Thursday, August 28, 2008

How To Dance In The Rain

सबसे पहले तो ये बता दूँ कि इस पोस्ट को अंग्रेजी में देने के पीछे सिर्फ़ एक ही कारण है, व्यस्तताकाफी व्यस्त रहने के कारण इसे हिन्दी में अनुवाद नहीं कर पायाखैर, डॉ भारती कश्यप का यह अनुभव वास्तव में दिल को छू लेने वाला हैआप भी पढ़ें और विचार करें कि क्या आज हम अपने जीवन में इस तरह के संबंधों की डोर मजबूती के साथ पकड़े रहते हैंअगर नहीं, तो ज़रा एक बार सोचिये कि जवानी शास्वत नहीं, बुढापा सब को आएगाज़रूरत है तो सिर्फ़ अपने रिश्तों की बुनियाद मज़बूत करने की ताकि आपके अंत समय तक आपको अपने साथी का साथ मिलता रहे


Dr Bharti kashyap

It was a busy morning, about 8:30, when an elderly gentleman in his 80's, arrived to have his postoperative dressings as he was operated for glaucoma. He said he was in a hurry as he had an appointment at 9:00 am.
I saw him looking at his watch and decided, since I was not busy with another patient, I would evaluate his wound .
On exam, it was well healed, so I talked to one of the paramedical and redressed his wound.

While taking care of his wound, I asked him if he had another doctor's appointment this morning, as he was in such a hurry. The gentleman told me no, that he needed to go to the nursing home to eat breakfast with his wife.
I inquired as to her health. He told me that she had been there for a while and that she was a victim of Alzheimer's Disease. As we talked, I asked if she would be upset if he was a bit late. He replied that she no longer knew who he was, that she had not recognized him in five years now.
I was surprised, and asked him, 'And you still go every morning, even though she doesn't know who you are?'
He smiled as he patted on my head and said,
'She doesn't know me, but I still know who she is.'
I had to hold back tears as he left, and thought, 'That is the kind of love we all want in our life.'

True love is neither physical, nor romantic. True love is an acceptance of all that is, has been, will be, and will not be.

The happiest people don't necessarily have the best of everything; they just make the best of everything they have.
I hope you share this with someone you care about. I just did with my blog friends.

'Life isn't about how to survive the storm, but how to dance in the rain.'

15 comments:

Anonymous said...

the old man's story is a little bit similar with the latest ajay devgan's production U ME AUR HUM. but any way this is a very eye opening instance for all of us. keep going mam.

dahleez said...

सच पिरकल्पना से ज्यादा िविचॊ होता है। डॉ कश्यप की यह पोस्ट िदल को छू लेनेवाली और नई पीढ़ी के िलए एक उदाहरण है। भौितकवाजदी संस्कृित से परे पऱेम की इस भाषा को समझने की जरूरत है।

Anonymous said...

ऐसा विश्वास करना आज की तारिख में बहुत मुश्किल है कि कोई औरत जो किसी आदमी को पाँच साल से पहचान नहीं रही है, और वो आदमी अपनी पत्नी के साथ खाना खाने के लिए इतना आतुर है कि आपको, यानी डॉक्टर को जल्दी देखने के लिए बोल रहा है. खैर ऐसे लोग हैं तभी न पृथ्वी बची हुई है, वरना कब का इस धरती का सर्वनाश हो जाता. लेकिन जो हो पोस्ट बहुत सूपर लगा. मैडम को धन्यवाद

Anonymous said...

theek hai, aise log hain lekin bahut kam hain. zyadatar log to aaj sambandhon ko bojh samajhte hain. waise aisa hona nahee chahiye.

Anonymous said...

good story. is it true or an imagination of a doctor?

Anonymous said...

कहानी पढ़ के आँख में आंसू आ गए. मैं रुमाल ढूँढने जा रहा हूँ. मां....कहाँ हो बूहूहूहू...

मोनिका गुप्ता said...

