यूं तो ऎसे वक्त पर इस किस्म की नकारात्मक बातों को गलत माना जाता है पर मेरी समझ में यह अत्यंत प्रासंगिक है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई राजशेखर रेड्डी के 24 घंटे से अधिक तक गायब होने और फिर मौत की पुष्टि ने पूरे देश की आंतरिक सुरक्षा और हमारी सूचना तकनीक की तैयारियों की पोल खोल दी है। पूर्व में सुरक्षा तैयारियों के बारे में कई किस्म के दावे किये गये थे। यहां तक कि बहुचर्चित मुंबई हमले के बाद इस दिशा में कुछ सुधार भी हुए थे पर कल से लेकर आज तक के घटनाक्रम के बाद असली सवाल यह है कि क्या वाकई देश ने ऎसी चुनौतियों के लिए खुद को तैयार कर रखा है। इस विषय पर अधिक नकारात्मक टिप्पणी भी शायद समयोचित नहीं पर यह मसला पूरे देश के लिए विचार का मुद्दा जरूर है। दूसरा मसला सूचना तकनीक का है। इस तकनीक में हम लगातार अमेरिका सहित अन्य विकसित देशों से आगे होने का दावा करते रहे हैं। केंद्र और राज्यों ने अपने यहां सूचना तकनीक का बेहतर इस्तेमाल करने के नाम पर करोड़ों नहीं अरबों-अरब रुपये खर्च किये हैं। यह सिलसिला अब भी जारी है। सवाल है कि क्या सारी तकनीक सिर्फ शहरी इलाकों को ध्यान में रखते हुए बनायी जा रही है, जिसे आम इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले बिना किसी अतिरिक्त जानकारी और प्रशिक्षण के सिर्फ गूगल अर्थ से देख सकता है। 20 घंटे के बाद भी एक मुख्यमंत्री के हेलीकाप्टर का पता नहीं चल पाता, सूचना तकनीक के विकसित होने की दावेदारी में यह घटना हमारी वास्तविकत तैयारियों का परिणाम घोषित करने वाला है। बताते चलें कि अंतरि& से पूरी दुनिया पर नजरदारी करने की दावेदारी के बीच हमारे ही देश में कई इलाके ऎसे हैं, जिनके राजस्व नक्शे आज भी उपलब्ध नहीं हैं। इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले जिस मित्र को इस बात पर भरोसा नहीं, वह छत्तीसगढ़ राज्य सरकार के भू राजस्व के रिकार्ड को इंटरनेट से देख सकता है। दंतेबाड़ा इलाके में यह नक्शा आज भी हाथ ले बनाये गये नक्शे के तौर पर है।
चूंकि मसला आंध्र प्रदेश का है, इसलिए यह बहस और भी प्रासंगिक है। आंध्र प्रदेश को सूचना तकनीक के मामले में अन्य राज्यों की तुलना में सबसे आगे रखा जाता है। दावा तो इस बात का भी है कि वहां के छोटे से छोटे कस्बों तक के छोटे से छोटे भूखंड का आंकड़ा और उन्हें अद्यतन करने की सुविधा इस राज्य में हैं। अंतरिक्ष विज्ञान में लगातार अनुसंधान जारी रखने के क्रम में भी भारत की दावेदारी अन्य विकसित देशों की तुलना में बहुत कम नहीं है। सवाल यह है कि क्या वाकई हम इस तकनीक से लैश हो पाये हैं अथवा मुंगेरी लाल के हसीन सपने दिखाकर देश की जनता को भरमाया जा रहा है। वह कौन सी बात है कि उन्नत विज्ञान की तकनीक होने की दावेदारी के बाद भी मुख्यमंत्री की तलाश में ऎसी कोई तकनीक काम नहीं आ रही और हमें आज भी अमेरिका के सामने मदद के लिए हाथ फैलाना पड़ रहा है। यह वाकया तब हम सभी के सामने हैं जबकि पोखरण (2) की उपलब्धियों पर एक नई बहस छिड़ी हुई है।
1 comment:
jab reddy hawa me gayab hue the aur unhe dhudne me deri ho rahi thi to mere dimag me yeh baat aayi ki aakhir ek chief minister ko hum itne samay me nahi dhund sakte to phir hum kis rup me develope ho rahen hain.
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