Friday, April 17, 2009

एक एहसास जो बयां न हो स‌के...

बहुत दिनों के बाद अपनी गंदी आदत पर वापस लौटा हूं। अखबारनवीसों पर लिखने के अपने पुराने शगल के कारण मैं हमेशा गालियां खाता रहा हूं। लेकिन, मुझे जब-जब गाली पड़ती है, तो एक शेर याद आ जाता है, जो रजत दा ने 28 दिसंबर 2000 के रांची में ईद के दिन हुए उत्पात के बाद बिगड़ते माहौल पर लिखा था-
कितनी शीरीं है तेरी लब--रक़ीब
गालियां खा कर भी बदमज़ा हुआ
खैर, इस शेर स‌े मुझे एक स‌ंबल मिलता है। यही वजह है कि आज फिर एक अखबारनवीस के बारे में लिखने की हिम्मत जुटा ली है। मुझे पता है कि आलोचनाएं गालियों की जननी होती हैं, लेकिन तारीफ गालियों का पिता होता है, यह भी स‌त्य है। असल में कुछ रोज़ पहले ही मैं इस शख्स पर लिखने की स‌ोच रहा था लेकिन नहीं लिख पाया। मुझे पता चला कि अमरकांत जी आइ-नेक्स्ट, रांची में चीफ रिपोर्टर के पद पर पहुंच गये हैं। मैंने उनसे बातचीत के दौरान ही उन्हें अपनी शुभकामनाएं दीं। आम तौर पर आज के युवाओं को स‌फलता मिलती है, तो उन्हें आसमानी उड़ान का एहसास होने लगता है। अमरकांत जी स‌े मेरा काफी अर्से का रिश्ता रहा है, जागरण में आना-जाना था, तब स‌े। फिर मैं प्रभात खबर गया, तब रिश्ते और भी प्रगाढ़ हुए। अब तो फोन-टॉक तक ही स‌ीमित हैं काफी स‌ारे लोग, फिर भी रिश्ते अच्छे हैं। तो अमरकांत जी स‌े मैं दो दिन पहले मिला। उनमें किसी तरह का भाव न देखकर एक आत्म स‌ंतोष हुआ कि चलो आज की युवा पीढ़ी एक ऎसे ट्रैक पर है, जिस पर हमारी नस्लें नाज़ कर स‌कती हैं। अमरकांत जी आज जहां हैं, वहां पहुंचने की कल्पना शायद उन्होंने दो स‌ाल पहले नहीं की होगी, जब वह प्रभात खबर में रहते हुए काम कर रहे थे। कई मौके ऎसे आये, जब अमरकांत जी कुछ निराश भी दिखे। मुझसे बातें शेयर करते थे, लेकिन उनकी व्यवहार कुशलता उन्हें किसी के खिलाफ जाने स‌े रोकती थी। अगर कभी किसी स‌ीनियर स‌े शिकायत भी रहती थी, तो स‌ंबंधित व्यक्ति के लिए आदर का भाव उनकी जबान स‌े कभी ज़ाया नहीं होता था। यह गुण हर आदमी में नहीं होता। मेरे में भी नहीं है। मैं अगर किसी कारणवश किसी स‌े गुस्साता हूं, तो जिससे अपने दिल की बात कह रहा होता हूं, उससे न जाने क्या क्या कह जाता हूं। खैर, अमरकांत जी के बारे में बता रहा था कि उन्होंने कई बार मुझसे कहा था कि मुझे ल‌गता है कि मैं रांची छोड़कर बोकारो शिफ्ट हो जाऊं और वहीं स‌े किसी भी अखबार के लिए काम करने लगूं। इसे लेकर उन्होंने प्रभात खबर में बातचीत भी की थी, लेकिन बात नहीं बनी थी। इसके बाद वह लगातार एड्युकेशन बीट पर काम करते रहे। डेढ़-दो स‌ाल पहले अचानक वो कुछ दिनों की छुट्टी में चले गये थे, तो हल्ला हुआ कि रामगढ़ में किसी कॉलेज में नौकरी लग गयी है, वहीं चले गये हैं। हालांकि, मैंने इस बात को बहुत हलके स‌े लिया था, क्योंकि मैं अमरकांत जी के स्वभाव स‌े अच्छी तरह स‌े वाकिफ हूं। पत्रकारिता और मीडिया जगत स‌े जुड़े रहकर कुछ नया, कुछ इनोवेटिव और कुछ हटकर करने की उनकी इच्छा उन्हें किसी कॉलेजनुमा जगह में काम करा ही नहीं स‌कती। बाद में वह खबर झूठी निकली। अमरकांत जी काम पर लौटे। फिर रविप्रकाश जी जब आइ-नेक्स्ट रांची के प्रभारी बने, तो उन्हें अमरकांत जी का कुशल स‌हयोग मिलने लगा। आज की स्थिति यह है कि रविप्रकाश जी को भी इस बात का गर्व है कि उनकी टीम में अमरकांत जी जैसे कर्मठ और कर्त्तव्यनिष्ठ युवा शामिल हैं। असल में खुद रवि जी भी इतने मेहनती हैं कि उन्हें इस बारे में पूरी जानकारी रहती है कि कौन किस हद तक काम कर स‌कता है। कई स‌ारे ऎसे स‌ाथी आज बहुत बेहतर काम करते नज़र आ रहे हैं, जो कल तक अपने अस्तित्व के लिए स‌ंघर्षरत थे। ऎसे स‌ाथियों के नाम तो नहीं लेना चाहूंगा, लेकिन हमेशा यही कामना करूंगा कि वे मेहनत, लगन, निष्ठा और निष्पक्ष पत्रकारिता की जोत को जलाते हुए अपनी अमिट छाप हर मीडिया स‌मूह में छोड़ें। बधाई के स‌ाथ, क्षमा शाब्दिक त्रुटियों के लिए।

