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तालीबानी शासनकाल में अ़फगानी महिलाओं की स्थिति खराब थी। पर आज हालत उससे भी ़•यादा बदतर है। नदीम अ़ख्तर की रिपोर्ट
ंिजदगी को पीस कर रख देनेवाली ग़रीबी और लंबे समय से छिड़े युद्ध की गाज अ़फगानिस्तान में औरतों पर गिर रही है। एक व़़क्त की रोटी भी नसीब न हो पाने के कारण अ़फगानी ग़रीब परिवार की बेटियां बेची जा रही हैं और थोड़े से पैसों के लिए छह वर्ष से भी कम उम‘ की लड़कियों की शादी कर दी जा रही है। इतनी कम उम‘ की लड़कियों की जबरन शादी उन्हें ग़ुलाम बनाकर रखने की प्रथा को ही आगे बढ़ा रही है। किसी तरह के विरोध में अक्षम छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार के भी मामले सामने आ रहे हैं और यह कई बार रिश्तेदारों के ही द्वारा किया जाता है। नक़ाब के पीछे रहनेवाली अ़फगानी महिलाओं को अमेरिका और बि‘टेन द्वारा तालीबान शासन से ‘मुक्ति’ के बाद एक ता•ाा रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है कि उनकी स्थिति कई मामलों में बदतर हो गयी है।
अमेरिका और अन्य सहयोगी राष्ट्रों के द्वारा अ़फगानिस्तान फतह को छह साल हो चुके हैं। आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि अ़फगानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने में अमेरिका और उसके सहयोगी देश विफल तो हुए ही हैं, साथ ही साथ 2002 में शुरू की गयी अधिकतर योजनाओं को बंद भी कर दिया गया है। ‘वीमेनकाइंड’ की ओर से जारी रिपोर्ट (सात साल में अ़फगानी महिलाएं और लड़कियां) में कई चौंकानेवाले तथ्य उजागर हुए हैं। महिलाओं के साथ ंिहसा, खासकर घरेलू ंिहसा के आंकड़े संक‘ामक तरीके से बढ़ते हुए 87 ़फीसदी तक पहुंच चुके हैं। अ़फगानिस्तान में जिन 87 ़फीसदी महिलाओं ने इस बात की शिकायत की कि उनके साथ ़•यादती की गयी, उनमें से आधी महिलाओं का यौन उत्पीड़न हुआ। करœीब 60 ़फीसदी लड़कियों की जबरन शादी हुई। हालांकि अ़फगानिस्तान में हाल ही में एक नया कानून बनाया गया है जिसके तहत 16 साल से कम उम‘ की लड़कियों की शादी को गैरकानूनी माना गया है। लेकिन इस कानून के प्रभावी होने के बावजूद 57 ़फीसदी दुल्हनों की उम‘ 16 साल से कम ही आंकी गयी है। महिलाओं में निरक्षरता दर 88 ़फीसदी है। केवल 5 ़फीसदी लड़कियां ही आज की तारœीख़ में स्कूल जा रही हैं।
देश में स्वास्थ्य सेवाओं का क्या हाल है, इसका अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि नौ में से एक मां अपने बच्चे को जन्म देने के बाद मौत के आगोश में समा जाती हैं। अ़फगानिस्तान में माताओं की मृत्यु का यह आंकड़ा सिएरा लिओन के साथ ही विश्व में सर्वाधिक है। इसके अलावा पिछले तीस साल के लंबे युद्धकाल ने देश में करीब दस लाख विधवाओं को अपने ही हाल पर छोड़ दिया है। इन विधवाओं को कोई अधिकार नहीं होता। ये शहर-गांव की गलियों में भीख मांग कर अपना गु•ाारा करती हैं। आलम