पता नहीं क्यूँ उसके वादे पर करार रहा
वो झूठा था पर उसपे मुझे ऐतबार रहा !!
दिन-भर मेहनत ने मुझे दम ना लेने दिया
और फिर रात भर दर्द मुझसे बेहाल रहा !!
अजीब यह कि जो खेलता था,अमीर था
और जो मेहनत-कश था,वो बदहाल रहा !!
सच मुहँ छुपाये कचहरी में खडा रहता था
झूठ अन्दर-बाहर सब जगह वाचाल रहा !!
कई बार सोचा कि मैं ही अपना मुहं खोलूं
और लोगों की तरह मैं भी हलकान रहा !!
6 comments:
अजीब यह कि जो खेलता था,अमीर था
और जो मेहनत-कश था,वो बदहाल रहा !!
सच मुहँ छुपाये कचहरी में खडा रहता था
झूठ अन्दर-बाहर सब जगह वाचाल रहा !!
waah behtarin
एक बात सच सच बताइये भूतनाथ जी कि क्या ये आपकी अपनी रचना है। मुझे शक है कि ये चोरी की हुई रचना है, क्योंकि इतना अच्छा लिखने वाले लोग अब इस दुनिया में नहीं हैं। मुझे पता नहीं कि आप वास्तव में इस रचना के ऑरिजनल मालिक हैं या नहीं, लेकिन अगर हैं, तो बिना मिठाई के इस बार तो छोड़ेंगे नहीं।
बहुत सुन्दर रचना। पढ़कर मन खुश हो गया। शब्दों को कितने करीने से पिरोया है आपने। बहुत खूब और हां इस बेहतरीन रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई।
समाज की दुश्वारियों से रूबरू कराती एक सार्थक गजल।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
तो फिर नदीम भाई मिठाई खाने के तैयार हो ही जाओ..........क्यूंकि मियाँ गाफिल ने आज तक चोरी-वोरी वाली बात नहीं की....ना तो पैसों की और ना ही किसी और तरह की ही....चोरी तो गाफिल की चीज़ों की होती है....गाफिल चोरी नहीं करते प्यारे....!!.....और मजा यह कि मेरी नज़र में यह मेरी बेहद ही हलकी रचनाओं में से एक है.....!!
wah kya kavota hai nadem sahab aapki
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