Friday, July 17, 2009

... और अब सभी सब्जियां 4 से 6 रुपये

जीतेंद्र राम

भाइयों/बंधुओं, आप सभी देख रहे होंगे कि कुछ दिनों सेमहंगाई को लेकर आम लोग बाप-बाप कर रहे हैं। अखबारमें महंगाई की कहानी हर छोट- बड़े संवाददाता की जबानीछप रही है। खाद्य सामग्री की बात तो लोग कम ही करते हैं, क्योंकि उसे लोगों को सप्ताह या महीने में एक-दो बार हीखरीदना पड़ता है। लेकिन, सब्जियां तो लोगों को रोजखरीदनी पड़ती हैं और इसके लिए भी लोगों में हाहाकारमचा हुआ है। लेकिन जरा इस पर गौर फरमाएं - टमाटररुपये, गोभी 7-8 रुपये, करेला 4-5 रुपये, भिंडी 5-6 रुपये, पटल 4-5 रुपये, खीरा-4-5 रुपये, बैगन 4-5 रुपये, कद्दू 4-5 रुपये, फ्रेंचबीन 15-20 रुपये, मिर्चा 20-25, बोदी 4-5 रुपये, ओल 4-5 रुपये, झिंगी 3-4 रुपये, परवलरुपये, रुगड़ा (फुटका) 15-20 रुपये, यही तो है बाजार में सब्जियों के भाव। फिर भी हमें लगता है कि बाजार मेंअनैती का आग लगा हुआ है। बताइये भला। आपको लगता होगा कि मैं मजाक कर रहा हूं, है न। या फिर पिछलीसदी का रेट बता रहा हूं। अगर आपको यह सब नहीं लग रहा है तो यह जरूर लग रहा होगा कि मैं किसी दूर-दराजगांव का रेट बता रहा हूं, है न। लेकिन, नहीं। यह रेट है रांची के बाजारों का। लालपुर, कोकर, बहुबाजार, हरमू, डोरंडा, हीनू, बिरसा चौक, कांटा टोली, अशोक नगर आदि जगहों पर भी तकरीबन इसी कीमत पर सब्जियां बिकरही हैं। अब आपको लगा रहा होगा कि यह एकदम बकवास, झूठ और बेकार खबर है। शायद इस लेखक को महीनोंगुजर गये होंगे सब्जी खरीदे या बाजार गये हुए, इसलिए यह रेट बता रहा है। लेकिन, नहीं। हां, मैं रोज तो सब्जीनहीं खरीदता, लेकिन आपकी तरह मैं भी हर रोज सब्जियों का भाव अपने भाई, बंधुओं या उनके परिजनों से सुनही लेता हूं। लेकिन आप सोच रहे होंगे कि आप सब कुछ जानते हुए भी यह रेट बता कर लोगों को क्या बतानाचाहते हैं। तो भाइयों मैं यह बताना चाहता हूं कि सब्जियों के भाव वही है, बस बाप की जगह बेटे ने ले लिया है।यानी बाजार में वजन का मामला कुछ इधर-उधर हो गया है। पहले हम सब्जियों के भाव किलो में सुनते थे औरअब पाव में। है सही बात। क्या इसमें कोई दो राय बनती है, नहीं न। आज जब सब्जियां इतनी महंगी हो गयी हैं, तो भला कोई सब्जी विक्रेता क्या बेवकूफ है, जो अपने ग्राहक को भगाने के लिए आपको 16, 20, 24, 60 और 80 रुपये किलो बतायेगा। इसलिए भाइयों, भाव वही है सिर्फ किलोग्राम की जगह ग्राम ने ले लिया है। क्यों, क्या ख्यालहै आपका। है सही बात।


7 comments:

श्यामल सुमन said...

बात कहने का अंदाज पसंद आया।

लेकिन सरकारी आँकड़े बताते हैं कि मँहगाई जीरो से भी नीचे चली गयी है। आम नागरिक भले झूठ बोल ले किन्तु सरकार भी कभी झूठ बोलती है क्या?

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

dharmendra said...

excellent. maine bhi socha ki aakhir ranchi me yeh position hai to jaldi jharkhand ki aur jana chahiye. lekin aapne mujhe din me hi rone ko majboor kar diya.
jo bhi ho behatrin likha hai aapne. mujhe bhi kalam chalane ko vivas kar diye.

संगीता पुरी said...

5 वर्ष पहले दिल्‍ली गयी थी .. तो पहली बार सब्जियों के भाव पाव में सुना था .. वह हवा अब झारखंड में भी आ गयी .. खुशी मनाएं या ... ?

PN Subramanian said...

वह बहुत खूब लिखा. वैसे पूरे भारत में यही आलम है. चुनाव के बाद ऐसी स्थिति तो बननी ही थी.

मोनिका गुप्ता said...

इस महंगाई ने तो दाल रोटी पर आफत मचा दी, फिर सब्जी तो दूर की बात है। सचमुच वह दिन दूर नहीं जब हर जगह सब्जी और खाद्य पदार्थों के दाम पाव में ही जाने जाएंगे। क्योंकि किलो मे सुनने के बाद लेने वाले का रहा सहा दम ही बाहर निकल जायेगा। हो सकता है कि बढ़ती महंगाई चीजों के माप की प्रणाली ही बदल दें। जिसमें किलोग्राम दुर्लभ जीवों की तरह लुप्तप्राय हो जाये। स्थिति चिंतनीय है। एक बहुत बड़े बदलाव का आगाज हो रहा है। बस देखते जाइए आगे क्या क्या होता है।

एम अखलाक said...

वाह भाई, बेहतर लिखा है आपने, लिखते रहिए। महंगाई सचमुच मार गयी...
आपका
एम अखलाक

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

सही लिखा भाई |