Monday, September 15, 2008

फिर फटा मुसलमानी बम...

विषय की गंभीरता ने लेख को थोड़ा लंबा खींचने पर मजबूर कर दिया, जिसके लिए खेद है, लेकिन सुविधा के लिए दो किस्तों में बांट रहा हूं। प्रस्तुत है भाग-एक। दूसरी किस्त दो दिनों के बाद।


नदीम अख्तर
दिल्ली में ब्लास्ट हुआ। 25 लोगों की मौत हुई। सौ से ज़्यादा लोग घायल हैं। मीडिया में खबरें, चौक-चौराहों पर विमर्श। ब्लॉग के चिट्ठाकारों से भी स्वाभाविक प्रतिक्रियाओं की गंध। लिखनेवाले लिख रहे हैं, बोलनेवाले बोल जाते हैं और सुनने वाले सुनते रहते हैं। बड़ा अनुत्तरित प्रश्र्न यह रह जाता है कि आखिर ठोस इलाज क्या है। ये सभी जानते हैं कि आज देश में जितने ब्लास्ट हो रहे हैं उनके आयोजनकर्ताओं के नाम के आगे या पीछे इस्लाम, मुसलमान, मुजाहिद, तालिब और अरबी भाषा में जांबाजी को प्रयुक्त होनेवाले विशेषणों से संबंधित शब्दों का समावेश ज़रूर रहता है। मतलब, किसी भी अतिवादी कार्रवाई के बाद अगर किसी संगठन अथवा व्यक्ति के द्वारा जिम्मेवारी ली जाती है, तो इस बात में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी जाती कि पूरे प्रकरण में नाम आये तो मुसलमान या इसलाम शब्द ज़रूर जुटे। आतंक की फिल्म में जिस करीने से इसलाम को नेगेटिव रोल में फिट किया गया है, वह काबिल-ए-तारीफ है। अब ज़रा सवाल कीजिए अपने मन से कि आपने कितने आतंकी संगठनों का नाम सुना है? कायदे से दस या बारह। अगर इनके प्रायोजक भी वही हैं, जो कथित तौर पर इस्लाम के नाम पर जिहाद कर रहे हैं तो भारत में कुल आतंकियों (पुलिस की जुबान में) की कितनी संख्या होगी? हजार आदमी से ज़्यादा बड़ा संगठन तो कोई नहीं होगा क्योंकि इससे बड़ा संगठन मुसलमान (जो रूढ़ीवादी हों) चलाने की सलाहियत ही नहीं रखते। गिने चुने लोग जिस मसजिद में नमाज पढ़ते हैं, वहां तो आपस में वर्चस्व की लड़ाई छिड़ जाती है। मदरसों में सदारत लेने के लिए मौलवी भिड़ जाते हैं और जलसों में माइक पर बोलने के लिए आलिम एक-दूसरे को गालियां देने लगते हैं। मतलब, इस देश में कुल सक्रिय आतंकियों की संख्या हो जाती है बहमुश्किल 12 हजार। चलिये और अधिक मान लेते हैं- 15 हज़ार। अब ज़रा ये सोचिये कि क्या इन पंद्रह हज़ार लोगों ने देश के करीब बीस करोड़ मुसलमानों (आधिकारिक 15 करोड़) की छवि को नुकसान नहीं पहुंचाया है। बेशक बहुंचाया है। और इस छवि को नुकसान पहुंचा है, तो फायदा किसे पहुंचा है-निश्र्चित रूप से मतों के ध्रुवीकरण का खेल खेलनेवाले दलों को। जो लोग मुसलमानों को बदनाम कर रहे हैं, उनका नारा यह रहता है कि जितने गैर-मुस्लिम हैं उन्हें इस "बड़े खतरे' से हम ही बचा सकते हैं, वर्ना देखिये कैसे दीपावली-दशहरा आदि-आदि मौकों पर आपको बमों से उड़ाया जाता है। हमें वोट दीजिये और अपने आप को सुरक्षित रखिये। और, ज़रा ये सोचिये कि क्या चुनावी मौसम में किराये के आतंकियों से ऐसा वे लोग ही नहीं करवा सकते जो मतों के एकीकरण की प्रचंड लहरी में चुनावी सफलता का सपना पाले बैठे हैं? क्यों नहीं करा सकते। सियासत मुहब्बत है कुर्सी से, सियासत जंग है आम आदमी से। और, मुहब्बत व जंग में सबकुछ जायज़ है। मैं बिल्कुल इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच रहा हूं कि ऐसा किसी एक खास राजनीतिक दल के द्वारा ही कराया जाता है, बल्कि मैं सिर्फ आशंकाओं की ज़मीन तलाश रहा हूं। ये राजनीतिक पहलू था, जो भारत में किसी भा राजनीतिक दल के द्वारा संभव है।
