Monday, April 28, 2008

क्रिकेट को चीयरलीडर का तड़का


प्रभाष जोशी बता रहे हैं कि आईपीएल के तड़का क्रिकेट ने सास-बहू के सीरियलों को पछाड़ दिया है. जनता तड़का क्रिकेट देख रही है. इस प्रसिद्धि में चीयर लीडर्स का कितना हाथ है यह कहना अभी मुश्किल है

लेकिन बाजार की इच्छा होगी कि अमेरिका से बुलाई गयी ये लड़कियां कम कपड़ों में नाचती रहें. थोड़े ही दिनों में आप पायेंगे कि सर्वे बता रहे हैं कि चीयर लीडर्स के कारण खेल का रोमांच बढ़ता है. ज्यादा प्रतिशत लोग कहेंगे कि वे क्रिकेट का लुत्फ इन चीयर लीडर्स के साथ उठाना चाहते हैं.

अपने सबसे आधुनिक महानगर मुंबई के कुछ नेताओं को आईपीएल मैचों के दौरान नाचनेवाली लड़कियों की भंगिमाओं पर एतराज हुआ. इन छोटी-छोटी चढ्ढियों और चोलियों में उनकी नाच की भाव भंगिमाएं ऐसी कि यही सब दिखाने के लिए वे नाच रही हैं. आखिर इन्हीं नेताओं ने मुंबई के बार-बालाओं पर पाबंदी लगवाई थी. बार बालाएं तो फिर भी बार के हाल में नाचती थीं ये चीयरलीडर तो खुले स्टेडियम में नाच रही हैं. नेताओं के नैतिक बोध को चोट लगनी ही थी. और उनने पुलिस से कहा कि यह नंगा नाच नहीं चलेगा. कुछ ने विधानसभा में बात उठाई. और तो और शत्रुघ्न सिन्हा को भी यह चीयरलीडर वाला नाच ठीक नहीं लगा. उनने कहा-" इन मैचों में क्रिकेट ढूंढना मुश्किल है और इससे खेल का मजाक उड़ाया जा रहा है."

मुंबई पुलिस ने नेताओं की सुन ली. नवी मुंबई के पुलिस आयुक्त रामराव वाघ ने कहा है कि रविवार की रात नेरूल के पाटिल स्टेडियम में आनेवाली टीमों के मालिकों को कहा गया है कि घरेलू और बाहरी टीमों के साथ जो चीयरदल आये हैं उनको कपड़े आचार संहिता के मुताबिक पहनने होंगे. इंडिया विन स्पोर्ट्स के निदेशक कौशिक राय ने भी कहा है कि ऊंचे पैंट और उरोजों का विभाजन दिखानेवाली चोलियां बिल्कुल नहीं चलेंगी. यानी मुंबई पुलिस और वहां के नेता जिसे अश्लील समझते हैं उस पर पाबंदी लगा दी गयी है.

हैदराबाद में पाकिस्तान के आलराउंडर बल्लेबाज शाहिद अफरीदी ने सबसे पहले चीयरलीडर्स पर यह कहते हुए सवाल उठाया कि अगर आईपीएल पूरे परिवार का मनोरंजन हो तो फिर लड़कियों का ऐसा नाच कैसे दिखाया जा सकता है. इमरान खान भले ही लेडी किलर कहे जाते रहे हों लेकिन 20-20 विश्वकप के दौरान चीयरलीडर्स पर जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने भी कहा था- वे लड़कियां तो एक तरह से खेल से ध्यान हटाती हैं. लेकिन बाजार की ताकतों का साथ देनेवाला हमारा भद्रलोक चीयरगर्ल के कपड़ों और नाच दोनों पर कोई ऐतराज नहीं दिखाता. इसलिए तो 20-20 के साथ चीयरगर्ल आती हैं और जिन्हें ऐतराज होना चाहिए वे मजा ले रहे हैं.

हमारे चैनल बार-बार चियरगर्ल पर ब्रेक लेते हैं. अखबार क्रिकटरों की नहीं चीयरलीडर्स की फोटो छापते हैं. एक अखबार ने पंजाब टीम की मालकिन प्रीति जिन्टा का अपनी टीम की हौसला अफजाई करते हुए फोटू छापा और नीचे लिखा कि उनके ऐसा करने पर भी टीम दोनों मैच हार गयी. मानों प्रीति जिन्टा की हौसला अफजाई करने से ही टीम को जीत जाना चाहिए था. जैसा बाजार चाहता है मीडिया उसे सच बनाकर दिखाता है. तभी तो चीयरलीडर्स के कपड़ों और नाचने पर हमारे राजनेताओं के ऐतराज पर हमारे अखबार हंसी उड़ा रहे हैं. वे पूछते हैं कि नैतिकता की बात करने का नेताओं का क्या अधिकार है? नहीं होगा. लेकिन सरेआम नंगई बेचनेवाले बाजार और अंधसेवकों को ऐसा करने का क्या अधिकार है? नेता तो फिर भी जनता से चुने गये हैं. इस बाजार को किसने चुना और अधिकार दिया कि वे हमारे समाज के नैतिकता के मूल्य तय करें?

क्या हम अपने परिवारों को ऐसा परिमिसिव बनाना चाहते हैं कि उसके सामने कुछ भी हो जाए और वह ऐतराज न करे? क्या भारतीय समाज अब सिर्फ यूरोप के बाजारू मूल्यों के सामने गिरवी रखने के लिए ही बचा है? या हमारा मीडिया ही बाजार का चीयरलीडर हो गया है?

कागद कारे, जनसत्ता

कौन हैं ये चीयरलीडर?

चीयरलीडर्स की शुरूआत अमेरिका में हुई. 1880 के दशक में विश्वविद्यालयीन खेलों में पहली बार चीयरलीडरों ने अपने-अपने टीमों के उत्साहवर्धन के लिए सामूहिक प्रदर्शन का सहारा लिया. लेकिन पहला चीयरलीडर इवेन्ट मिनिसोटा विश्वविद्यालय के खेलों में जानी कैंपबेल नाम के एक शख्स ने चीयरलीडर के रूप में अपना प्रदर्शन 1898 में किया. 1923 तक चीयरलीडरों की टीम में केवल पुरूष ही होते थे. 1923 के बाद इसमें महिलाएं शामिल हुईं. अपनी टीम के उत्साहवर्धन के लिए प्रयास करना यही उन चीयर लीडरों का काम होता था और इसमें नामी-गिरामी नये पुराने सभी छात्र शामिल होते थे.

फिर धीरे-धीरे यह स्कूल के खेलों में भी शामिल हो गया और आज हर प्रकार के खेलों में चीयरलीडर्स शामिल होते हैं. इनका अपना ड्रेस कोड होता है जिसमें लड़कियों के लिए छोटी टाप अत्यंन्त छोटी स्कर्ट होती है. वे अपने हाथों में कुछ ऐसा खिलौना, चमकी, पमपम आदि रखते हैं जिसका प्रदर्शन करके वे अपनी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करते हैं. इसके अलावा नट-नटनियों के तर्ज पर वे अन्य कई शारिरीक कौशल का प्रदर्शन भी करते हैं. अमेरिका में चीयरलीडिंग खुद एक प्रकार का खेल हो गया है जैसे अपने यहां नट-नटियों का खेल. वे खेलों के दौरान शारीरिक और कौशल प्रदर्शन भी करते हैं. बास्केटबाल और बेसबाल के मैचों में चीयरलीडर्स हमेशा मौजूद रहते हैं.

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