
सात-आठ जुलाई की रात रांची के पहाड़ी मंदिर के पीछे स्थित यारपुर हाउस गेट के बाहर दो अपराधियों और तीन थाने की पुलिस के बीच मुठभेड़ हुआ। इस मुठभेड़ में पुलिस ने करीब 25 गोली चलाई और अपराधियों ने दस। यह कहानी मेरी नहीं है, बल्कि पुलिस कह रही है। इस इनकाउंटर में क्रमशः दो युवक राजकुमार सिंह और दिनेश गोप की जान गयी। इन दोनों में से एक के बारे में पुलिस का कहना है कि वह जेल जा चुका था और दूसरे के बारे में कोई जानकारी नहीं है। पुलिस ने इस इनकाउंटर के बारे में जो कहानी बतायी है, वह सरासर झूठी प्रतीत होती है। अपराधियों के पास से 6.8 एमएम बोर की रिवाल्वर व 7.5 एमएम बोर की पिस्तौल बरामद किये गये, जो उस समय भी मृतकों के हाथ में ही थे, जिस समय इनमें से एक को पंद्रह गोली और दूसरे को सात गोली लग चुकी थी। क्या किसी को एक गोली लगने के बाद भी वह अपनी हाथ पर संतुलन रख सकता है? मृतकों के हाथ में जो हथियार थे, दोनों जंग लगे हुए थे। साफ लग रहा था कि दोनों लड़कों को कहीं और मार कर पहाड़ी के पास फेंका गया है और बाद में सुबूत के तौर पर दोनों के हाथ में पिस्तौल खोंस दी गयी है। इतना ही नहीं, जिस रात घटना हुई, उस रात आसपास रिहायशील इलाका होने के बावजूद न किसी को एक गोली चलने की आवाज़ सुनाई दी और न ही किसी के भागने दौड़ने, चीखने-चिल्लाने, न पुलिस की वार्निंग, न धमक कुछ नहीं। लोग बाग सुबह उठे तो देखा कि दो लाशों पर मक्खियां भिनभिना रही हैं और दोनों से बदबू आ रही है। क्या किसी लाश से केवल दो तीन घंटे के इनकाउंटर के बाद बदबू आना शुरू होता है। और तो और, जब इनकाउंटर तीन थानों की पुलिस ने किया, तो लाश को रात में ही क्यों नहीं पंचनामे के लिए उठवाया गया, उसे मुहल्ले में ही छोड़ कर पुलिसवाले कहां चम्पत हो गये थे। पुलिस की कहानी बताती है कि सोमवार की रात दोनों युवक किसी की हत्या की योजना बना कर निकले थे। रांची के एसएसपी प्रवीण कुमार कह रहे हैं कि गुप्त सूचना के बाद एक टीम का गठन किया गया। टीम में सुखदेवनगर थाना प्रभारी फगुनी पासवान, डेली मार्केट थानेदार मिथिलेश कुमार और हिदंपीढ़ी थाना प्रभारी राजीव रंजन लाल को शामिल किया गया था। पुलिस किशोरगंज से निकलनेवाले सभी रास्ते पर तैनात थी। दोनों युवक एक बाइक पर सवार होकर जयप्रकाश नगर की ओर से निकले थे। पुलिस ने दोनों को रुकने को कहा। पुलिस को देखने पर दोनों बाइक मोड़ कर भागने लगे। इसके बाद अपराधियों ने पुलिस को निशाना बना कर फायरिंग शुरू कर दी। पुलिस ने भी गोलियां चलायी। दोनों अपराधियों को मार गिराया। यह है पुलिस का दावा, लेकिन आसपास के लोगों का साफ कहना है कि उन्होंने रात में एक भी गोली चलने की आवाज नहीं सुनी, जबकि पुलिस की कहानी बताती है कि वहां तीस से भी ज्यादा गोली चली होगी। घटनास्थल पर खून का एक कतरा तक नहीं है, जबकि दोनों युवकों को छलनी-छलनी कर दिया गया था। रांची में इनकाउंटर के नाम पर युवकों को मार डालने का अपराध कोई नया नहीं है। इसे बिहार के ही कालक्रम में 1989-90-91 में एक आइपीएस ने रांची में शुरू किया था। उस दौरान अपराधियों का तो सफाया हो गया, लेकिन ज्यादातर ऐसे अपराधी मारे गये, जिनका अपराध कहीं से भी मौत की सजा के काबिल नहीं था। 90 के ही स्टाइल में एक बार फिर रांची थर्रा गयी है खाकी के खौफ से। क्या ऐसी स्थिति में आम आदमी पुलिस के रूप में अपना रक्षक देख पाने में कभी सफल होगा।
