इन दिनों मीडिया में कतूहल का विषय है वरुण गांधी का अतिवाद। टीवी खोलने पर लगभग सभी समाचार चैनलों में वरुण गांधी "जय श्रीराम" टाइप के नारे लगाते दिख जाते हैं। बहुत सारी आलोचनाएं होती रहती हैं, उनकी। एंकर कहता है-ऎसे भड़काऊ बयान देने वाला कोई और नहीं बल्कि यह है वरुण दंगाई गांधी!! मुझे हंसी भी आती है इन खबरों और वरुण की भाषा पर और क्रोध भी आता है। क्रोध इसलिए नहीं आता क्योंकि मैं भी मुसलमान हूं और वरुण गांधी ने मुस्लिम विरोधी बातें कही हैं। मैं तो इस बात से पूरी तरह मुअय्यन हूं कि अरे वरुण गांधी हिन्दुओं की सभाओं में भले ही मुस्लिम विरोधी बयान दे दें, लेकिन अगर उन्हें कहिए कि एक सभा है, उसमें 70 हिन्दू और 30 मुस्लिम या अन्य धर्म के लोग बैठे हैं, वहां चल के ज़रा अपना कथित हिन्दू प्रेम उजागर कीजिए, तो वे निश्चित तौर पर मुंह से ए फॉर एप्पल भी नहीं बोल पायेंगे। वजह भी है ना- वरुण गांधी कोई पुराने खिलाड़ी नहीं हैं। डरपोक किस्म के नेता (उन्हें नेता न मानने वाले मुझे माफ करें) हैं। असल में समाजवादी पार्टी ने उनके खिलाफ जो उम्मीदवार उतारा है (रियाज़ अहमद), वह मुसलमान है और उसका पीलीभीत में अच्छा-खासा प्रभाव है, ऎसा कुछ लोगों ने बताया है, मैं नहीं जानता कि वास्तविकता क्या है लेकिन इतना ज़रूर जानता हूं कि वरुण उनसे डरे हुए हैं, तभी तो वो अपनी सभाओं में रियाज़ को कभी ओसामा बताते हैं, तो कभी दाउद का भाई-भतीजा। असल में उन्हें रियाज़ को हराने का एक उपाय सूझा था कि उनके खिलाफ हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण किया जाये। उन्होंने अपनी चुनावी वैतरणी पार करने के लिए राम-नाम का सहारा ले लिया। वैसे भी भारत में हिन्दू भावनाओं के बल पर कोई भी व्यापार किया जा सकता है। कम से इस बात में तो कोई दो राय नहीं कि आज इंडिया में सबसे सेलेबल आइटम भावना है और हिन्दुओं की भावना तो थोक में बिकती है। मिसाल के तौर पर - टीवी पर आपने साउना बेल्ट बिकते देखा होगा, जो होम शॉपी और क्या-क्या नाम से कंपनियों के माध्यम से टेलीब्रांडिंग होती है। अंग्रेजों की दस्त उस साउना बेल्ट के साथ हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक रुद्राक्ष फ्री दिया जा रहा है। अब जिसे रुद्राक्ष चाहिए, वो न चाह कर भी साउना बेल्ट खरीद रहा है। जिसकी खा कर मोटाने की औकात नहीं, वह पतला होने का नाड़ा खरीद रहा है। क्यों, क्योंकि उसकी आस्था है रुद्राक्ष में। खैर, कहने का मतलब यह हुआ कि वरुण गांधी पहचान चुके हैं उस दुकान को, जहां कबाड़ की तरह भावनाओं का अंबार है और जो बहुत ही कम कीमत पर वोटों के बदले कैश करायी जा सकती हैं। और, वरुण गांधी के पास ऎसा कोई वीज़न भी नहीं है, जिसके माध्यम से वह एक संघर्षशील नेता के रूप में उभरें। उनमें इतना माद्दा भी नहीं दिखता कि वह देश भर की खाक छानते हुए हर क्षेत्र की समस्याओं को पार्टी में ज़ोरदार ढंग से रखें और उनपर सर्वसम्मत राय कायम करायें। ये सब उसके अंदर होता है, जिसके संस्कार मज़बूत होते हैं। अगर संजय-मेनका-वरुण परिवार से ऎसे संस्कार की कोई उम्मीद रखता है, तो या तो वह आदमी मूर्खता की पराकाष्ठा को पार कर चुका है या फिर वह दुनिया के रस्मों-रिवाज से अंजान है।
