काफी दिनों के बाद रांची हल्ला पर ध्यान देते हुए 27 जून के बाद कोई पोस्ट नहीं होने की तरफ ध्यान गया। क्यों भई पत्रकारों के ब्लाग का यह हाल (जो गैर पत्रकार हैं, वे क्या कम हैं) अचानक सभी के लिखने की आदत कम क्यों हो गयी। इसलिए मित्रों, एक सलाह है कि इसे जिंदा रखिये, पत्रकारों के लिए लिखते रहना ही सबसे बड़ी पूंजी है। इस पूंजी को यूं ही त्याग देंगे तो कल खुद को जबाव देना कठिन होगा। वैसे भी पत्रकारिता जगत में इनदिनों लिखने लायक काफी कुछ है। इसलिए भी लिखने और कविता गढ़ने का काम चालू रहना चाहिए। झारखंड में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद अनेक ऎसे मसले आये हैं, जिन पर अपने ब्लाग में चर्चा होनी चाहिए। वैसे भी जीवन चलने का ही नाम है। हमलोगों ने जो रास्ता अपनाया है, उसे आगे बढ़ाना भी हमारी ही जिम्मेदारी है। सो नये सिरे से सुधारे गये ब्लॉग (देखने पर लगता है कि वाकई मॉनसून का मौसम है) में कुछ हरी-ताजी चीजें दिखे तो अच्छा लगेगा।
2 comments:
सच ही कहा गया है - "चरेवेति चरेवेति"
ha...ha..ha...ha...ham to lkhte bhi hain.....aur padhte bhi hai......aur vo bhi khoob....khoob.....khoob..... aur vo bhi tamaam vyasatataa ke baavjood.....
Post a Comment