Saturday, May 23, 2009

संसद में बढ़ता वामा का रुतबा

मोनिका गुप्ता
पंद्रहवीं लोकसभा चुनाव की शांतिपूर्ण समाप्ति के बाद दूसरी बार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार का गठन हो चुका है। अपनी आर्थिक नीतियों के लिए विख्यात मनमोहन सिंह से आधी आबादी के नेतृत्व का कहां तक कल्याण हो पायेगा, यह सवाल अब भी शेष है। हमेशा की तरह विवादों में रहने वाला महिला आरक्षण विधेयक क्या इस बार भी विवाद का शिकार होगा या फिर कोई सकारात्मक परिणाम निकलेगा। इस बात का महत्व इस चुनाव के बाद इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि अब तक के भारतीय इतिहास में इस बार सबसे ज्यादा महिला प्रत्याशियों का चुनाव हुआ है। पहले के सभी रिकॉर्ड को तोड़ते हुए इस बार 61 महिला सांसद बनकर आयी है। इनमें से 17 ऐसी महिलाएं जो 40 से कम उम्र की है और इन सदस्यों में से 50 फीसद ऐसी महिलाएं जिन्होंने राजनीति की शुरुआत ज़मीनी स्तर से की है। सांसद बनकर आने वाली कुल महिलाओं में 23 कांग्रेस से हैं और 13 भारतीय जनता पार्टी से। पूरे देश में सबसे अधिक महिला सांसदों की भागीदारी उत्तर प्रदेश से है जहां से 13 महिलाएं सांसद है। उसके बाद पश्चिम बंगाल से-सात। वर्ष 2009 में 556 महिलाओं ने चुनाव लड़ा था। अब तक सबसे कम छठीं लोकसभा चुनाव (1977-80) में 3.8 फीसद महिलाएं सांसद चुनी गयी थीं। इस बार सबसे अधिक लगभग 10 फीसद महिलाएं चुनी गयी हैं। प्रथम लोकसभा चुनाव (1952-57) में 4.4 फीसद और तेरहवीं लोकसभा चुनाव (1999-2004) में 9.2 फीसद महिलाओं की हिस्सेदारी रही थी। सवाल यह है कि साल दर साल बढ़ती महिला सांसदों की संख्या क्या महिलाओं के उद्धार के लिए नयी राह खोल पायेगी। इन महिलाओं के नेतृत्व में क्या ग्रामीण महिलाओं को संरक्षण मिलेगा या फिर अपने आस्तित्व की लड़ाई लड़ती पंचायतों की ग्रामीण महिलाएं हमेशा की तरह संघर्षशील बनी रहेंगी। वर्ष 1992 के संविधान संशोधन द्वारा लाये गये महिला आरक्षण विधेयक ने जहां महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण का प्रावधान किया था, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्रो में महिला पंचायतों की बढ़ती संख्या इसका पुरजोर समर्थन कर रही है। हालांकि, केंद्र में अब तक विवादों में घिरा महिला आरक्षण विधेयक अपने अस्तित्व में नहीं आ पाया है, लेकिन कुछ राज्यों ने इसके लिए शुरुआत कर दी है। इनमें सबसे आगे है कर्नाटक। उसके बाद मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, बिहार और हाल ही में उत्तराखंड ने भी पंचायत स्तर पर 33 फीसद आरक्षण की घोषणा कर दी है। इतना ही नहीं ये राज्य 50 फीसद आरक्षण पर जोर देने की ओर बढ़ रहे हैं, जो इस दिशा में सकारात्मक पहल है। अब चूंकि राज्यों में और खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में तो महिलाओं की बढ़ती भागीदारी ने सकारात्मक सोच को बल दिया है। लेकिन आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि 61 महिला सासंद के बलबूते इस विधेयक का क्या होता है और देश के हर हिस्से में हर तरह से महिलाएं कैसे और कितनी सक्षम और मजबूत हो पाती हैं।

3 comments:

सुनील पाण्‍डेय said...

मोनिका जी आपने बहुत अच्‍छा लिखा है, ऐसे ही लिखते रहें। बेहतरीन प्रदर्शन

Randhir Singh Suman said...

good

दर्पण साह said...

mahilaoon ke baare main maine dekha hai ki wo ek acchi boss sabit hoti hain...

mere khayal se laal fitashai aur netaon ke beech ki dewaar mahilaayein paat paiyen !!