महामृत्युंजय मंत्र हिन्दी पद्यानुवाद
ॐ त्र्यंम्बकं यजामहे सुगंधिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बंधनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
अर्थ: त्रिनेत्र शिव जी को प्रणाम, जो सुगंध से परिपूर्ण हैं और मानव जाति का पालन करते हैं। वे मुझे माया और मृत्यु से बचाएं, जिस तरह पकी हुई ककडी अपनी बेल से स्वत: अलग हो जाती है, ठीक उसी तरह हमें संसार के दुखों और मोह-माया के बंधनों से मुक्ति प्रदान करे।
विधि: संध्याकाल में दीपक जलाकर, पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके शांत भाव से 108, 28 या 11 बार जप करना चाहिए।
लाभ: शरीर स्वस्थ रहता है और दुर्घटनाओं से बचाव होता है।
हिन्दी भावानुवाद
द्वारा ..... प्रो. सी. बी. श्रीवास्तव विदग्ध
सतत शांति सुख वृद्धि हित , शिव को करो प्रणाम
माया ,मृत्यु ,औ" मोह से रक्षक जिनका नाम !!
6 comments:
आभार!!
आभार!!
आभार!!
आभार!!
प्रोफेसर साहब,
प्रणाम,
कितनी अजीब बात है कल ही मुझे मालूम हुआ की मुझ पर मारकेश की दशा है और मुझे महामृत्युंजय का पाठ करना है. किंगकर्तव्यविमूढ़ थी कि कहाँ से यह मन्त्र मिलेगा कि आज मेरे भाई नदीम कि वजह से ये लेख मिल गया. वैसे तो जो होना होता है वही होता है और मनुष्य को किसी भी परिस्थिति के लिए तैयार भी रहना चाहिए फिर भी आपका लेख देख-पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया..
ह्रदय से आभारी हैं हम आपके...
धन्यवाद..
प्रोफेसर साहब,
प्रणाम,
कितनी अजीब बात है कल ही मुझे मालूम हुआ की मुझ पर मारकेश की दशा है और मुझे महामृत्युंजय का पाठ करना है. किंगकर्तव्यविमूढ़ थी कि कहाँ से यह मन्त्र मिलेगा कि आज मेरे भाई नदीम कि वजह से ये लेख मिल गया. वैसे तो जो होना होता है वही होता है और मनुष्य को किसी भी परिस्थिति के लिए तैयार भी रहना चाहिए फिर भी आपका लेख देख-पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया..
ह्रदय से आभारी हैं हम आपके...
धन्यवाद..
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