अब ज़रा मानवीय पहलू की नब्ज़ टटोलने की कोशिश करते हैं। मान लीजिए कि ये विस्फोट करनेवाले मुसलमान हैं और इसलाम के शाब्दिक अर्थ (शांति) से लेकर उसकी मूल दीक्षा (वैश्र्विक भाईचारा) तक को नज़रंदाज़ करते हैं। उनकी कही-कहाई बातें, जिहाद से इसलाम की रक्षा वगैरह को दरकिनार करें और व्यापक परिप्रेक्ष्य में सोचने की कोशिश करें। आतंक के इस खेल का जन्म ही क्यों हुआ? बहुत सारे कारण हैं - गहराई में जाने पर मेरे ऊपर "हिन्दुस्तानी कुफ्फारा' लग जायेगा, इसलिए बहुत ही जमीनी बातों पर चर्चा करते हैं।
जयपुर बम धमाकों के बाद पुलिस ने किसी "हूजी' का हाथ और किसी "सिमी' का साथ होने की बात कही। राज्य पुलिस के विशेष जांच दल (एसआइटी) द्वारा जारी किये गये सातों संदिग्धों के स्केच डीजी अपराध शाखा एके जैन को वापस लेना पड़ता। इसके बाद राज्य सरकार को शर्मसार होकर मजबूरी में सीबीआइ जांच के बारे विचार करना पड़ा। एक के बाद एक बम कांड के कारण यह सवाल अब खुलकर सामने आ गया है कि खुफिया एजेंसियां सही मायने में दहशतगर्दों के खिलाफ कारर्वाइयां कर रहीं हैं या फिर जांच की खानापूर्ति। संदेह की ये उंगलियां उन लोंगो की तरफ से तो उठ ही रहीं हैं जिनके परिजन दहशतगर्दी के शिकार हुए, आतंकवादी गतिविधियों के नाम पर जिन बेगुनाहों को पुलिस सलाखों में ठूस रही है या टार्चर कर रही है या इन सबसे बढ़कर गुनाह कबूल करवा रही है वे भी जानना चाह रहे हैं कि इस देश में कानून है भी या नहीं। यह प्रश्न गंभीर इसलिए भी है क्योंकि पूछने वाला कोई परिवार, कोई गांव या कस्बा नहीं है बल्कि लगभग बीस करोड़ की आबादी वाला पूरा एक समुदाय है जो पूछ रहा है कि क्या "हिस्दुस्तान की सरजमीं पर मुस्लिम मां के गर्भ से पैदा होना गुनाह है। हाल तक धार्मिक मदरसों को आतंकवादी गतिविधियों के नाम पर निशाना बनाया जाता रहा है अब क्या मुस्लिम नौजवान खासकर उच्च शिक्षा प्राप्त की बारी है।'
मुंबई के सांसद अबू आसीम आजमी ने एक बार पूछा था - हैदराबाद की मक्का मस्जिद में हो या दिल्ली का अंसल प्लाजा शापिंग मॉल, क्या हर जगह मुसलमान ही होते हैं? आजमी के अनुसार संसद में एक सवाल के जवाब में केन्द्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल का कहना है कि महाराष्ट्र के नांदेड बम कांड में आरएसएस का हाथ था। उन्होंने सरकार से मांग की है कि "एक ज्वाइंट पार्लियामेन्ट्री कमिटी बनायी जानी चाहिए जो जेलों में जाकर आरोपियों, पुलिसकर्मियों से मिले।' तीन महीने पहले दिल्ली में मुस्लिम बुद्धिजीवियों की बैठक में एक पर्चा पढ़ा गया, जिसमें कई प्रश्न सरकार के सामने रखे गये। पर्चे में लिखा था - "जब पाकिस्तान में आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर बंद कर दिये गये, कश्मीर में भी चरमपंथ लगभग दम तोड़ चुका है तो आखिर भारत में उनकी विध्वंसक गतिविधि को कौन संरक्षण दे रहा है। दूसरा यह कि अगर मान भी लिया जाये कि पाकिस्तान कश्मीर मसले की वजह से भारत में धमाके करा रहा है तो बांग्लादेश का भारत में दहशतगर्दी से क्या फायदा है। (जारी)
( पब्लिक एजेंडा के 9वें अंक में प्रकाशित आलेख कब थमेगा फर्जी गिरफ्तारियों का सिलसिला से कुछ तथ्य लिए गए हैं।)

