Saturday, August 2, 2008

इनकी रहबरी और लुटा हुआ कारवां...



एन अख्तर
जीइएल चर्च कंपाउंड, रांची। गॉस्सनर गर्ल्स हॉस्टल के मुहाने पर स्थित है एक खपरैल घर। अंदर जाते समय यह आभास नहीं होता, बल्कि शक होता है कि क्या यह सही जगह है। सुनसान, वीरान। दरवाजे पर दस्तक देने की भी ज़रूरत नहीं। अंदर किसी का प्रवेश वर्जित नहीं। यकीन नहीं होता कि इसी छप्परपोश मकान की एक अंधेरी कोठरी में अपने जीवन के दिन गिन रहे व्यक्ति ने झारखंड आंदोलन की नींव रखी होगी। जी हां, बात उस घर की हो रही है जिसमें आज निरेल एनिम होरो(एनइ होरो) रहते हैं। जिंदा रहने की खानापूर्ति कर रहे एनइ होरो आज अपनी पार्टी (झारखंड पार्टी) के दग़ाबाज़ों और ढलती उम्र के कारण थोड़े कमज़ोर हो चुके हैं, लेकिन 83 साल की आयु भी उनसे उनकी राजनैतिक इच्छा नहीं छुड़वा पायी है। होश ज़्यादा नहीं रहता, खाने-पीने के बारे में पूछने पर जवाब नहीं दे पाते, लेकिन जोहार (झारखंड में अभिवादन का एक तरीका) बोलते ही एक हाथ हवा में उठा कर होरो साहब जवाब देते हैं - जय झारखंड। इस अदम्य इच्छा शक्ति को नमन जिसने उन्हें चारों तरफ से तोड़ने के सारे प्रयासों को ध्वस्त कर दिया।
एनइ होरो के घर के बाहर बारामदे में एक पुराने टीवी सेट को बनवाने की जद्दोजेहद में जुटे दिखे उनके बेटे रास होरो (चित्र में हैं) परिचय दिया, तो रास ने कहा - पत्रकारों से क्या बात करेंगे बाबा। फिर भी देखते हैं, शायद उठे होंगे, तो आपको फोटो मिल जायेगा। एनइ होरो जिस कोठरी में बैठे थे, उसे देखकर लगा कि ज़िंदगी आदमी को कैसे-कैसे दिन दिखाती है। कल तक जब होरो साहब एमएलए हुआ करते थे, झारखंड आंदोलन के मुखिया हुआ करते थे तो इनके पास लोगों का तांता लगा रहता था। आज यहां भूले-भटके ही लोग आते हैं। उनकी पार्टी (झारखंड पार्टी) को तोड़कर उसके 30 फीसदी लोगों को अपने साथ मिला लिया है एनोस एक्का ने, जिन्हें 2005 में चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया था एनइ होरो ने। चुनाव जीतने के बाद एनोस एक्का ने एनडीए का साथ दे दिया और राज्य में दोबारा अर्जुन मुंडा की सरकार बनवा दी। बतौर पार्टी अध्यक्ष एनइ होरो ने एनोस एक्का को निर्देश दिया कि आप मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर पार्टी व्हिप के अनुसार काम करें, लेकिन राजनीतिक स्वार्थपूर्ति के कारण एनोस एक्का ने इस्तीफा नहीं दिया और उल्टे पार्टी अध्यक्ष एनइ होरो को ही चुनौती दे डाली। इसके बाद जब एनइ होरो ने तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी के यहां होरो साहब ने अपील की और एनोस की सदस्यता समाप्ति की मांग की, तो नामधारी ने दो साल तक इस मामले को लटकाये रखा और अंततः कोई फैसला नहीं सुनाया। उनके बाद स्पीकर बने आलमगीर आलम, उनके यहां भी मामला लंबित है, लेकिन लगता नहीं कि जब तक पाला बदल चुके एनोस एक्का यूपीए के साथ रहेंगे, तब तक उनके खिलाफ कोई कार्रवाई होगी। इसी बीच एनोस ने होरो को पार्टी से निकालने की भी घोषणा कर दी है। वैसे एनइ होरो के चौथे पुत्र रास होरो बताते हैं कि झारखंड पार्टी अब भी हमारी है, सिर्फ कुछ स्वार्थी लोग एनोस के साथ गये हैं, जिन्हें हजार-दो हजार का ठेका पट्टा चाहिए।
