Sunday, April 4, 2010

koi sheershak nahin...........

पता नहीं अच्छाई का रास्ता इत्ता लंबा क्यूँ होता है...!!
पता नहीं अच्छाई को इतना इम्तहान क्यूँ देना पड़ता है !!
पता नहीं सच के रस्ते पर हम रोज क्यूँ हार जाया करते हैं !!
पता नहीं कि बेईमानी इतना इठला कर कैसे चला करती है !!
पता नहीं अच्छाई की पीठ हमेशा झूकी क्यूँ रहा करती है !!
उलटा कान पकड़ने वाले इस जमाने में माहिर क्यूँ हैं !!
बात-बात में ताकत की बात क्यूँ चला करती है !!
तरीके की बातों पर मुहं क्यूँ बिचकाए जाते हैं !!
सभी जमानों में ऐसा ही देखा गया है,
कौए को तो खाने को मोती मिला करता है,
और हंस की बात तो छोड़ ही दें ना....!!
हर बार हमने देखा है कि सच की जीत ही होती है,
मगर तब तक क्या बहुत देर नहीं हो चुकी होती ??
जिन्दगी भर अच्छाई अपनी जगह से निर्वासित रहे,
और अंत के कुछ दिनों के लिए ताज मिल भी जाए तो क्या है !!
फिर सच को इस तरह से जीतने की खाज ही क्या है !!
क्या हम अभिशप्त हैं ता-जिन्दगी राक्षसों का नर्तन देखने के लिए ??
चिता पर कोई देवता तब आ भी जाए तो क्या है !!
दुनिया अगर स्वर्ग होने के लिए ही है,
तो नरक का ऐसा भयंकर कोढ़ बहुत जरूरी है क्या ??
कोई कुंदन होने के लिए जीवन भयंकर भर आग में जलता रहा करे !!
फटी-फटी आँखों से वह यह सब नारकीय-सा देखता रहा करे !!
शान्ति के लिए युद्ध, ऐसा भी क्यूँ लाजिमी होता है ??
शान्ति पाने के आदमी अपना सब-कुछ क्यूँ खो देता है ??
तब भी शान्ति मिल ही जाए यह कोई ऐसा जरूरी भी नहीं !!
शान्ति के ऐसे यज्ञ के आयोजन का प्रयोजन भी क्या है !!
हम किस बात के लिए पैदा हुआ करते हैं ??
धरती को अपने शरीर का मल और इंसान को,
अपने विचारों की हिंसा का मल प्रदान करने के लिए ??
अगर ऐसा ही है तो हमारा होना ऐसा भी क्या जरूरी है ??
और अगर हम ही ऐसे हैं तो -
खुदा जैसी किसी को हमारे बीच लाना जरूरी है क्या ??

http://baatpuraanihai.blogspot.com/

3 comments:

Latika Mishra said...

bahut accha yathartvadi lekhan hai ye... shanti ke liye yuddh virodhabhas hi har jagah vidyaman hai...
regards
latika mishra

अनामिका की सदायें ...... said...

baat pate ki hai...sochna padega..

achha kataksh hai...

anita saxena said...

लगता है ज़माने ने बहुत सताया है...
अच्छा गुबार निकला है.