8 comments:
वास्तव में आम आदमी के लिए पुलिस होती ही नहीं। जहां काम करना होता है वहां तो पुलिस पहुंचती नहीं। रात के दो बजे आवासीय इलाके में तीस राउंड गोली चलाकर पता नहीं ये पुलिसवाले क्या साबित करना चाहते है। पुलिस की ऐसी करतूतों से यही आभास होता है कि अपराधी मारने के नाम अब पुलिस विभाग भी खानापूर्ति कर रही है। वैसे भी जहां काम करना होता है वहां तो पुलिस बाद में पहुंचती है और जहां बेकसूरों को मारकर अपनी पीठ खुद थपथपानी होती है वहां पुलिस इसी तरह का मजाक करती है।
thik hai
99 प्रतिशत ऐसे ही होते हैं। क्या किया जा सकता है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
इस तरह की हरकत पुलिस पहली बात तो नहीं कर रही है, शायद बैंक मनेजरों की तरह इन्हें भी अपना कोटा पूरा करना होता होगा, सो कर रहे हैं, वैसे भी झारखण्ड बनाने से सुधार नहीं बिगाड़ हुआ है, पुलिस महकमा को लाइसेंससुदा गुंडा वर्ग ही मानना चाहिए, और इनसे इससे बेहतर क्या उम्मीद की जा सकती है...
नदीम,
खुश रहो,
तुम्हारा लेख पुलिस की बर्बरता के बारे में पढ़ा, इस तरह की घटनाओं से हम इतने ज्यादा दो-चार हो चुके हैं रांची में की पुलिस की 'रक्षक' वाली छवि कैसी होगी कल्पना से परे हो चुकी है, सच पूछो तो इन लोगों से मुझे व्यक्तिगत रूप से सिर्फ और सिर्फ ऐसी ही बातों की उम्मीद है, अगर ये लोग कुछ अच्छा कर जायेंगे तो शायद हम झेल नहीं पायेंगे....
अब तो समझ गए होगे की पुलिस महमके से हम कितने निराश हैं, कुत्ते की दुम शायद सीधी हो जाए, शायद सूरज पश्चिम से निकल आये, शायद कतरे में समुन्दर समा जाए, केलं इस तथाकथित 'रक्षक' वर्ग का सुधरने की उम्मीद करना, अपने समय को दुरूपयोग है और कुछ नहीं........
यही तो झारखंड है! यहां कुछ भी संभव है! वैसे भी झारखंड राज्य में अभी "गवर्नर राज" नहीं "गोबरनर राज" है। जहां महामहिम के सभी सलाहकार समेत खुद की गाडियों के आगे काले आैर खाकी की वर्दी वाले गुर्गे चलते हैं आै खुद उन लोगों के आंखों के आगे एक आम आदमी चाहे जितना ही सरीफ आदमी क्यों न अपनी गाडी में अपनी मां,बेटी या बीवी को बिठाये हो, को उनके गुर्गे न जाने कैसी कैसी गालियां देते हैं आैर अपनी डंडों का खौफ उस आदमी पर एसा डालते हैं कि वह बिना अगे पीछे देखे गिरते बजरते उनका रास्ता छोड देता है। इतना ही नहीं उनकी गंदी जुबान से निकले वाली भद्दी भद्दी गालियों को मानो उसने सुना ही नहीं। आैर यह सब नजारा देख अपनी कालर उंची कर अपना रोब समझनेवाले ये लालबत्तीधारी जनाब इसे अपनी प्रतिष्ठा समझते हैं। जब पुलिस इन्हीं की आंखों के सामने एसा करते हैं, तो इनके नहीं रहते वे आम जनों को किस हद तक परेशान करते होंगे समझ सकते हैं। आैर इन्हीं के पाले पोषे हैं यहां की पुलिस तो भला वे क्या कुछ नहीं कर सकते। वर्दी के आगे भला आम जन की क्या अहमियत। यह फर्जी एनकाउंटर कोई नहीं बात नहीं है एसी कार्रवाई यहां गाहे बगाहे होती रहती है। यही तो है "गोबरनर राज"! झारखंड!
ह्त्या की मानसिकता वाले निर्दयी लोगों को वर्दी और हथियार देकर जन्राक्षा के काम में लगाना एक अक्षम्य अपराध है. कम-से-कम ऑसी घटनाओं के प्रकाश में आने पर तो निष्पक्ष जांच, पीड़ित परिवारों को मुआवजा और हत्यारों को समुचित सज़ा मिलनी ही चाहिए.
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