इसे कहते हैं संस्थागत बेईमानी
रजत कुमार गुप्ता
झारखंड की स्थिति की आलोचाना व्यक्तिगत तौर पर मुझे पीड़ा देती है। इसके बाद भी कई मौके ऐसे आते हैं जब पत्रकार को सच के साथ ख़डे होने के लिए अपने ही लोगों के खिलाफ जाना प़डता है। ऐसे में मन में विचार आता है कि महाभारत अभी खत्म नहीं हुआ, यह तो एक निरंतर लड़ाई है न्याय और अन्याय के बीच, सत्य और मिथ्या के बीच।
राज्य के झारनेट की असलियत के मुद्दे पर यही स्थिति है। एक कंपनी को अपने पहले चरण का काम पूरा कर लेने के बाद भी प्रमाणपत्र और पैसे के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। जाहिर सी बात है कि कंपनी ने संस्था का स्वरुप ले चुके भ्रष्टाचार को सलाम नहीं किया होगा। वरना जिस कंपनी को राष्ट्रीय स्तर पर ई-गवर्नेंस के लिए पांच पुरस्कार मिले, उसकी यह हालत। जी हां, यह सिर्फ झारखंड में ही संभव है। मैं इस स्थिति के लिए झारखंड की मीडिया को भी काफी हद तक जिम्मेदार मानता हूं, जो निजी और कंपनी हितों की वजह से दिन को दिन कहने तक से परहेज करने लगा है।
राज्य के मुख्यमंत्री सहित बड़े हाकिम आये दिन वीडियो कांफ्रेंसिंग करते हैं। उपायुक्तों को डांट पिलाते हैं, निलंबित करने की चेतावनी देते हैं। यह काम जिस जरिए होता है, उसे पूरा होने पर वे सहमत नहीं। अब उनसे कौन पूछे कि भाई जिस तकनीक के आधार पर आप वीडियो कांफ्रेंसिंग करते हो, वही तो शिकायत करने वाली कंपनी के पहले चरण का काम था।
सिफर् सरकारी दस्तावेजों पर भी फैसला करें तो अब यह स्पष्ट हो चुका है कि झारनेट में यूटीएल को भुगतान के मुद्दे पर राज्य सरकार ही झूठ बोल रही है। परस्पर विरोधी दावों के बीच जो नइर् जानकारी उभरकर सामने आयी वह यह कि संबंधित कंपनी ने अपनी व्यस्था जाहिर करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री को भी एक पत्र भेजा है। इसकी प्रति राज्य के मुख्य सचिव को भी भेजी गयी है। दोनों ही कायार्लयों से इस पत्र के प्राप्त होने की पुिष्ट हो चुकी है। इस पत्र में स्पष्ट किया गया है कि कंपनी को मदद नहीं मिलने की िस्थति में वह अपना संचालन बंद करने पर बाध्य होगी। जिस पर विभाग ने वैकिल्पक व्यवस्था करने की बात कही है। इन आरोप-प्रत्यारोपों के बीच यह स्पष्ट हो चुका है कि झारखंड देश का अकेला राज्य है, जहां बीएसएनएल को केबुल बिछाने से राज्य सरकार ने रोक रखा है। भारत के साॅलिसिटर जनरल के एक पत्र से यह भी स्पष्ट हो चुका है कि राज्य सरकार का यह फैसला विधि सम्मत नहीं है आैर प्रचलित व्यवस्था में बदलाव सिफर् देश की संसद में संभव है। फिर भी सरकारी पक्ष यह स्पष्ट करने से पीछे हट गया कि आखिर किसके निर्देश पर यह गैरकानूनी फैसला लिया गया आैर आगे की परेशानियों के लिए जिम्मेदार काैन है।
राज्य में बीएसएनएल का विस्तार रोके जाने की वजह से पुलिस के सूचना तंत्र पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव प़डता है। अन्य निजी कंपनियां सिफर् ब़डे शहरों आैर कस्बों तक ही अपनी सेवा देती हैं। ऐसे में बीएसएनएल को रोके जाने से दूर-दराज के इलाको में पुलिस का सूचना तंत्र सही तरीके से काम नहीं कर पाता है। इसके पीछे भी अब किसी साजिश की बू आने लगी है क्योंकि कोइर् इस ग़डब़डी की जिम्मेदारी लेने के लिए आगे नहीं आ रहा। भारत सरकार की संस्था टीसीआइएल द्वारा संबंधित कंपनी की परेशानियों को देखते हुए अगि्रम भुगतान की सिफारिश किये जाने के बाद भी उसे नजरअंदाज करने पर सरकार चुप है जबकि वह इसी कंपनी को सलाहकार मानती है। इस कंपनी की अपनी वेब साइट पर भी झारखंड में पहले चरण का काम पूरा होने की घोषणा है। खुद राज्य सरकार ने एक प्रमुख हिंदी पत्रिका को जारी विज्ञापन में यह काम पूरा होने की घोषणा की है। इसके बाद भी