Sunday, April 26, 2009

जनता सब जानती है

- प्रमोद
वाह रे चुनाव ! तपती दोपहरी में भी हमारे नेता जनता को वादों का पुलिंदा सौपने अपने वातानुकूलित कुनबों से निकलकर आ रहे हैं , पर अब तक तो उन्हें यह अहसास हो जाना चाहिए कि उनके कथित वादों पर जनता कितना विश्वाश कर रही है। चुनावी खबरों में वोट बहिष्कार और मतदान का घटरहा प्रतिशत मुख्य रूप से छाया हुआ है। परन्तु शायद ही हमारे जन-प्रतिनिधि इस पर ध्यान दे पा रहे हैं। मुद्दों के नाम पर बस एक दूसरे की शिकायतों का बाजार गर्म है जिस से पहले से ही इस तेज गर्मी में पानी की किल्लत से त्रस्त जनता और भी तीखे अनुभव बटोर रही है, जिसका तीखापन तो हमारे नेताओं को भी झेलना ही होगा।
जो देखने और सुनने को मिल रहा है उससे निश्चय ही दुःख मिश्रित आश्चर्य होता है। पिछले पांच वर्षों से सरकार चलाने वाले नेता अपनी उपलब्धियों को गिनाने की जगह दूसरो की खामियां जनता को सुनाने में लगे हुए हैं, पर भाई साहब जनता न तो अंधी है और न ही बहरी इसलिए अपनी उपलब्धियों को गिनाते चलिए और आगे अपनी खामियों को बताते हुए क्षमा मांगते हुए उसे दूर करने का वादा करते चलिए तभी कुछ आपका भला होगा और कुछ जनता का भला होगा।
सरकार के विपक्षी दल भी कमो बेश उन्ही के पदचिन्हों पर चलते हुए उनकी खामियों को मुहावरेदार और लच्छेदार रूप में जनता को सुनाने में लगे हुए है। इसकी क्या जरुरत है और अगर है भी तो आप उसके सम्बन्ध में सकारात्मक पहल करते हुए पहले तो यह बताते की आपने सरकार में उन कमियों को दूर रखा था या वो आपके समय में भी इसी प्रकार से मौजूद थी? और तब अपनी योजनाओं को सामने रखते हुए ये बताएं की आपने उन्हें दूर करने की क्या रणनीति बनाई है?
इन दोनों से भी बुरी स्थिति वे बनाये हुए हैं जो अब तक सरकार में थे और अब ख़ुद को विरोधी बताते हुए जनता को ठगने का काम कर रहे है और चुनावों के उपरांत पुनः उन्ही कथित विरोधियों के साथ मिलकर सरकार बनने के सवाल पर बहुत ही निर्लज्जता के साथ घुमा फिर कर सब कुछ स्वीकारते चले जाते है।
खैर मैं कितना कुछ कहूँ, जनता की अपने मताधिकार के प्रति उदासीनता ही इस बात की गवाही दे रही है कि जनता के वोट के आकांक्षियों को जनता के बीच रहकर अपने पूर्व के क्रियाकलापों के लिए क्षमा याचना करते हुए आगे से जनता को साधन नही वरन साध्य बनाने का संकल्प लेना होगा वरना शायद जनता के कान अब सास-बहु की धारावाहिकों की तरह नेताओं द्वारा एक दूसरे के खिलाफ षडयंत्र और एक दूसरे की बुराई सुनते सुनते पक चुके हैं। अबतक तो नेताओं के प्रति ही जनता भरोसा उठा है पर यही हालत रही तो शायद लोकतंत्र में भी जनता का विश्वास बचा नही रह पायेगा। अतः हे महानुभावों जनता को बरगलाने का प्रयास न करते हुए सकारात्मक मूल्यों को स्थापित करने का प्रयास करे क्योंकि जनता सब जानती है..................... ।

3 comments:

Akhileshwar Pandey said...

नेता-नेता-नेता
नेता का अब नाम नहीं लो
सब कुछ हजम कर जाते हैं
बारिश हो या छांव-धूप
बेशरमी ही दिखलाते हैं।

नदीम अख़्तर said...

आदरणीय प्रमोद जी,
बहुत दिनों के बाद आपको रांचीहल्ला में पाकर बहुत अच्छा लगा। क्या कहीं गये थे आप या भूल गये थे रांची को ही?? वैसे आपने लिखा बिल्कुल ठीक है। मैं आपका समर्थन करता हूं।

हमराही said...

मुझे लगता है कि भारतीय मानसिकता को बहुत ही कुटिल तरीके से फूहड़ बनाने की साजिश करते रहे हैं नेता। मैं ये नहीं समझ पाता कि आखिर आम आदमी धर्म, जात और क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर कुछ सोचता क्यों नहीं है? हम खुद अक्षम हैं, तो हम नेताओं को कैसे गाली दे सकते हैं। हालांकि, आपने जो सवाल उठाये हैं, वह जायज़ हैं।