यह है कि देश में ते•ाी से अनाथों की सं‘या बढ़ती जा रही है। अ़फगानिस्तान विश्व का इकलौता देश है, जहां महिलाओं की आत्महत्या दर पुरुषों की तुलना में ़•यादा है। हालांकि, वीमेनकाइंड के अभियानकर्ताओं का यह दावा है कि ये आंकड़े देशव्यापी हैं। लेकिन युद्ध से पूरी तरह तबाह हो चुके प्रांत, जैसे हेल्मंद (उत्तरदायित्व के हिसाब से यह बि‘टिश कार्य क्षेत्र में आता है) में महिलाओं पर अत्याचार की घटनाएं और भी गंभीर हैं। इन इलाकों में महिलाओं पर सर्वे करना ख़तरे से खाली नहीं, इसलिए कुछ क्षेत्रों में वास्तविक स्थिति का पता नहीं चल पाता। अ़फगानिस्तान में कड़े कानून के बावजूद पैसों के एवज में लड़कियों को दान कर देने का सिलसिला जारी है। कर्•ा से मुक्ति के लिए लड़कियां बेची जा रही हैं या फिर किसी अपराध की स्वीकारोक्ति पर हर्जाने के रूप में लोग अपनी लड़की को किसी और को दे देते हैं। इसके अलावा किसी विवाद का भी निबटारा लड़की देकर किया जाता देखा गया है। एक बाल दुल्हन की कीमत अ़फगानिस्तान में 60 हजार रुपये से लेकर डेढ़ लाख रुपये तक होती है, जो किसी म•ादूर की तीन साल की म•ादूरी के बराबर है। कई बार तो दूल्हों को कर्•ा लेने या ़िफर अपनी बहन की अदला-बदली के लिए भी मजबूर किया जाता है।
पिछले बीस वर्षों से महिलाओं के अधिकार के लिए संघर्षरत अ़फगान वीमेन रिसोर्स सेंटर की निदेशक पर्तवमीना हशेमी कहती हैं - ‘आठ साल की बच्चियों की जबरन शादियां दिल को दुखाती हैं। ये बच्चियां,स्कूल नहीं जा सकतीं और इनकी ससुराल में उन्हें कहा जाता है कि तुम्हें अपने परिवार से मिलने का हक नहीं, क्योंकि हमने तुम्हें खरीद लिया है। अब तुम्हें काम करना होगा।’ हशेमी के अनुसार 16 साल से कम उम‘ की लड़कियों की शादी गैर कानूनी है, लेकिन अधिकतर लोग इस कानून के बारे में जानते ही नहीं हैं। उनके अनुसार - तालीबान शासन के पतन के बाद पिछले सात वर्षों से महिलाओं के लिए अधिकार की मांग अ़फगानिस्तान की राजनीति के केंद्र में रही है। इसके बावजूद अ़फगानी कामकाजी महिलाएं हमेशा ख़ौ़फ•ादा रहती हैं। महिला सांसद हों, पत्रकार या कोई आंदोलनकारी, सभी मौत के साये में अपना एक-एक दिन काटती हैं।
समाज में कट्टरपंथी ताकतों और रूढ़िवादी विचारों की प्रधानता के बावजूद अ़फगानिस्तान में काम कर रहे गैर सरकारी संगठनों को इस बात की उम्मीद है कि देश में महिलाओं के लिए पुनर्जागरण होगा, भले ही इसकी कोई अवधि सुनिश्चित न हो।
इराक़ के शहर बसरा में महिलाओं का हाल
खामोश मौत की सौगात
