Saturday, October 10, 2009

आज उर्मिला बोलेगी |


सावधान ! हे रघुवंश
वो शब्द एक न तोलेगी
मूक बधिर नहीं,कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |

कैकेयी ने दो वरदान लिए
श्री दशरथ ने फिर प्राण दिए
रघुबर आज्ञा शिरोधार्य कर
वन की ओर प्रस्थान किये
भ्रातृप्रेम की प्रचंड ऊष्मा
फिर लखन ह्रदय में डोल गई
मूक बधिर नहीं, कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |

रघुकुल की यही रीत बनाई
भार्या से न कभी वचन निभाई
पितृभक्ति है सर्वोपरि
फिर पूजते प्रजा और भाई
पत्नी का जीवन क्या होगा
ये सोच कभी न गुजरेगी
मूक बधिर नहीं, कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |

चौदह बरस तक बाट जोहाया
एक पत्र भी नहीं पठाया
नवयौवन की दहलीज़ फांद कर
अधेड़ावस्था में जीवन आया
इतनी रातें ? कितने आँसू ?
की कीमत क्या अयोध्या देगी ?
मूक बधिर नहीं, कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |

हाथ जोड़ कर विनती करूँ मैं
सातों जनम मुझे ही अपनाना
परन्तु अगले जनम में लक्ष्मण
राम के भाई नहीं बन जाना
एक जनम जो पीड़ा झेली
अगले जनम न झेलेगी
मूक बधिर नहीं, कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |

1 comment:

M VERMA said...

उर्मिला को तो अब बोलना ही पडेगा.
आज की उर्मिला तो बोलेगी ही