यूटीएल नामक कंपनी इसी प्रथम चरण का काम पूरा होने का प्रमाणपत्र नहीं दिये जाने की भी शिकायत कर रही है। कंपनी के साथ हुए समझाैते के मुताबिक बिजली की व्यवस्था निजी कंपनी के होने का हवाला दिया जा रहा है जबकि बिजली के ये सारे कनेक्शन सरकारी कायार्लयों में ही लगने है। लिहाजा झारखंड इस नाते भी पहला राज्य बन रहा है, जहां सरकारी भवनों में भी निजी कनेक्शन लिये जाने की प्रथा चालू हो रही है। जमशेदपुर में इसी वजह से जुस्को ने इस कंपनी को कनेक्शन देने से इंकार कर दिया था क्योंकि यह सरकारी भवन के लिए था। बाद में पूवर् मुख्य सचिव पीपी शमार् की पहल पर इस समस्या को हल किया जा सका।
राज्य सरकार द्वारा भुगतान नहीं करने के कारणों का खुलासा करते हुए जारी विज्ञप्ति ही यह स्पष्ट कर देता है कि राज्य के प्रखंड स्तर के काम पूरे नहीं हुए हैं। यह दूसरे चरण का काम है लिहाजा यह निष्कर्ष निकलता है कि पहले चरण का काम पूरा हो चुका है। मुख्यमंत्री द्वारा जिलों के उपायुक्तों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग करने, कई योजनाओं का ऑनलाइन शिलान्यास करने जैसे कार्यक्रमों की विज्ञप्ति पिछले वर्ष एक नहीं कई बार जारी हुई है, जो इस बात को प्रमाणित करते हैं कि वाकई यह काम बहुत पहले ही पूरा हो चुका है। इसके प्रमाण राज्य सरकार की अपनी बेव साइट के पिछले वषर् की प्रेस विज्ञिप्तयों में उपलब्ध हैं। इन तथ्यों का निष्कषर् है कि संबंधित कंपनी द्वारा काम पूरा कर लेने के बाद भी उसे पहले चरण का प्रमाणपत्र एवं भुगतान नहीं देने के पीछे की मंशा यहां की व्यवस्था को ठप करना है। इस व्यवस्था के ठप होने से सरकार के समक्ष उत्पन्न होने वाली परेशानियों से राज्य के मुख्यमंत्री सहित अन्य सत्त्ाारू़ढ नेता वाकिफ नहीं है। खासकर कोषागार के बंद होने से प्रभावित होने वाले आम आदमी आैर सरकारी कमर्चारियों का कोप भाजन सरकार को ही बनना प़डेगा आैर उसके नतीजे का आकलन कोइर् कठिन काम नहीं है।
पीछे के कारणों को समझ लेना कठिन काम नहीं है। जाहिर सी बात है कि सत्ता पर पकड़ बनाये कुछ लोगों के निजी हित नहीं सधे हैं, सो कंपनी को पैसा नहीं मिल रहा है। इसके अलावा भी जो बात गंभीर है वह राज्य सरकार को अस्थिर करने से जुड़ा है। राज्य की अफसरशाही में जारी घमासान के बीच एक गुट ऐसा है जो निरंतर राज्य में वैसी स्थिति पैदा करने की कोशिश कर रहा जो कांग्रेस को इस सरकार से समर्थन वापस लेने के लिए मजबूर कर दे। वर्तमान में परमाणु करार के मुद्दे पर उलझी कांग्रेस इसे सोचने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में पूरी राज्य की व्यवस्था को चौपट कर ही सरकार के पतन के रास्ते बनाये जा सकते हैं।
3 comments:
रजत दा, ये झारखण्ड है. आपकी ही की उक्ति है अन्धो की निगरानी मे लंगडे दौड़ रहे है रेस. बहरा बैठा न्याय की कुर्सी पर गूंगा बांच रहा .
जो सेक्ट. आईटी पुरस्कार ग्रहण करता है. वही पेमेंट से इंकार करता है. सरकार तमाशा कर रही है. हम सब तमाशबीन होकर देख रहे है. चुपचाप मौन होकर. शायद देखना और सुनना ही हमारी नियति है.
रजत दा ने जो कुछ लिखा है वह वास्तव में झारखंड की असली तस्वीर है. किसी को कोई शक नहीं रहना चाहिए की झारखंड में कुछ प्रगति हो भी रही है या हो भी सकती है. झारखंड से उसका इतिहास जो सवाल करेगा वो सवाल आज से युगों पहले एक शायर ने लिख दिया है. गौर फरमाएं --
तू इधर-उधर की बात न कर
ये बता की कारवां क्यों लुटा
मुझे रहजनों से गिला नहीं
तेरी रहबरी का सवाल है
क्या इसी झारखंड के लिए लंबा संघषॆ हुआ था। हालात काफी खराब हैं। झारखंड के प्रति ददॆ है। इस लिए ज्यादा दुख होता है।
प्रभात सुमन
दैनिक जागरण , नई दिल्ली
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