कहा जाता है कि बच्चों पर उसके माता-पिता की करनी का असर बहुत ही प्रभावी ढंग से पड़ता है। आपको क्या लगता है कि वरुण गांधी इससे अछूते रह गये होंगे। थोड़ा ऎतिहासिक परिप्रेक्ष्य में जाने से पता चलता है कि संजय गांधी बहुत ही महत्वाकांक्षी व्यक्ति थे। रंगीन मिजाज़ तो थे ही। मेनका गांधी में भी ये दोनों खासियत थी, है भी। शोहरत की चाहत में मेनका अपने पति के नक्श-ए-कदम पर चलने वाली महिला हैं। वह इसके लिए कुछ भी कर सकती हैं। संजय गांधी क्लब-बार में थिरकने के शौक को झटक कर कैश करते हुए मेनका गांधी को पूरे देश ने देखा था, वरना उनमें ऎसा कुछ नहीं था, जिसके चलते इंदिरा गांधी अपने बेटे की शादी ऎसी लड़की से करती। एक तो मेनका अपनी जवानी में नशाखोरी को लेकर बदनाम थीं और दूसरी वह एक मॉडल थीं, जिन्हें पैसों के लिए अमीरों की पार्टियों में कैटवाक करने से लेकर डांस करने तक से कोई परहेज़ नहीं था। मेनका कभी सुपर मॉडल नहीं रहीं। उन्हें पता भी था कि वह कभी शो-स्टॉपर नहीं बस सकेंगी, इसलिए उन्होंने फटाफट ऊपर पहुंचने का ज़रिया तलाश किया। सामने दिखे संजय गांधी। भारत के सबसे प्रभावशाली परिवार का हिस्सा बनने और भावी प्रधानमंत्री की हमराही बनने की चाहत लिये मेनका ने ऎसा कोई अवसर हाथ से नहीं जाने दिया, जिससे संजय गांधी उनके करीब न आयें। संजय की मौत के बाद मेनका अलग-थलग नहीं हुई थीं। वह चाहतीं तो संयम के साथ इंदिरा गांधी के परिवार का हिस्सा बनी रह सकती थीं, लेकिन उनकी महत्वकांक्षा उन्हें ऎसा करने से रोकती थी। उन्हें चाहिए था शोहरत, हर कीमत पर। और उन्हें मिली भी। वह अब तक चार बार केंद्र में मंत्री रह चुकी हैं, जबकि इसी गांधी परिवार की एक और बहू सोनिया ने प्रधानमंत्री के पद को भी ठुकरा दिया है।
राजनीतिक महत्वकांक्षा के अलावा उन्होंने और भी कई कारनामे किये हैं, जिससे यह पता चलता है कि नीम के पेड़ से आम कभी नहीं आ सकता। और, जो जैसा बोता है, वैसा ही काटता है। शायद आपको पता होगा कि जगजीवन राम मोरारजी देसाई सरकार में रक्षा मंत्री हुआ करते थे। उस समय मेनका गांधी की शादी संजय से हो चुकी थी। मेनका पत्रकारिता के माध्यम से अपने आप को देश में एक तरह से स्थापित करना चाहती थीं। उस समय उन्होंने एक मैग्जीन लॉन्च की-सूर्या। उस मैग्जीन को अच्छा बनाने के लिए इंदिरा गांधी ने अपने पुराने मित्र खुशवंत सिंह से कह दिया। खुशवंत मान गये और मैग्जीन में लेख लिखने के साथ-साथ कुछ संपादन का काम भी करने लगे। एक दिन जब खुशवंत सिंह सूर्या के दफ्तर आये, तो उन्हें मेनका गांधी ने एक लिफाफ दिया, जिसमें नौ तस्वीरें थीं सुरेश राम की। सुरेश राम कोई और नहीं बल्कि बाबू जगजीवन राम के बेटे थे। सुरेश उन नौ तस्वीरों में दिल्ली यूनिवर्सिटी की एक 21 वर्षीय छात्रा सुषमा चौधरी के साथ सेक्स करते देखे जा सकते थे। तस्वीरें बिल्कुल स्पष्ट थीं और सभी तस्वीरें एक स्व चालित कैमरे से खुद सुरेश राम ने खींची थीं। जगजीवन राम कैबिनेट में दिनों-दिन काफी प्रभावशाली होते जा रहे थे और ऎसा लग रहा था कि मोरारजी देसाई की जगह वो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठेंगे। ऎसी स्थिति में उनके दोस्तों के साथ-साथ उनके दुश्मनों की संख्या भी बढ़ चुकी थी। सुरेश राम खुद पॉलिटिक्स में नहीं थे, लेकिन उनके पिता के राजनीतिक जीवन पर उनकी अय्याशी की दास्तां छपने पर ज़रूर असर पड़ता। सुषमा चौधरी मध्य वर्गीय परिवार की लड़की थी, जो सिर्फ सुरेश राम से प्यार करती थी और यह भी नहीं जानती थी कि सुरेश शादी-शुदा है। सुरेश औरतों का आदी था, जिसे अपने पार्टनर के साथ सेक्स करते हुए अपनी ही तस्वीरें रखने का बहुत शौक था। उसने सुषमा के साथ सेक्स की तस्वीरें अपनी मर्सिडीज़ गाड़ी में रखी थीं, जिसे कह सकते हैं कि बाबू जगजीवन राम के विरोधियों ने चुराकर सीधे इंदिरा गांधी के चरणों में डाल दिया। चूंकि, राजनीतिक के कारण इंदिरा गांधी उन तस्वीरों का सीधे तौर पर इस्तेमाल नहीं कर सकती थीं, इसलिए उन्होंने अपनी बहू मेनका के पास इन तस्वीरों को पहुंचवा दिया। खुशवंत सिंह