Friday, June 26, 2009
सफर के सजदे में
27 जून 2008। आज से एक साल पहले का दिन मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है, क्योंकि एक साल का सफर कोई लम्बा सफर नहीं होता। और, याद होने की एक ख़ास वजह भी है। 27 जून से ही रांची से आइ-नेक्स्ट का प्रकाशन शुरू हुआ था। चूंकि मेरे कई परिचित मित्र इस नये प्रोजेक्ट में काम करने के लिए गये थे, इसलिए रोमांच भी था। सृजन ही जीवन है, इस वाक्य को चरितार्थ करने की चुनौती लिये, जो लोग इस द्विभाषी अखबार में काम करने निकले थे, उनके मन में भी कई सवाल उठ रहे थे। क्या सफल हो पायेंगे? कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं होगी? करियर दांव पर तो नहीं...वगैरह-वगैरह। ऎसी आशंका तब और प्रबल हो जाती है, जब कोई नया फॉरमेट पब्लिक के सामने रखा जाता है। आइ-नेक्स्ट बिल्कुल नया कंसेप्ट था, उस वक्त रांची के लिए। यही वजह थी कि इसमें काम करनेवालों से लेकर मीडिया समूह में भी चर्चा ज़ोरों पर थी कि क्या इसे पाठकों का पूरा स्नेह मिलेगा। इन एक सालों में इस अखबार ने यह साबित कर दिखाया है कि मेहनत, लगन और इच्छाशक्ति कुछ भी व्यर्थ नहीं जाने देती। आइ-नेक्स्ट आज निःसंकोच रांची की जवान धड़कन है, जो हर वर्ग के दिलों में धड़क रहा है। आइ-नेक्स्ट ने अपने प्रकाशन से लेकर आज तक अपने पाठकों को शत-प्रतिशत संतुष्ट किया है। लोगों के लिए एक नये अंदाज़ में शब्दों की बारात सजाना कोई आसान काम नहीं था, लेकिन स्थानीय संपादक श्री रवि प्रकाश जी, प्रारंभिक दौर में मुख्य संवाददाता रहे श्री नरेंद्रनाथ जी, वर्तमान मुख्य संवाददाता श्री अमरकांत जी की मेहनत ने हर प्रेतबाधा को लांघते हुए जागरण प्रकाशन समूह को वह इज्ज़त दिलवायी है, जिसका सपना श्रद्धेय पूर्णचंद्र गुप्त जी ने कभी देखा था और श्रद्धेय नरेंद्र मोहन जी ने साकार किया था। आज श्री सुनील गुप्ता जी और श्री संजय गुप्ता जी के मार्गदर्शन में चलते हुए आइ-नेक्स्ट के सभी साथियों ने सर्वोत्तमप्रदर्शन कर देश में प्रकाशन की विद्या को बल दे रहे उत्कृष्ट समूह को गौरवांवित किया है। रांचीहल्ला की ओर से समूह और आइ-नेक्स्ट के सभी साथियों को लख-लख बधाइयां।
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1 comment:
नदीम अख्तर साहिब
आप अदा जी के ब्लॉग पर अज उर्मिला बोलेगी पर राम क सन्दर्भ में कुछ टिप्पणी छोड़ आये थे , उसका कुछ उत्तर वहां दिया था आप से यहाँ मुलकात हुई , उचित है की हम आप यहाँ बाते करें , | आप ने कहा था "' वैसे मुझे लक्ष्मण से शिकायत नहीं, बल्कि इस महाकाव्य के मुख्य पात्र से शिकायत है, जिन्होंने ये भी नहीं कहा कि उर्मिला का क्या होगा। हम तो जा रहे हैं पिता के वचन को पूरा करने के लिए लेकिन उर्मिला किस पाप का प्रायश्चित करेगी।"
मेरे द्वारा कहा गया है ,'' आप द्वारा शायद " रामायण "
का अध्यन नहीं किया गया है , वरन वे उक्त कथन न करते , मैं जैसे पहले भी कह चुका हूँ की मर्यादाएं और परम्पराएँ हर युग की अपनी होती हैं ,|
अधिकांश समाज अपनी परंपराओं के अनुसार ही जीता है या जीना चाहता है |
नदीम जनाब केकैयी भी तो उसी युग में ही थी ; और जो भी जिस दिन 'रामायण ' का गहन अध्यन कर लेंगा केकैयी को
खल नायिका मानाने को तैयार नहीं होगा |
व्यक्तिगत स्तर पर राम के निर्णयों या कार्यों पर प्रश्न उस युग में भी उठाये ,गए थे ?
अवतार की अवधारण को ध्यान में रखने पर भी आप को ऐसी स्थितियां मिलेंगी |
जिस समय राम ने सीता वनवास दिया लक्ष्मण ने विद्रोही मन से ही उस आज्ञा का पालन किया था राम [ यानि नारायण ] से वचन ले लिया था की यदि अब साथ अवतार लेना पड़े तो वे बड़े की पदवी यानि कि बड़े भाई के रूप में जन्म लें ,जिससे अपने मन विरुद्ध आज्ञा न मानना पड़े |
ईश्वर के रहस्य ऐसे हैं बहुत गहरे उतर कर ही जाना जा सकता है , और जो इसे जान जाता है वह इसके प्रति और अधिक मौन हो जाता , उस के भेद को खोलना बंदरों के गोल में सब के हाथ में अस्तुरा , आतंकवादियों के हाथ में एटम बम देने के बराबर ही है |\
हम सभी वह भेद पाते ही जो महा प्रलय बाद में आनी है उसको लाने की तैयारी तुरंत लाने की शुरू कर देंगे | " मेरी सोचों को जानने के लिए पढें '' धार्मिकता एवं सम्प्रदायिकता का अन्तर
" कबीरा "
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