Friday, October 9, 2009

शूर्पनखा !


शूर्पनखा ! हे सुंदरी तू प्रज्ञं और विद्वान्,
किस दुविधा में गवाँ आई तू अपना मान-सम्मान
स्वर्ण-लंका की लंकेश्वरी, भगिनी बहुत दुराली
युद्ध कला में निपुण, सेनापति, पराक्रमी राजकुमारी
राजनीति में प्रवीण, शासक और अधिकारी
बस प्रेम कला में अनुतीर्ण हो, हार गई बेचारी
इतनी सी बात पर शत्रु बना जहान
शूर्पनखा ! हे सुंदरी तू प्रज्ञं और विद्वान्,

क्या प्रेम निवेदन करने को, सिर्फ मिले तुझे रघुराई ?
भेज दिया लक्ष्मण के पास, देखो उनकी चतुराई !
स्वयं को दुविधा से निकाल, अनुज की जान फँसाई !
कर्त्तव्य अग्रज का रघुवर ने, बड़ी अच्छी तरह निभाई !
लखन राम से कब कम थे, बहुत पौरुष दिखलायी !
तुझ पर अपने शौर्य का, जम कर जोर आजमाई !
एक नारी की नाक काट कर, बने बड़े बलवान !
शूर्पनखा ! हे सुंदरी तू प्रज्ञं और विद्वान्,



ईश्वर थे रघुवर बस करते ईश का काम
एक मुर्ख नारी का गर बचा लेते सम्मान
तुच्छ प्रेम निवेदन पर करते न अपमान
अधम नारी को दे देते थोड़ा सा वो ज्ञान
अपमानित कर, नाक काट कर हो न पाया निदान
युद्ध के बीज ही अंकुरित हुए, यह नहीं विधि का विधान
हे शूर्पनखा ! थी बस नारी तू, खोई नहीं सम्मान
नादानी में करवा गयी कुछ पुरुषों की पहचान

8 comments:

bijnior district said...
This comment has been removed by the author.
bijnior district said...

लखन राम से कब कम थे, बहुत पौरुष दिखलायी !
तुझ पर अपने शौर्य का, जम कर जोर आजमाई !
एक नारी की नाक काट कर, बने बड़े बलवान !
शूर्पनखा ! हे सुंदरी तू प्रज्ञं और विद्वान्,
बहुत शानदार कविता। सुर्पणखा ने शादी का ही तो प्रस्ताव किया था। यह प्रस्ताव गलत क्या था।

परमजीत सिहँ बाली said...

विचारणीय रचना।

राजीव तनेजा said...

नई सोच के साथ लिखी गई सुन्दर रचना

विनोद कुमार पांडेय said...

थोडा हट कर परंतु बेहतरीन रचना...काव्यात्मक भाव बहुत सुंदर तरीके से गढ़े गये है..
सुंदर रचना ..बधाई

Khushdeep Sehgal said...

शूर्पनखा न होती तो राम के पराक्रम को कौन जानता...रावण के अहंकार का मर्दन कैसे होता...एक नाक ने क्या-क्या नहीं करा दिया था...और एक आज का दौर है लोग नाक कटवा कर भी बेशर्मी से चौड़े होकर घूमते रहते हैं...

जय हिंद...

नदीम अख़्तर said...

बहुत ही बेतरीन...आपा आपके पोस्ट से हमारे यहां रौनक बढ़ गयी। ऐसे ही रंगीन रखें माहौल को।

Randhir Singh Suman said...

nice