ने जब तस्वीरें देखीं, तो उन्होंने मेनका को समझाया कि इन्हें छापने की गलती न की जाये। इसकी वजह भी उन्होंने बतायी, तीन-चार थीं। पहली तो यह कि इन तस्वीरों से नग्नता झलकती है, जिसका प्रकाशन पत्रकारिता के मानदंडों के प्रतिकूल होगा। दूसरा यह कि सुरेश राम का राजनीति से कुछ लेना-देना नहीं, उसकी तसवीर छाप कर हम उसके पिता जगजीवन राम का ही राजनीतिक करियर चौपट करेंगे, अतः बेटे की करनी का फल बाप को क्यों जाये। तीसरा यह कि सुषमा जो इस पचड़े में घिसट कर रह जायेगी, उसकी इज्जत का ख्याल रखना पत्रकारिता का एक आदर्श होगा। चूंकि, सुषमा न तो राजनीति जानती है और न ही उसे यह पता है कि सुरेश राम से प्यार करने का खामियाजा क्या हो सकता है, इसलिए भी इन तस्वीरों को प्रकाशित नहीं करना चाहिए। मेनका की महत्वकांक्षाओं के आगे खुशवंत सिंह के सारे तर्क कागजी शेर साबित हुए। सूर्या में सेंटर-स्प्रेड पेज पर सुरेश राम और सुषमा चौधरी की कामसूत्री मुद्रा वाली सेक्स करते हुए तस्वीर छपी। सूर्या ने धूम मचा दिया, लेकिन मेनका के इस एक कदम से तीन जिंदगियां बरबाद हुईं-जगजीवन राम, सुरेश राम और सुषमा चौधरी। समय का पहिया तीस साल के बाद आज फिर अपने इतिहास को दोहरा रहा है। किसी ने एक लिफाफे में वरुण गांधी की एक ऎसी सीडी लाकर किसी दफ्तर में रख दी, जिससे मेनका के बेटे की राजनीति पर शुरू होने से पहले ही खत्म होने का खतरा मंडराने लगा है।
7 comments:
Please use proper language on your blog.
1) "जय श्रीराम" टाइप के नारे
2) हिन्दुओं की भावना तो थोक में बिकती है।
3) उस दुकान को, जहां कबाड़ की तरह भावनाओं का अंबार है
You are doing the same thing what varun did.
नदीम भाई, ने ठीक ही लिखा है, जो सत्य के करीब है | और ये क्या बात हुई चोरी छिपे अपनी बात कहने की | और पढना हो वरुण और संजय गाँधी के बारे में तो मेरे ब्लॉग पर पढ़ लीजिये up4bhadas.blogsdpot.com पर
तब भी चैन ना मिले तो हिन्दुस्तान के दर्द (yaadonkaaaina.blogspot.com) पर देख लें |
खैर अब बस करता हूँ बहुत हो गया |
1) I talked about language used in this blog and not about contents. You have all right to think, belive and say whatever you want. But you must have acceptable language.
2) This blog has been written for wrong languages used by Varun and unfortuantely the author used wrost words than Varun.
3)I am Anonymous because I don't have capabilities to face people who has dual characters.
चलिए वरुण के बहाने मेनका का अतीत आपने उघाड़कर रख दिया, लेकिन गाँधी परिवार के अन्य सदस्यों के बारे में भी आप जानते ही होंगे,, ये सारा का सारा "घान" ही खराब है… अकेले मेनका को दोष क्या दें… थोड़ा राहुल बाबा और सोनिया के बारे में भी इतिहास लिखिये ना…
सच बात तो ये है कि मैं आपसे ये पूछना चाहता हूँ....कि ये वरुण गांधी कौन हैं.....??मतलब ये कि इस वरुण नाम के नौजवान की राजनीति में क्या हैसियत है....बतौर इंसान वो क्या है...बतौर कार्यकर्ता उसने क्या किया है....बतौर नेता उसका विजन क्या है....ओवर आल ये जनाब हैं कौन....और किसलिए उनपर किसी भी तरह की बात की जा रही है...उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया जाना चाहिए....बाकी का काम मतदाता खुद कर लेंगे.....!!..........चेंज इंडिया चेंज.....!!....ईट कैन दन...ईट विल दन.....!!
Sorry ! verry ordinary analysis...
सवाल यह भी है कि भाजपा इस सबसे क्या चाहती है।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
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