इराक़ के दूसरे सबसे बड़े शहर बसरा में महिलाओं के साथ जो कुछ हो रहा है, उसकी भयावहता बयान करना भी मुश्किल है। मोटे तौर पर यही कहा जा सकता है कि इस शहर में म•ालूम औरतों को कुछ धार्मिक कट्टरवादी किस्म के अतिवादी अपना निशाना बना रहे हैं। वर्ष 2007 में 133 महिलाओं को बेवजह मौत के घाट उतार दिया गया। सबसे ग़ौर करनेवाली बात यह है कि इराक़ को अवैध तरœीके से तहस-नहस कर सद्दाम हुसैन को अपदस्थ करनेवाले अमेरिका के समर्थन से बनी सरकार के ही सहयोगी बसरा में महिलाओं पर अत्याचार के आरोपी हैं। ऐसा ऑर्गनाइजेशन ऑफ वीमेंस फ‘ीडम इन इराक़ (इराक़ में महिलाओं की आ•ाादी का संगठन) का मानना है। संगठन ने बसरा में मारी जा रही महिलाओं की शिना़ख्त के लिए मुर्दाघरों में जाकर कुछ तथ्य एकत्र किये। हाल ही में इस संगठन ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें यह बताया गया है कि बसरा में मारी गयी महिलाएं या तो पीएचडी धारक हैं, पेशेवर हैें, आंदोलनकारी हैं या फिर किसी दफतर में काम करनेवाली हैं। बसरा में शिया आतंकी वैसी ही महिलाओं को निशाना बना रहे हैं, जो घर की चहारदीवारी से बाहर आकर अपने परिवार के लिए रोटी का इंत•ााम करने की जुगत में हैं। शिया समुदाय से जुड़ी राजनीतिक ताकतें, जो वर्ष 2003 में अमेरिका के इराक़ पर चढ़ाई के बाद म•ाबूत हुई हैं, लगातार महिलाओं को आतंकित करने के हथकंडे अपना रही हैं। इराक़ पर अमेरिकी आक‘मण के कुछ ही दिनों के बाद वहां शिया समुदाय के कुछ संगठनों ने मिलकर एक गैंग तैयार किया था, जो शहर में महिलाओं को पीटने, उन्हें डराने और परेशान करने से नहीं चूकते थे। उनका आरोप यह होता था कि महिलाएं इस्लामी तरीक़े से कपड़े नहीं पहनतीं, जिसकी स•ाा उन्हें सरेआम दी जाती है। बसरा में लगातार हो रही महिलाओं की हत्या की •िाम्मेवारी जो संगठन लेते हैं, वे मारी गयी महिलाओं पर वेश्यावृत्ति का फर्•ाी आरोप मढ़ते हैं।
ऑर्गनाइजेशन ऑफ वीमेंस फ‘ीडम इन इराक़ के संस्थापक यानार मुहम्मद इस पूरे खेल की व्या‘या कुछ इस तरह करते हैं : ‘अ़फगानिस्तान में महिलाओं की दयनीय स्थिति का मामला हो या फिर इराक़ में औरतों की हत्या का, हर जगह एक बात सा़फ है; पश्चिम मीडिया इस तरह के मामलों को बहुत नाटकीय गंभीरता के साथ यह कहते हुए उठाती है कि मुस्लिम देशों में औरतों के साथ इस्लाम के नाम पर अत्याचार हो रहा है। अमेरिका द्वारा पढ़ाये-समझाये गये मीडिया के एक वर्ग की बनावटी व्यथा ही उस मुस्लिम देश में अमेरिकी आक‘मण की नींव रखती है। इसके बाद महिलाओं, बच्चों और मासूमों को बचाने के नाम पर अमेरिका अपने राजनीतिक एजेंडे के साथ आगे बढ़ता है और किसी भी देश में धावा बोल कर हजारों औरतों, बच्चों, मासूमों को मौत की नींद सुलाता है। फिर उस देश की शासन व्यवस्था अपने गुर्गों को सौंप वह अपने व्यवसाय में लग जाता है। लेकिन, उसके द्वारा कथित रूप से मुक्त कराये गये देश में महिलाओं, बच्चों और मासूम लोगों की दशा और भी खराब हो जाती है। बसरा और अ़फगानिस्तान के तबाह शहर इस खूनी खेल के मूक गवाह हैं।’
द पब्लिक एजेंडा से साभार
1 comment:
Nadeem Ji,
Maa Kasam Bahoot Jakas Likha Hai Bhiru.....Aur Aap Aafganistan Kab Ho Aaye Yaar....Aur Murdon Wali Story Bhi Shandaar Hai Bhai......
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