दिल को छु जाने वाली रचना है.सचमुच ऐसा प्यार आज के ज़माने में एक सपने के सामान है. आज तो पति पत्नी एक दूसरे को साधारण सी बीमारी होने पर भी छोड़ने को तैयार हो जाते है. ऐसे समय में किसी अल्जईमर पीड़ित पत्नी के प्रति इतन निष्ठा रखना काबिल-ऐ-तारीफ है.सचमुच उस इंसान के पास बहुत बड़ा दिल है.

Anonymous said...

बहुत अच्छी लगी ये कहानी. असल में नयी पीढी के लिए वास्तव में ऐसे लोग एक सबक हैं, जो रिश्तों को मज़ाक समझ बैठे हैं. मुझे ऐसा लगता है कि जो लोग संबंधों कि अहमियत नहीं समझते, उन्हें जीने का कोई अधिकार नहीं, लेकिन क्या करें ऐसे लोगों को समाज तरजीह देता ही है. खैर यह तो हो ही सकता है कि आज हम सभी ऐसे लोगों की कहानियो को सामने लायें और लोगों को बताएं कि देखो आज भी ऐसे लोग जिंदा हैं. मेरे जीवन में एक लड़का आया था, लेकिन मुझे उससे धोखा ही हुआ. वो मुझे भील चुका है, लेकिन मैं उसे कभी नहीं भूल सकती.

मधु कुमारी, गोपालगंज

Anonymous said...

भारती कश्यप जी आपकी रचना बेमिसाल है. आप सचमुच बहुत लकी है की आपको ऐसे इंसान से बात करने का अनुभव प्राप्त हुआ.

Anonymous said...

आपने इस अनुभव का प्रकाशन कर आज की जेनरेशन पर उपकार किया है. कम से कम उन्हें यह तो मालूम होगा की प्यार केवल साथ घूमना खाना पीना और दैहिक आकर्षण का नाम नही.इसे उतनी ही निष्ठा और समर्पण से निभाना जरूरी है जैसे वो भला इंसान निभा रहा है.

नदीम अख़्तर said...

मुझे ऐसा लगता है कि आज स्थानीय अखबारों को भी ऐसे लोगों की कहानियो को सामने लाना चाहिए. नयी पौध को शिक्षित बनने का दायित्व अंततः प्रकाशन क्षेत्र से जुडी संस्थाओं का ही है. प्रभात ख़बर में ऐसी खबरें आती रही हैं. गुड न्यूज़ करके बहुत साड़ी खबरें छपी हैं. अगर मैडम ख़ुद विजय भइया से रिक्वेस्ट करें, तो वो ऐसी स्टोरी करवा सकते हैं. खैर ये पोस्ट बहुत अछा लगा. छोटा है, लेकिन कम शब्दों में ही मारक है.धन्यवाद मैडम को.

Anonymous said...

हमको लगता है कि बुढ्ढा अपने जल्दी से देखलाने के लिए डॉक्टर से झूठ बोला. अस्सी साल का उमर में उसको अपना बारे में होश होगा? बहुत भांति-भांति का लोग है, ई धरती पर. बाप रे बाप...

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर और भावुक कर देने वाला संस्मरण. दिल को छू गया!! आभार इस प्रस्तुति के लिए.

ranjay said...

marmsparshi hai ye story. aaj ke logon ke liye seekh bhi deti hai ye story. aaj ke bhaag daud ki jindgi me logon ko apno ke liye bhi waqt nahi hai. 5 saal ka lamba intjaar apne dayitwa aur sambandhon ka khyal rakhna wastav me anukarniya hai. khaskar aaj ki nai pidhiyon ke liye.

Anonymous said...

Yesterday I was very impressed with the content and writing of Dr. Bharti during reading of the piece. But it is more surprising to read a lot of comments on it. The comments itself discovers the truth that sensitive writing also has a huge market and Ye Dharti abhi viro se khali nahi hui hai jaisa ki Raja Janak ko Sita Swayambar ke wakt laga tha. Thanks Nadim for bringing such stories and Thanks Dr. Bharti for such writing. I hope you would keep it continue.
Vishnu Rajgadia