तकरीबन साढ़े पांच सदी पहले कबीर ने कहा था- अंबर बरसे धरती भींजे, यह जाने सब कोई/ धरती बरसे अंबर भींजे जाने विरले कोई। अंबर को बरसते तो सब देखते हैं, मगर धरती भी आसमान पर बरसती है, यह हम जैसे साधारण मनुज कहां देख पाते हैं। कबीर दृष्टा थे, इसलिए उन्होंने इस अगोचर सच को देख लिया। कबीर ने नदियों और समुद्रों से उठते वाष्पों को देखा, पेड़-पौघों के पत्तों से होने वाले वाष्पीकरण को देखा । भापों को मेघ में बदलते देखा और कह डाला- देखो रे मनुज ! तुम्हारी आंखों के सामने सच गुजर रहा है, धरती आसमान पर बरस रही है... कवि वही जो अकथनीय कह दे, पंक्ति को चरितार्थ करते हुए कबीर ने अगोचर को गोचर कर डाला।
दृष्टा की यही खूबी होती है। वे दूर की ही नहीं देखते, बल्कि बिल्कुल पास घट रहीं उन घटनाओं को भी देख लेते हैं, जिन्हें सामान्य इंसान आंख रहते भी नहीं देख पाता। हमारे युग में भी एक दृष्टा हैं। जिनका नाम है- अब्दुल पाकिर जैनुलबद्दीन कलाम। एपीजे कलाम एक बेहतरीन वैज्ञानिक ही नहीं, बल्कि हमारे समय के महत्वपूर्ण चिंतक भी हैं। वे कुशाग्र बुद्धि के स्वामी तो हैं ही साथ ही उनके पास एक संवेदनशील हृदय भी है।यही कारण है कि उनकी आंखों पर जवाने के प्रपंची चीलमन कभी नहीं लगे। वे हमेशा सकरात्मक सोचते हैं और जो लोग उनसे कुछ जानने-समझने पहुंचते हैं, उन्हें सही रास्ता दिखाते हैं। चाहे मीडिया के लोगों को गांव की ओर झांकने की सलाह हो या फिर देश के बेहतर भविष्य के लिए आत्मनिर्भर बनने का उनका रोड मैप (विजन 2020 और विंग आफ फायर) हो । हर बार कलाम ने दूर की, बहुत दूर की और मार्के की बात कही। कलाम हमारे युग की समस्याओं और चुनौतियों पर बारीक दृष्टि रखते हैं और इन चुनौतियों कीआगामी तस्वीरों को भी देखने में सक्षम हैं। वे अपनी राय देकर हमें सचेत करते रहते हैं, एक वैज्ञानिक की तरह नहीं, बल्कि एक निलिप्त गुरु की तरह। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम उनकी सलाह के मर्म को कितना समझ पाते हैं और उन पर कितना अमल करते हैं ।
कल कलाम रांची में थेऔर यहां उन्होंने युगांतकारी महत्व की बातें कह डालीं। हालांकि उनके इस कथन में सनसनी नहीं है और न ही इसमें खबरिया चैनल की कढ़ाही में तलने लायक मसाला ही है। लेकिन उनके कथन में हमारे समय के सबसे बड़े सामाजिक-कैंसर का इलाज छिपा हुआ है। कलाम साहेब कल रांची में बच्चों के साथ संवाद कर रहे थे। बच्चे उन से तरह-तरह के सवाल पूछ रहे थे और वे सोच-सोच कर उनकी जिज्ञाशा को शांत कर रहे थे। तभी एक बच्ची ने उनसे पूछ डाला- " सर, अपने देश को भ्रष्टाचार से किस प्रकार मुक्ति मिल सकती है ? ' कलाम कुछ पलों तक खामोश रहे। फिर उन्होंने जो कहा उससे समकालीन भारतीय समाज की नैतिक दरिद्रता नमूदार हो गयी और एक ऐसा सच उजागर हो गया जिसे आंख रहते हम नहीं देख पाते और अगर देखते भी हैं, तो उसे झुठला कर आगे बढ़ जाते हैं। बिल्कुल "धरती बरसे अंबर भीजे' की तरह। कलाम ने कहा, अगर देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलानी हैै, तो पहले अपने घरों से इसे खत्म करो। अपने मां-पिता को गलत काम करने से रोको।
लोग कलाम के इस बयान को हल्के में ले सकते हैं और इसे एक विद्वान का विनम्र संदेश कहकर हवा में उड़ा सकते हैं क्योंकि यह हमारी ऐतिहासिक फितरत है। लेकिन अगर कलाम के इस बयान को गंभीरता से ले, तो एहसास होता कि उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज में ही सही, बाल-संवाद में सही, भ्रष्टाचार के खिलाफ विधवा-विलाप करने वालों के गाल पर जोरदार तमाचा लगाया है। जो लोग भ्रष्टाचार के लिए हमेशा राजनेता और अफसरशाहों को कोसते रहते हैं उन्हें कलाम ने एक रास्ता दिखाया है। भ्रष्टाचार के टब में डूबकर, भ्रष्टाचार को गाली देने वाले लोग शायद इससे सबक लें। इससे आम नागरिक की आंखें खुल सकती हैंे, जो आज भ्रष्टाचार को सामाजिक मान्यता देने की मानसिकता में कैद हो चुके हैं। कलाम का संदेश साफ है कि अगर गंगा को साफ करना है, तो पहले गंगोत्री में साबून लगाओ। ईमानदार समाज ही वह संस्थाओं को बेइमान होने से रोक सकता है।
मुझे नहीं मालूम कि उस बच्ची ने कलाम के कथन के निहितार्थ को कितना समझा और जब वह समझने के लायक होगी तब देश में भ्रष्टाचार की सूरत कैसी होगी। लेकिन अगर आज की पीढ़ी को भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहिए, तो उन्हें शुरुआत अपने घर से करनी होगी, अपने आप से करनी होगी।