6 comments:

saurabhi said...

बिल्कुल सही कहा नदीम जी आपने। सचमुच यदि आज की पत्रकारिता को अपने मूल्यों को वापस लाना है तो ईमानदार युवा नेतृत्व की सख्त आवश्यकता है जो मेहनत के बल पर काम करें न कि चमचई करें। वैसे इन दिनों जाने माने मीडिया हाउस में चमचई करने वालों की तादाद बहुत बढ़ गई है जो काम तो कम करते है लेकिन मुंह की दुकान अधिक चलाते है और मोटी सैलेरी पाते है। इन्हीं लोगों के कारण मेहनती और योग्य युवा पत्रकार काम करने के बावजूद लगातार उपेक्षित हो रहे है।

हमराही said...

ऎसे कई लोग जीवन में आते हैं, जिनके स‌ाथ कुछ यादें जुड़ी होती हैं। मैं भी चाहता हूं कि किताब न स‌ही लेकिन एक एक कर स‌ारी यादों को ब्लॉग में ही एकीकृत कर दूं, लेकिन वक्त ही नहीं मिलता। खैर, अब कोशिश करूंगा। वैसे, अमरकांत जी स‌े कभी मुलाकात तो नहीं हुई, लेकिन उनको बधाई। रवि भैया स‌े मैं पुराने परिचित हूं, देवघर स‌े ही, उनको भी शुभकामनाएं।

dharmendra said...

congratulate to you for this topic. aapne ek aam patrakar ki prashansa ki hai jo kabiletarif hai.

सचिन श्रीवास्तव said...

बिल्कुल सही कह रहे हैं नदीम. अमरकांत के काम की जो सबसे बडी खासियत है वह है अंडरटोन रहना. उनके चेहरे पर कभी गुस्सा नहीं दिखता था. रांची में जो कुछ चेहरे हमेशा एक मासूम मुस्कुराहट के साथ मिलते थे, उनमें अमरकांत सबसे खास रहे हैं. सचमुच उनका चेहरा और बात का नम्र अंदाज हमेशा इतना ही अपना रहेगा ये यकीन है

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

अरे अमरकांत भाई क्या आप ऐसे हो.....??तो फिर लो हमारी तरफ से मुहँ मीठा करो....मैं रांची के पत्रकारिता जगत में आज से वर्षों पूर्व (कोई १० से १५ वर्षों पूर्व)घनघोर विचरण किया है....और बहुत सारे जबरदस्त लोगों से मुलाक़ात हुई....हुनर और मेहनत के पाबन्द लोगों से भी....और दुसरे टाइप के लोगों से भी....बहुतों का मैं कायल भी हुआ...और बहुतों से....!!....और यह जगत छोड़ ही दिया....इसीलिए अब मैं भूत बन गया हूँ....इस भूत की आपको भी बधाई....अब तो मैं अखबार-वगैरह जगहों पर जाता ही नहीं....अगर अभी आया....तो मुकालात...अरे सॉरी भाई....मुलाक़ात अवश्य करूंगा....एक बार फिर आपको आपकी काबिलियत की बधाई....!!

KUMAR said...

amar bhaiya to bas aise hi hain. jo unke saath kaam kar chuke hain, unhe unka tel se chupde hue baal, aankhe laal, jaisi kai cheejen yaad hongi, na, na, main unki beauty nahi bata raha, balki yeh kehna chah raha hoon ki woh kitne bhi beemar kyon na hon, kaam me bhide rahte hain. so he got, what he deserves. haan ek buri aadat bhi hai, motorcycle bahut speed chalate hain bhai....................