जितेंद्र राम
है न अजीब बात। भला भगवान शिव अपनी आरती को छोड़, कहीं फिल्मी गाने सुनते हैं, और वह भी "ऐसी दीवानगी, देखी नहीं कहीं, मैंने इसलिए ..., तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं..., वो लड़की बहुत याद आती है..., तेरा सरापा कैसा है जानम... आदि- आदि।' नहीं न। अरे भाई, इस हाई-टेक युग में भला भगवान शिव कहां पीछे रहनेवाले हैं। शिवभक्त उन्हें आरती के साथ-साथ फिल्मी गीतों की धुन भी सुनाने से कोई कुरेज नहीं कर रहे हैं। यह कोई लतीफा या कहानी नहीं, बल्कि यह एक सच्चाई है। यह है आखों देखी और कानो सुनी सच्चाई। तो जरा गौर करें, वैसे तो मैं मंदिर बहुत कम ही जाता हूं, लेकिन हां कभी मौका मिले तो उससे चुकता भी नहीं हूं। सावन की सोमवारी के दिन हमें शिव मंदिर (पहाड़ी मंदिर) जाने का मौका मिला, सो मैं चला गया। मैं भी उन श्रद्धालुओं में शामिल हो गया, जो भगवान भोले के जलाभिषेक को जा रहे थे। इन्हीं श्रद्धालुओं में एक महिला श्रद्धालु भी शामिल थीं। महिला श्रद्धालु कोई 22-25 साल की रही होंगी। ज्यों ही सीढ़ियां चढ़ना शुरू किया कि महिला के पास एक फोन आता है और मोबाइल का रिंग टोन है "ऐसी दीवानगी, देखी नहीं कहीं मैंने...' और फिर बकौल महिला, "हैलो, जी अभी-अभी तो आयी, आप दिखाई नहीं दिये, बहुत इंतजार के बाद हम चल दिये, अभी तो आधी सीढ़ी ही चढ़ी हूं, ठीक है, आप वहीं रहिए, मैं वहीं आती हूं।' इसके बाद फोन रखती हुई कुछ फुसफुसाते हुए आगे बढ़ती हैं। थोड़ी देर बाद फोन की घंटी फिर बजती है ऐसी दीवानगी, देखी नहीं कहीं, मैंने ...। तब तक यह महिला श्रद्धालु मंदिर के द्वार तक पहुंच चुकी होती हैं। फिर फोन रिसिव करते हुए, "हां बोलिए, अभी तो मंदिर द्वार तक पहुंची हूं, तबतक पंडित जी कहते हैं "हां यहां सिर्फ जलाभिषेक करें और आगे बढ़ें' महिला कहती हैं' बहुत भीड़ है जी, क्या! अरे कुछ सुनाई नहीं दे रहा है, एक मिनट, हां पंडित जी यह लीजिए नारियल, हां प्रसादी भी है, हां बोलिए, क्या! कहां जा रहे हैं! इसी बीच "ये लीजिए पंडित जी पैसा, अरे पंडित जी को पैसे दे रही थी, कितनी देर में! नहीं-नहीं जल्दी आना, फिर- चेंज नहीं है बाबा, क्या! आधे घंटे लगेंगे, मैं चली जाऊंगी, ठीक है, जल्दी आइएगा। यह सब सुन कर मैं कुछ सोच पाता कि एक दूसरी श्रद्धालु के फोन की घंटी बजती है, जिसका रिंग टोन रहता है, "तेरे बिना जिंदगी से काई शिकवा तो नहीं, शिकवा नहीं...'। यह सब सुन मैं कुछ देर मंदिर परिसर में बैठ गया और देखने लगा। आधे धंटे के दौरान मैंने देखा मंदिर परिसर में पहुंचे श्रद्धालुओं के मोबाइल के रिंग टोन्स भी अजीब-अजीब होते हैं, किसी में "चांद जैसे मुखड़े पे बिंदिया सितारा..., वो लड़की बहुत याद आती है, वो लड़की बहुत याद आती है..., तेरा सरापा, ऐसा है जानम..., तुझे प्यार करने को जी चाहता है... आदि-आदि। और वैसे भी आजकल श्रद्धालु (भक्त) मंदिर जायें या मस्जिद, गुरुद्वारा जायें या गिरिजाघर भला अपने मोबाइल को घर में कैसे छोड़ सकते हैं। हां बहुत होगा तो कुछ लोग अपने-अपने मोबाइल का स्विच ऑफ कर देंगे या नहीं तो साइलेंट कर लेंगे। लेकिन ऐसा सभी तो करेंगे नहीं। और करें भी क्यों। न जाने कब, कहां किसका फोन आ जाये। और हो सकता है किसी श्रद्धालु को किसी का इंतजार भी करना हो। इधर-उधर खोजने से भल अच्छा है कि मोबाइल के सहारे अपने संबंधी-दोस्त-प्रेमी को जगह का पता आसानी से बता दिया जाये, जिससे मिलने में सुविधा हो सुविधा होगी और समय भी बचेगा।
1 comment:
मस्जिद में यह पाबन्दी है क्यूंकि नमाज़ में खलल पढ़ जायेगी. नमाज़ शांत होकर एकाग्र होकर पढ़ी जाती है और गुरुद्वारा में भी इसकी पाबन्दी है और चर्च में भी....
लेकिन मंदिर में मोबाइल बंद हो या ना हो कोई फ़र्क नहीं पड़ता क्यूंकि वहां पर तो पहले से ही फ़िल्मी गणों की तर्ज में भक्ति गीत बना कर बड़े मज़े से सुना जाता है. मिसाल के तौर पे
काँटा लगा...sss के तर्ज़ पे मैया के द्वार sss
इसी तरह से सैकडों गाने हैं......
तो अगर मोबाइल पर यही रियल गाने बजे
क्या फ़र्क पड़ता
Post a Comment