Friday, August 14, 2009

यूँ हीं...

ख्याल आते रहे
सोहबत में
ज़रुरत के
ज़िन्दगी गुज़रती रही

इशारों को कैसे
जुबां दे दें हम
मोहब्बत बच जाए
दुआ निकलती रही

रेत के बुत से
खड़े रहे सामने
पत्थर की इक नदी
गुज़रती रही

रूह थी वो मेरी
लहू-लुहान सी
बदन से मैं अपने
निकलती रही

बेवजह तुम
क्यों ठिठकने लगे हो
मैं अपने ही हाथों
फिसलती रही

आईना तो वो
सीधा-सादा था 'अदा
मैं उसमें बनती
संवरती रही

8 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

आईना तो वो
सीधा-सादा था 'अदा
मैं उसमें बनती
संवरती रही

क्या बात है, बहुत बढ़िया !

नदीम अख़्तर said...

आप आये बहार आयी। और हम लोगों को आपने इस कलाम के जरिये, स्वतंत्रता दिवस का कितना बेहतरीन तोहफा दिया है, मैं बता नहीं सकता। मैं बहुत बहुत खुश हूं।

स्वप्न मञ्जूषा said...

सभी को:
“स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !”

प्यारे नदीम,
ये मेरी खुशकिस्मती है की मैं 'रांची हल्ला' के साथ जुड़ पाई ...
यह एक समर्थ ब्लॉग है..
इसके साथ बंधना खुद तो सबल बनाना है..
आर्शीवाद.
आपा

निर्मला कपिला said...

रेत के बुत से
खड़े रहे सामने
पत्थर की इक नदी
गुज़रती रही
अदा जी लाजवाब अभिव्यक्ति है
“स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

Mithilesh dubey said...

अच्छी रचना
कृष्ण जन्माष्टमी की व स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

RAJNISH PARIHAR said...

nice..one!!!!

मनोज भारती said...

जिंदगी का
वो आइना तो
सीधा-सादा था
मैं उसमें क्यों
बनती संवरती रही ?

सारी जिंदगी का
फलसफ़ा इसी अफसोस के साथ
खत्म क्यों होता है ?

जिंदगी बार बार
इशारों में कुछ कहती है
लेकिन हर बार
चूक जाते हैं हम

जाने क्यों ...
रेत के बुत से
खड़े रहे सामने
पत्थर की इक नदी
गुजरती रही

और ऐसे में यह
जीवंत जीवन की धारा भी
पत्थर सी लगती है

और जीवन हाथ
से फिसलने लगता है
इशारों को कैसे
जुबां दे दें हम
कि मुहब्बत बच जाए
बस यही एक...
दुआ निकलती रही

लेकिन ज़िन्दगी गुजरती रही
ख्याल आते रहे
सोहबत में ...
जरूरत के
जिन्दगी गुजरती रही
और
हम चूक गए एक
और अवसर से
जो जी सकते थे ????

मनोज भारती said...

अदा जी !!!

जीवन की बारीक
अनुभुतियों को
सुंदरता के साथ
काव्य में उकेरा है
आपने !!!

आपकी हर अदा
जीवन पर फिदा !!!