप के वापस लौटने तक उन्ही के साथ अकेला या किसी की किस्मत अच्छी हुई तो किसी पार्क आदि में खेलने का मौका मिल जाता है.... जबकि हमने शायद छः या सात साल में स्कूल का स्वाद चखा था...उस उम्र में में भी हम,मुझे याद आता है कि हम रोया करते थे....और कई बार मन नहीं करता था तो माँ-बाप हमें स्कूल जाने से रोक भी दिया करते थे....माँ-बाप द्बारा दिया गया यह प्रेम आज भी उनके प्रति अथाह सम्मान के रूप में हमारे ह्रदय में कायम है....और कभी भी हम उनकी अवज्ञा करने की हिमाकत नहीं करते....और जहाँ तक किसी समस्या पर अपने विचारों और दुनिया की वस्तुस्थिति से उनको अवश्य रु--रु कराते हैं.....अपने प्रेम को हमने अपनी माँ को इसी तरह समझाकर विवाह का जामा पहनाया था.....अलबत्ता झगडे तो कहाँ नहीं होते.....!!
लेकिन ये सब लिखने का कारण यह है कि ढाई साल से बच्चे से हम आख़िर चाहते क्या हैं....सवेरे इक बेहद ही गहरी और प्यारी नींद में सोये बच्चे को जबरन उठाना(ध्यान रहे कि उसकी उम्र कितनी है....!!!!!)और कभी धक्के मार कर कभी बहलाकर उसे तैयार करना....और रोते हुए ही उसे स्कूल को रवाना कर देना.....बेशक हम अपना अतीत नहीं देखते....हमने शायद सात साल की उम्र में पढ़ना शुरू किया....तो क्या हमारे ज्ञान में कोई कमी रह गई है....या किसी भी इंसान से हम कमतर इंसान हो गए हैं....!!
बच्चा अगर ढाई-तीन की उम्र से स्कूल ना जाकर चार-पाँच साल की उम्र में स्कूल जाए तो इसमें हर्जा क्या है.....??ये शुरू के बरस वो घर और उसके आस-पास खेलता रहकर और घर में ही खेलता-खाता हुआ बिना एग्जाम की जहमत उठाये हुए कुछ सीख-साख ले तो इसमें हर्जा क्या है.....??ढाई साल का इक बच्चा दुनियादारी कुछ सालों बाद ही सीख ले इसमें हर्जा क्या है.....??और अंत में एक बात यह भी कि हम अपने बच्चों से आख़िर चाहते क्या हैं.....????..........अपनी इच्छा से जो महत्वाकांक्षा उन्हें हम सौंपते है......आप मानिए या मानिए....जब वो कुछ बनने के लिए प्रोफेशनल बनाना शुरू करते हैं.....तो शायद उनकी नज़र में हम उनके माँ-बाप तो क्या,इक अजनबी से ज्यादा कुच्छ नहीं रह जाते....बेशक हम तब ता-जिन्दगी उनकी बेदर्दी को लेकर ता-जहाँ कलपते रहे...
जो हम रोपते हैं....वही हम पाते हैं.....हम बच्चे को ढाई साल से ही ख़ुद से दूर करना शुरू कर देते हैं....तो बच्चे से यह तनिक भी उम्मीद ना करे कि आने वाले समय में वो हमारे पास फटक पायेगा....या कि हमसे जुदा हुआ रह पायेगा....दोस्तों....बहुत-सी बातों पर हम विचार ही नहीं करते या सिर्फ़ विचार करके ही रह जाते हैं...उनके परिणामों की बाबत सोचना शायद हमारे बूते के बाहर होता है.....या किसी दबाव में हम जाते हैं.....जैसे अपनी ढाई साल की छोटी-सी बच्ची को डाला है मैंने स्कूल में अपनी घरवाली के दबाव में.....अपनी पिछली बच्ची प्राची की तरह......!!

2 comments:

नीरज गोस्वामी said...

आपकी इस पोस्ट की जितनी तारीफ की जाये कम है...मैं चाहता हूँ की आपकी ये पोस्ट हर वो माँ बाप पढ़े जो अपने मासूम पर इतनी छोटी उम्र में अत्याचार करते हैं या करने की सोच रहे हैं.....हमने भी छै साल का होने के बाद शिक्षा ग्रहण की... और जीवन में कहीं किसी से कम नहीं रहे...छाती कक्षा से अंग्रेजी पढ़नी चालू की और इश्वर की कृपा से ऐसी फर्राटेदार बोलते हैं की अमेरिका में एक अमेरिकन ने पूछ ही लिया की क्या आपका जन्म यहाँ हुआ है? अपनी तारीफ नहीं कर रहे सिर्फ बता रहे हैं की कोई जरूरी नहीं की बच्चे को इतनी छोटी उम्र में प्रताडित किया जाये...
नीरज

नदीम अख़्तर said...

भूतनाथ जी, मैं आपकी बातों स‌े बिल्कुल स‌हमत हूं। मैं खुद 17 स‌ाल की उम्र में मैट्रिक पास किया। अभी मेरी उम्र 29-30 के मध्य है। मैं नहीं स‌मझता कि एक स‌ामान्य इंसान में जितना स‌मझ विकसित होना चाहिए, मेरे में नहीं हुआ है। मैंने 9 स‌ाल की उम्र स‌े बाकायदा स‌्कूलिंग शुरू की थी। अब आप ही बताइये कि किसी के पास नन्हे बच्चों को रोता हुआ स‌्कूल में छोड़ने का क्या तर्क है। मेरी नज़रों में यह इंसानियत के स‌ाथ मजाक है। मैं मौली को देख चुका हूं और मुझे लगता है कि अभी उसकी उम्र स‌्कूल जाने की नहीं है। घर में ही नैतिक और व्यावहारिक शिक्षा देना शुरू कीजिए और तुरंत नाम कटाइये स‌्कूल स‌े। हां, घर पर भाभीजी का थोड़ा काम बढ़ेगा, लेकिन क्या कीजिए आखिर बिटिया तो उनकी भी उतनी ही है, जितनी आपकी। और स‌भी जानते हैं कि किसी भी बच्चे का पहला स‌्कूल उसकी मां होती है, तो उसे तुरंत उसके पहले स‌्कूल में दाखिला दिलवायें।

नदीम