दृष्टा की यही खूबी होती है। वे दूर की ही नहीं देखते, बल्कि बिल्कुल पास घट रहीं उन घटनाओं को भी देख लेते हैं, जिन्हें सामान्य इंसान आंख रहते भी नहीं देख पाता। हमारे युग में भी एक दृष्टा हैं। जिनका नाम है- अब्दुल पाकिर जैनुलबद्दीन कलाम। एपीजे कलाम एक बेहतरीन वैज्ञानिक ही नहीं, बल्कि हमारे समय के महत्वपूर्ण चिंतक भी हैं। वे कुशाग्र बुद्धि के स्वामी तो हैं ही साथ ही उनके पास एक संवेदनशील हृदय भी है।यही कारण है कि उनकी आंखों पर जवाने के प्रपंची चीलमन कभी नहीं लगे। वे हमेशा सकरात्मक सोचते हैं और जो लोग उनसे कुछ जानने-समझने पहुंचते हैं, उन्हें सही रास्ता दिखाते हैं। चाहे मीडिया के लोगों को गांव की ओर झांकने की सलाह हो या फिर देश के बेहतर भविष्य के लिए आत्मनिर्भर बनने का उनका रोड मैप (विजन 2020 और विंग आफ फायर) हो । हर बार कलाम ने दूर की, बहुत दूर की और मार्के की बात कही। कलाम हमारे युग की समस्याओं और चुनौतियों पर बारीक दृष्टि रखते हैं और इन चुनौतियों कीआगामी तस्वीरों को भी देखने में सक्षम हैं। वे अपनी राय देकर हमें सचेत करते रहते हैं, एक वैज्ञानिक की तरह नहीं, बल्कि एक निलिप्त गुरु की तरह। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम उनकी सलाह के मर्म को कितना समझ पाते हैं और उन पर कितना अमल करते हैं ।
कल कलाम रांची में थेऔर यहां उन्होंने युगांतकारी महत्व की बातें कह डालीं। हालांकि उनके इस कथन में सनसनी नहीं है और न ही इसमें खबरिया चैनल की कढ़ाही में तलने लायक मसाला ही है। लेकिन उनके कथन में हमारे समय के सबसे बड़े सामाजिक-कैंसर का इलाज छिपा हुआ है। कलाम साहेब कल रांची में बच्चों के साथ संवाद कर रहे थे। बच्चे उन से तरह-तरह के सवाल पूछ रहे थे और वे सोच-सोच कर उनकी जिज्ञाशा को शांत कर रहे थे। तभी एक बच्ची ने उनसे पूछ डाला- " सर, अपने देश को भ्रष्टाचार से किस प्रकार मुक्ति मिल सकती है ? ' कलाम कुछ पलों तक खामोश रहे। फिर उन्होंने जो कहा उससे समकालीन भारतीय समाज की नैतिक दरिद्रता नमूदार हो गयी और एक ऐसा सच उजागर हो गया जिसे आंख रहते हम नहीं देख पाते और अगर देखते भी हैं, तो उसे झुठला कर आगे बढ़ जाते हैं। बिल्कुल "धरती बरसे अंबर भीजे' की तरह। कलाम ने कहा, अगर देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलानी हैै, तो पहले अपने घरों से इसे खत्म करो। अपने मां-पिता को गलत काम करने से रोको।
लोग कलाम के इस बयान को हल्के में ले सकते हैं और इसे एक विद्वान का विनम्र संदेश कहकर हवा में उड़ा सकते हैं क्योंकि यह हमारी ऐतिहासिक फितरत है। लेकिन अगर कलाम के इस बयान को गंभीरता से ले, तो एहसास होता कि उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज में ही सही, बाल-संवाद में सही, भ्रष्टाचार के खिलाफ विधवा-विलाप करने वालों के गाल पर जोरदार तमाचा लगाया है। जो लोग भ्रष्टाचार के लिए हमेशा राजनेता और अफसरशाहों को कोसते रहते हैं उन्हें कलाम ने एक रास्ता दिखाया है। भ्रष्टाचार के टब में डूबकर, भ्रष्टाचार को गाली देने वाले लोग शायद इससे सबक लें। इससे आम नागरिक की आंखें खुल सकती हैंे, जो आज भ्रष्टाचार को सामाजिक मान्यता देने की मानसिकता में कैद हो चुके हैं। कलाम का संदेश साफ है कि अगर गंगा को साफ करना है, तो पहले गंगोत्री में साबून लगाओ। ईमानदार समाज ही वह संस्थाओं को बेइमान होने से रोक सकता है।
मुझे नहीं मालूम कि उस बच्ची ने कलाम के कथन के निहितार्थ को कितना समझा और जब वह समझने के लायक होगी तब देश में भ्रष्टाचार की सूरत कैसी होगी। लेकिन अगर आज की पीढ़ी को भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहिए, तो उन्हें शुरुआत अपने घर से करनी होगी, अपने आप से करनी होगी।
2 comments:
बिलकुल सही कहा आपने। किसी भी काम की सबसे अच्छी शुरूआत स्वयं से ही होती है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
kalam sahab ki batein kal samachar patron ke dwara suni thi aur aaj khud sunne ka saubhagya mila. Bhrastachar ke sambandh mein unka waqtavya ho ya charecter building ka hu sab unke chintan se abhibhoot ho gaye. aapne sahi kaha ki unki baat ko amli jama pehnana humare khud ke hath mein hai.
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