एनोस और विधानसभा के स्पीकरों की सौदेबाज़ी के शिकार एनइ होरो आज भी इस उम्मीद के साथ जिंदा हैं कि शायद आज स्पीकर अपना फैसला सुना दें या कल सुना दें। लेकिन, वृद्ध हो चुके होरो को शायद ये नहीं पता कि झारखंड का कारवां लूट रहे लोगों के रहबर ही रहजन हो चले हैं।
एनइ होरो क्या चीज़ हैं और क्यों उन्हें अहमियत मिलनी चाहिए, उसके बारे में भी जान लीजिये। पुरातन काल से ही झारखंड आदिवासी जनजातियों का गृहक्षेत्र रहा है। किसी किसी जिले में तो जनजातिय आबादी ही बहुसंख्यक है। झारखंड में 32 जनजातिय समूहों का निवास है, जिसमें असुर, बैगा, बंजारा, भथुड़ी, बेदिया, बिंझिया, बिरहोर, बिरिजिया, चेरो, चिक-बराईक, गोंड, गोराईत, हो, करमाली, खैरवार, खोंड, किसान, कोरा, कोरवा, लोहरा, महली, मलपहाड़िया, मुंडा, ओरांव, पहाड़िया, संथाल, सौरिया-पहाड़िया, सावर, भूमिज, कोल एवम कंवर शामिल हैं। 1950 से पहले तक झारखंड आंदोलन जातीय आंदोलनों की जद में था। मुंडा, उरांव, खड़िया आदि सभाओं के माध्यम से आंदोलन चल रहा था, जिसके बिखरे होने के कारण कोई लाभ नहीं मिल रहा था। एनइ होरो ने ही सभी जनजातिय सभाओं को एकत्र किया और जयपाल सिंह से आंदोलन के नेतृत्व की गुजारिश की। जयपाल सिंह मुंडा ने 1950 में झारखंड पार्टी की घोषणा की और अपने सबसे प्रमुख सहयोगी एनइ होरो के कथनानुसार काम करने लगे। होरो ज़मीन से जुड़े नेता थे, जबकि जयपाल सिंह मुंडा विदेश से पढ़ कर आए थे। 13 वर्षों तक आंदोलन चलता रहा और आंदोलन की धार तेज़ होती चली गयी लेकिन अचानक आंदोलन को सबसे बड़ा आघात तब पहुंचा जब 1963 में जयपाल सिंह ने झारखंड पार्टी के अन्य सदस्यों से विचार-विमर्श किये बिना ही पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया। इसकी प्रतिक्रिया स्वरुप छोटानागपुर क्षेत्र में कई छोटे-छोटे झारखंड नामधारी दलों का उदय हुआ जो आमतौर पर विभिन्न समुदायों का प्रतिनिधित्व करती थीं। उस समय बकौल एनइ होरो, जयपाल सिंह मुंडा ने उनसे कहा था - "चलिये मेरे साथ आंदोलन करने से स्टेट नहीं बन जायेगा। मेरे साथ रहियेगा, तो पैसा-गाड़ी-घर और हेलीकाप्टर में घूमना, सब मिलेगा।' एनइ होरो ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा कर आंदोलन तेज़ कर दिया और उन्होंने झारखंड पार्टी को अलग अस्तित्व दिया। इसके बाद 1973 में स्व. विनोद बिहारी महतो के नेतृत्व में शिवाजी समाज के कुड़मी और शिबू सोरेन के नेतृत्व में सोनोत संथाल समाज के संथालों को एकजुट कर धनबाद में झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन हुआ। इस तरह झारखंड आन्दोलन तेज