नेता एकम नेता, नेता दुनी...
नेता एकम नेता !
नेता दुनी दगाबाज !
नेता तिया तिकडमबाज !
नेता चौके चार सौ बीस !
नेता पंजे पुलिस दलाल !
नेता छक्के छक्का-हिन्जडा !
नेता सत्ते सत्ता-धारी !
नेता अट्ठे aringaabaaj !
नेता नम्मे नमक-हराम !
नेता दस्से सत्यानाश !!
इस अनाम कवि को मैं बचपन से ही सलाम करता आया हूँ !!दस छोटी-छोटी पंक्तियों में देश की एक महत्वपूर्ण कौम का समूचा चरित्र बखान कर दिया है ,मगर ये एक कौम तो क्या, शायद कोई भी आदमी कितना भी लांछित क्यों न जाए ,किसी भी कीमत पर देश का सच्चा नागरिक बनने को तैयार नहीं है ,हाँ ;एक-दूसरे को कोसते तो सभी हैं ........ट्रैफिक जाम,तू जिम्मेवार.....रोड पर कूडा ,तू जिम्मेवार ....कहीं कुच्छ भी ग़लत हो जाए ,तो मुझे छोड़कर सारे ग़लत !! फरमाया है .....जहाँ पर मैं रहता था वो वतन कुच्छ ऐसा था .....हर ओर गंदगी और कूre का आलम था ......मैं जहाँ गया वां पान की पीकों की रूताब थी वाह -वाह .....हर दीवार पर थूक की नदियाँ थी वाह-वाह अन्दर गंदे कागजों का ढेर था वाह-वाह ....पेश आते थे सभी बदतमीजी से वाह-वाह ...किसी की कहीं भी उतार देते थे इज्ज़त वाह-वाह ....कोई कहीं भी टट्टी-पेशाब कर सकता था वाह-वाह ...सड़कों पर बहती थी नालियां वाह-वाह ..कितना महान था वह लोकतंत्र वाह-वाह ...कोई वतन की इज्ज़त उतार सकता था वाह-वाह ...तिरंगा पैरों-tale रौंदा jata tha वाह-वाह..नंगी तस्वीरों से पटी पड़ी थीं गलियां वाह-वाह ..सब अपना घर भरने में थे मशगूल... बाप बना देश रोता जाता था वाह-वाह... बहन वेश्याओं की बस्ती में रोतee थी.....और भारत-maa को तो पहले ही बेच दिया था वाह-वाह...वां इसी धर्मनिरपेक्षता थी वाह-वाह ...सब एक दूसरे की ....खींचते थे वाह-वाह...गरीबों के दुखों से किसी का कोई वास्ता न था ...वां सब सरकार गिरते थे वाह-वाह ...बड़ा ही प्यारा ,सबसे न्यारा वतन था वाह-वाह ... बस सब एक दूसरे की "....."मार "रहे थे वाह-वाह .....!!
अब बढ़ाने को तो कुछ भी बढाया जा सकता है ,मगर क्या फायदा? इन बातों से लोग बोर ही होते हैं !!सो फिलहाल इतना ही .....अब चलता हूँ ....!! बाय
7 comments:
bahut badhiya.dhanyawad aapko shaandar,dumdaar aur gyandaar pahada padhane ke liye
Bahut sahi tasweer Kheenchi hai aapne.
Majedar raha....Bhoot baba.
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें. "शब्द सृजन की ओर" पर इस बार-"समग्र रूप में देखें स्वाधीनता को"
मरने से पहले थोडा जी लूँ इसी तमन्ना में रोज मरती हूँ ...जाने कब जीना आएगा ....
मरने से पहले थोडा जी लूँ इसी तमन्ना में रोज मरती हूँ ...जाने कब जीना आएगा ....
भूत और अभूतपूर्व लेख!! कमाल है. देश की सियासत का असली नक्शा खींच दिया. मुफ्त की एक सलाह दे रहा हूँ, मान न मान की तर्ज़ पर, एक बार में एक ही लेख पोस्ट करें. ९५% एक ही पढ़ते हैं, आगे बढ़ते हैं. आप का कीमती लेख अनदेखा हो जायेगा....हो रहा है. मैं स्वयं भुक्तभोगी हूँ. दूध का जला हूँ इस लिए मट्ठा फूँक फूँक कर पीने की सलाह दे रहा हूँ. पसंद न आये तो भी पैसा नहीं होगा.
wah....badhiya post hain bhoothnathji.... :)
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