उत्तर प्रदेश मेँ निष्प्राण पडी काँग्रेस मेँ प्रत्यक्ष या परोक्ष कब्जेदारी को लेकर अभी भी घात प्रतिघात जारी हैँ और वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष फिलहाल इन चालोँ मेँ फँसते दिखाई दे रहे हैँ ।
ऊपरी तौर पर अभी उत्तर प्रदेश काँग्रेस मेँ भले अभी सब ठीक ठाक दिखाई दे रहा हो लेकिन पर्दे के पीछे तलवारेँ भाँजे जाने की शुरूआत हो चुकी है , वजह है काँग्रेस हाईकमान की निगाह मेँ काफी दिनोँ से सँदिग्ध और अपनी सीट बचाने के लिए काँग्रेस की दर्जनोँ सीटेँ समाजवादी पार्टी के हाथ गिरवीँ रखने वाला एक चर्चित मठाधीश बाकी क्षत्रपोँ को प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर को अपने प्यादोँ के जरिए अपनी घेरेबन्दी मेँ कामयाब होता दिखाई दे रहा है ।
दर असल वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष उत्तर प्रदेश मेँ खुद से जुडे कार्यकर्ताओँ की सँख्या के लिहाज से निप्स अकेले हैँ । उनके साथ केवल एक कार्यकर्ता है जो कानपुर का युवा व्यवसाई और साधनसम्पन्न व्यक्ति है लेकिन राजनीतिक समझ और जमीनी पकड के लिहाज से शून्य है , चर्चा है कि राजबब्बर को सँसाधन वही उपलब्ध करवा रहा है और राजबब्बर की राजनीतिक हैसियत का उसी अनुपात मेँ लाभ उठा रहा है । उसकी यह कार्यशैली आमतौर पर प्रदेश काँग्रेस कमेटी मेँ बैठने वालोँ को अखर रही है लेकिन राजबब्बर की राहुल गाँधी पर मजबूत पकड के चलते ये पीसीसी ब्राँड काँग्रेसजन खुद को मजबूर पा रहे हैँ । इसका पूरा फायदा हाईकमान की निगाह मेँ सँदिग्ध उस शातिर मठाधीश ने उठाया और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री के कार्यकाल मेँ पीसीसी मेँ घुसेडे गए अपने प्यादोँ के जरिए वर्तमान अध्यक्ष को पूरी तरह से अपने घेरे मेँ ले लिया ।
इस लिहाज से अगर यह कहा जाए कि वर्तमान अध्यक्ष दिखाने के अध्यक्ष तो खुद हैँ लेकिन पर्दे के पीछे से काँग्रेस की बागडोर उस मठाधीश ने थाम रखी है ।
अब स्थिति यह है कि उस मठाधीश की पकड से राजबब्बर को निकालने के लिए गोलबँदी का दौर शुरू हो चुका है और इस विपक्षी लाबी का कहना है कि राजबब्बर ने उस मठाधीश के प्यादोँ के घेरे से खुद को बाहर ना निकाला तो 2019 मेँ काँग्रेस भाजपा से नहीँ आपस मेँ ही लडती दिखाई देगी ।
इतने दिनोँ तक बाकी क्षत्रप तो चुप रहकर मौके का इँतजार कर रहे थे लेकिन विगत 13 सितँबर को इन्दिरा गाँधी जन्मशती समारोह मेँ राजबब्बर ने यह मौका खुद बाकी मठाधीशोँ को सौप दिया जब इस समारोह का मीडिया सँयोजन प्रदेश काँग्रेस के मीडिया प्रमुख व पूर्वमँत्री सत्यदेव त्रिपाठी की जगह उस मठाधीश की विधायक बेटी व एक अपने एक अन्य प्यादे के हाथ मेँ दिलवा दिया । तिहत्तर वर्षीय सँघर्षशील नेता सत्यदेव त्रिपाठी के लिए यह बडा आघात था और इससे आहत होकर उन्होने त्यागपत्र देने का मन बना लिया था । किन्तु यह बात फैलते ही बाकी क्षत्रप और अन्य उपेक्षित काँग्रेसी सत्यदेव त्रिपाठी के इर्दगिर्द इकट्ठा होने लगे और उन पर इस्तीफा ना देकर काँग्रेस के हित मेँ तन कर खडे होने का दबाव बनाया और वे इसमेँ कामयाब भी हुए ।
-भूपिंदर पाल सिंह
4 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-09-2015) को "देवपूजन के लिए सजने लगी हैं थालियाँ" (चर्चा अंक 2731) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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