हो गया। इसके बाद अलग राज्य के आन्दोलन ने जन आन्दोलन का रूप धारण कर लिया। वर्ष 1984 में जमशेदपुर में आजसू का गठन हुआ। इसमें अधिकतर विद्यार्थी ही थे। इसके बाद वर्ष 2000 में बिहार विधानसभा ने झारखंड अलग राज्य के प्रस्ताव को पारित कर केन्द्र सरकार को भेज दिया। इस प्रस्तावित अलग राज्य में पश्चिम बंगाल के पुरुलिया, बांकुड़ा, मिदनापुर, उड़ीसा के क्योंझर, मयूरभंज तथा संबलपुर जिले और मध्यप्रदेश के रायगढ़, सुरगुजा जिले शामिल थे। दुर्भाग्य से तत्कालीन केन्द्र सरकार ने प्रस्तावित झारखंड राज्य से इन जिलों को हटा दिया। केवल बिहार के छोटानागपुर और संथाल परगना को झारखंड राज्य के रूप में निर्माण किया। झारखंड गठन के दौरान एनइ होरो चुनाव हार चुके थे। पैसों की कमी के कारण वे अपने वोटरों तक अपना संदेश भी नहीं पहुंचा पाते थे। यही वजह रही कि होरो साहब हार गये और उनकी पार्टी से जिसने चुनाव जीता, वह पैसों के लिए बागी हो गया।
तात्पर्य यह है कि आज झारखंड में जितने सत्तासीन नेता हैं या फिर विपक्ष में भी (प्रभाव वाले), उनके यहां कम से कम आपको कोई टीवी बनवाने की कोशिश करता तो नहीं ही नज़र आयेगा। राज्य के सत्तारूढ़ नेताओं में से ज़्यादातर का झारखंड आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं रहा है। अधिकतर नेता राजनीतिक दुर्घटनावश राज्य के मंत्री बने हैं और आज जो स्थिति है, वह कहने-बताने लायक नहीं है। प्रथम वर्ष झारखंड ने मुनाफे का बजट दिया था। सात साल में 1200 करोड़ के घाटे में पहुंच गया है राज्य। वजह भी कई है। सत्ता के चौकीदार ही चमन लूटने में लगे हैं। भ्रष्टाचार को ब्लॉक स्तर से लेकर सचिवालय तक शिष्टाचार की मान्यता मिल चुकी है। कोयले से लेकर सरकारी नौकरी तक में सिर्फ कमीशन चल रहा है। कोई किसी को देखनेवाला नहीं है। ऐसे में एनइ होरो को कौन पूछे, जिन्होंने अपनी ज़िंदगी में कभी पैसों को अहमियत नहीं दी। आज होरो साहब भी जयपाल सिंह मुंडा की तरह कांग्रेस का दामन थाम चुके होते, तो शायद उनकी पूछ भी आज सत्ता के गलियारों में हो रही होती और शायद आज इतने बूढ़े न होते होरो साहब जितने दिखाई देने लगे हैं। उनकी बुज़ुर्गी और झारखंड के हालात पर एक शेर याद आ रहा है, लेकिन अफसोस होरो साहब इसका जवाब देने के लायक नहीं हैं:
तु इधर उधर की बात कर
ये बता कि कारवां क्यों लुटा।
मुझे रहजनों से गिला नहीं
तेरी रहबरी का सवाल है

(
यह ख़बर रविवार.कॉम से साभार है. )

3 comments:

Rajesh Roshan said...

बहुत बढ़िया... अब एक काम और करे नदीम जी... आलोक जी से बात करके एक और article है मक्लुस्किगंज वाला उसे भी लगा दीजिये यहाँ पर....

Rajesh Roshan said...

एक बात और जब साभार दे और उसका कोई डॉट कॉम जैसा है तो लिंक दे ना कि केवल लिख दे... मेरा मतलब HTML se है

Anonymous said...

All I can say is nothing because your blog is not interesting to read.