कितनी अकुलाहट भरी है जिन्दगी
हर तरफ चीख-पुकार भागमभाग है!!
अब तो मैं अपने ही लहू को पीऊंगा
इक दरिंदगी भरी अब मेरी प्यास है!!
मेरे भीतर तो तुम्हे कुछ नहीं मिलेगा
मुझपर ऐ दोस्त अंधेरों का लिबास है!!
हर तरफ पानियों के मेले दिखलाती है
उफ़ ये जिंदगी है या कि इक अजाब है!!
हर लम्हा ऐसा गर्मियत से भरा हुआ है
ऐसा लगता है कि हयात इक आग है !!
हम मर न जाएँ तो फिर करें भी क्या
कातिल को हमारी ही गर्दन की आस है!!
रवायतों को तोड़ना गलत है "गाफिल"
यही रवायतें तो शाखे-दरख्ते-हयात हैं!!
5 comments:
bahut khoob likhte ho miyaan
बहुत सुंदर रचना है, आज के इंसान की जिंदगी को बयाँ करती हुई।
सचमुच यही आज का सच है !!
bilkul yah aaj ka sach hai...........shukriya
poem is so right...
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