Friday, February 19, 2010

सरकारी शिक्षा और मीडिया


-प्रमोद

मीडिया को राष्ट्र के चतुर्थ स्तम्भ के रूप में जाना जाता है। नि:संदेह मीडिया ने राष्ट्र की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनैतिक मूल्यों की रक्षा में अविस्मरणीय योगदान दिया है तथापि इससे भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि कभी-कभी मीडिया समाज में एक नकारात्मक वैचारिकता के उदय में भी सहायक होता है और जिसका गलत प्रभाव परिलक्षित होता है।

आज के दौर में सरकारी विद्यालयों के प्रति मीडिया का रुख बहुत हद तक नकारात्मकता से युक्त दिखाई पड़ता है। मैंने कई बार टेलीविजन के समाचार चैनलों पर ऐसे समाचार देखे है जिसमे दिखाया गया कि विज्ञान के शिक्षक को 'अमुक' का अणुसुत्र नहीं आता अथवा गणित के शिक्षक को गणित का 'अमुक' सूत्र नहीं पता.....इत्यादि परन्तु मैंने ऐसे समाचार नहीं देखे कि विज्ञान अथवा गणित के 'इस' शिक्षक की पढ़ाने की शैली बहुत अच्छी है। शायद इसका प्रस्तुतीकरण समाज को तथा अन्य शिक्षकों को एक सकारात्मक मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है। क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था में ऐसे एक भी शिक्षक नहीं हैं जिन्हें मीडिया तलाश कर एक सकारात्मक मानदंड के रूप में प्रस्तुत कर सके अथवा वह करना ही नहीं चाहती? यदि जवाब नहीं में आता हो जिसकी संभावना मुझे नहीं है तो भी इसके लिए वह तंत्र जिम्मेवार है जिसने वैसे व्यक्ति को शिक्षक के रूप में नियुक्ति प्रदान की जिसे कुछ आता न हो।

सरकारी विद्यालयों के कई विद्यार्थी आज ऊँचे ऊँचे पदों पर आसीन है। मीडिया वैसे विद्यार्थियों की तलाश कर यदि उनके साक्षात्कार को प्रस्तुत करे तो शायद वहां से भी वैसी कमियों को उजागर किया जा सकता है जो उन विद्यार्थियों ने महसूस की हो तथा उन्हें दूर करने का प्रयास भी किया जा सकता है। इससे उन अभिभावकों में भी एक विश्वास जागेगा जिनके बच्चे सरकारी विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त कर रहे है। यह सब मीडिया के द्वारा सकारात्मक सोच प्रदर्शित करने पर ही संभव हो सकता है। यह मानना निश्चय ही कठिन प्रतीत होता है कि अच्छे शिक्षक और अच्छी पढाई के बगैर भी सरकारी विद्यालयों के कई छात्र आज उच्च पदों पर आसीन होकर राष्ट्र के विकास में अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं।

मीडिया यदि सरकारी विद्यालयों की समस्याओं को समालोचनात्मक रूप में प्रस्तुत करे तो यह सरकारी विद्यालयों के लाखो छात्रों तथा हजारों शिक्षकों के लिए अत्यंत लाभदायक सिद्ध होगा। शिक्षकों का गैर शैक्षणिक कार्यों में लगा दिया जाना, विद्यालयों में इकाई से कम शिक्षकों का होना, कुल वर्गों की संख्या से वर्ग कक्षों की संख्या कम होना इत्यादि कई ऐसे कारण हैं जिनका प्रभाव शिक्षा पर नकारात्मक रूप में पड़ता है। भवन निर्माण तथा मध्याहन भोजन योजना जैसे आर्थिक सन्दर्भों से जोड़कर सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों एवं ग्रामीणों के मध्य मतभेदों की आधारभूमि निर्मित कर दी गयी है जिसे समाचार पत्रों अथवा अन्य मीडिया माध्यमों द्वारा प्रस्तुत नकारात्मक खबरों के कारण और भी बल मिलता है तथा शिक्षकों के लिए कठिन परिस्थितियाँ निर्मित हो जाती हैं.

यह भी नहीं कहा जा सकता कि मीडिया गलत खबरें प्रस्तुत करती है वरन उसके द्वारा नकारात्मक समाचारों की प्रस्तुति पर विशेष ध्यान देना शिक्षा एवं समाज के लिए हितकारी नहीं कहा जा सकता। जिस प्रकार से छोटे बच्चों को महात्मा गाँधी, पंडित नेहरु, सुभाष चन्द्र बोस आदि के रूप में आदर्श व्यक्तियों के सन्दर्भ में बताकर उनमे एक सकारात्मक व्यक्तित्व के विकास का प्रयास किया जाता है वैसे ही शिक्षा व्यवस्था से जुड़े सकारात्मक व्यक्तित्व , योग्य शिक्षकों, सफल छात्रों तथा अच्छे शैक्षणिक वातावरण से युक्त विद्यालयों के सन्दर्भ में बताकर अन्य शिक्षकों, विद्यालयों तथा छात्रों के समक्ष मीडिया द्वारा आदर्श मानदंड प्रस्तुत किया जा सकता है।

वर्तमान समय में जब प्राथमिक शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में सम्मिलित किया जा चुका है और नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार विधेयक लागू करने की बात हो रही है मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है बशर्ते वह एक सकारात्मक सोच के साथ अपना कार्य करे।

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