Saturday, April 17, 2010

चिन्ताएं.......!!

चिन्ताएं.......!!

चिन्ताएं !!
चिन्ताएं-एक लंबी यात्रा हैं-अन्तहीन,
चिन्ताएं-एक फ़ैला आकाश है असीम,
चिन्ताएं-हमारे होने का एक बोध हैं,
साथ ही हमारे अहंकार का एक प्रश्न भी !!
चिन्ताएं-कभी दूर ही नहीं होती हमसे,
अन्त-हीन हैं हमारी अबूझ चिन्ताएं,
जो हमारे कामों से ही शुरू होती हैं,
और हमारे कामों के बरअक्श वो-
हरी-भरी होती जाती हैं या फ़िर,
जलती-बूझती भी जाती हैं !!
एक काम खत्म तो दूसरा शुरू,
दूसरा खत्म तो तीसरा शुरू,
तीसरा………
हमारे काम कभी खत्म ही नहीं होते,
और उन्हीं की एवज में खरीद ली जाती हैं,
कभी ना खत्म होने वाली अन्त-हीन चिन्ताएं !!
चिन्ताएं-हमारी कैद हैं और हमारा फ़ैलाव भी,
चिन्ताएं-हमारा समाज हैं और हमारा एकान्त भी,
चिन्ताएं-कभी हमारा अमुल्य अह्सास हैं,
तो कभी जिन्दगी के लिए इक पिशाच भी !!
चिन्ताएं प्रश्न हैं तो कभी उनका उत्तर भी !!
हमारे बूते के बाहर होने वाली घट्नाओं पर-
हम कुछ कर भी नहीं सकते चिन्ता के सिवाय !!
और मज़ा यह है कि-
जिसे समझते हैं हम अपना खुद का किया हुआ-
होता है कोई और ही वो सब हमसे रहा करवा !!
जिसे माना हुआ है हमने अपना ही करना,
उसी से दौड़ी चली आ रही हैं हमारी चिन्ताएं !!
चिन्ताएं हमें जलाती भी हैं और बूझाती भी-

चिन्ताओं में यदि थोडा गहरा जायें अगर
तब जान सकते हैं हम अपने होने का वहम,
अपने अस्तित्व के प्रश्न की अनुपयोगिता,
और हमारी चिन्ताओं की असमर्थता !!
हमारे हाथ-पैर मारने की व्यर्थता
दरअसल….दूर आसमान में एक बडा सा खूंटा है-
जिसे कहते हम ईश्वर-
उस खूंटे से अगर हम
अपनी चिन्ताओं को बांध सकें-
आज़ाद हो सकते हैं-
अपनी ही चिन्ताओं के कैद्खाने से हम !!

1 comment:

Shekhar Kumawat said...

चिन्ताओं में यदि थोडा गहरा जायें अगर
तब जान सकते हैं हम अपने होने का वहम,
अपने अस्तित्व के प्रश्न की अनुपयोगिता,
और हमारी चिन्ताओं की असमर्थता !!
हमारे हाथ-पैर मारने की व्यर्थता
दरअसल….दूर आसमान में एक बडा सा खूंटा है-
जिसे कहते हम ईश्वर-
उस खूंटे से अगर हम
अपनी चिन्ताओं को बांध सकें-
आज़ाद हो सकते हैं-
अपनी ही चिन्ताओं के कैद्खाने से हम !!



bahut khub


shakher kumawta


kavyawani.blogspot.com/