18 comments:

फ़िरदौस ख़ान said...

आपका लेख पढ़कर अच्छा लगा...दरअसल 'कुछ लोग' अब पढ़े-लिखे मुसलमानों को जबरन आतंकी बनाने पर तुले हुए हैं...कोई तो हो जो मुसलमानों की आवाज़ को बुलंद करे...मुस्लिम संगठनों को आगे आकर 'आतंकवाद' से मुक़ाबला करना होगा...

विजय गौड़ said...

नदीम सहाब आपके सवाल एक गम्भीर बहस की मांग तो कर ही रहे हैं। आगे इंतजार है।

Sachin Jain said...

aapka lekh laga, par isssme kuch baatein hai jinse main sahmat nahi hoon........... jaise ki aapne likha ki hindustaan me kya muslman maa ke garbh se paida hona gunaah hai.....dekhie ye to shayad aap ko bhi pata hoga ki hidustaan me Dharam ke naam par koio batwanran nahi hai......par kyonki ye aatanki gatiwidhiyan iss kadar bad gai hai ki inko rokna bahut aawshayak hai....aur jaisa ki aapne shuru me hi ullekh kia ki jitne aatanki sangdhan hain un sab me kahin na kahin se muslim shabd juda hai aur aapne ye bhi likha ki lagbhag 15,000 muslim aatankwadi iss desh me hain , 15,000 ek bahut badi sankhya hai aur inko agar humara prashashan pakdega to ye to nishchit hai ki ussme kuch to begunah log pakde jaaenge, unse poochtaach hogi aur jaankaari nikalni ki koshish ki jaaegi, yahi baat madarson par bhi laagu hoti hai, bahut se madrase aise paaein gae jahan in gatividhiyon ko anjaam dia jaa raha tha..........

Aaka ek aur prashn jisne mujhe sochne par majboor kia wo hai raajnitik party ki in sab me shaamil hona, maine aapki jaankaari ke lie ek baat batata hoon ki raajneeti kitni bhi gandi ho jaae iss desh me, chahe ye log kitna bhi paisa khaa lein , chaahe ye log kitne logo ko bhi marwa dein ( raajneetic fayde ke lie ) phir bhi kabhi bhi shyad Bomb Blast jaisi harkat nahi karenge...... aasaan nahi hai bomb blast karana.......iss baat se to shayad kuch aur log bhi sahmat honge......

Anonymous said...

नदीम अख्तर जी धन्यवाद आप मुसलमान होकर इसकी गंभीरता को समझ रहे हैं, क्योकि अब ख़ुद मुसलमान ही इस मुद्दे पर आगे बढ़कर कुछ करे तो कुछ होगा, क्योकि किसी की भावनाओ को भड़का कर उसे आतंकवादी बनाना बहुत ही आसान है.

नदीम अख़्तर said...

sachin sahab aap phir gachcha khaa gaye. maine 15 hajar aatankiyon ka zikr kiya hai, unke dharm ka nahee. kya ye zaroori hai ki koi bhee aatanki musalmaan hee ho. kisi bhee sangathan ke zimmewaari le lene bhar se kya aatankwaadi ka dhrm bhee aap identify kar sakte hain, ho sakta hai ki koi paise dekar ye sab kara raha ho. aur yahaan ki raajneeti par to aapko bhee shak nahee hona chahiye, kyunki vote bank ke liye hee 2500 musalmanon ko narendra modi ne prashashan ke sangrakshan me marwa diya. abhee orissa me police aur hindu hardliners ne mil kar 60 se bhee zyada cristians ko kaat dala. 84 me congress ne sikhon ke saath kyaa nahee kiya tha. soch lijiye ki jo log din ke ujaale me haath me talwaar lekar logon ko kaat daalne me koi parhez nahee kar rahe hain, wo log kuchh bom kaheen rakhwa dene me kyun parhez karenge.

मसिजीवी said...

अब बम का ईमान तो भला क्‍या खक मुसल होगा लेकिन हर बम गैरजरूरी तौर पर एक पूरे समुदाय पर सवालिया निशान लगाता है, इस प्रवृत्ति को हमेशा के लिए खत्म करने की जरूरत है। पर ये उममीद न करें कि ये काम आडवाणी या नरेन्‍द्र मोदी करेंगे, खुद इस समुदाय को ही ये काम करना होगा।

बाकी 15000 की संख्‍या तिस पर उनका सपोर्ट स्‍ट्रकचर, सहानुभूति रखने वाले, सहानुभूति न रखने वाले पर रिश्‍ते‍दारी या दोस्‍ती रखने वाले इन सब को जोडें तो संख्‍या बहुत बड़ी हो जाती है। लेकिन अगर इतनी ही संख्‍या इनका सक्रिय विरोध करने वालों की हो जो सड़कों पर इनका विरोध करें तब शायद बात बने।
कोई मोदी देश के बीस करोड़ लोगों को आतंकवादी करार नहीं दिलवा सकता किंतु बीस करोड़ चुप्पियॉं जरूर ये करवा सकती हैं।

रंजीत/ Ranjit said...

aalekh men aapne jo sawal uthaye haim agar iska jawab imandari se hukumat aur hindustani nagrik de to yahan se sada ke liye aatankwad khatm ho jayega. Main bhuktbhogi hone ke nate kahna chahunga kee jab purwagrah se grasit hokar(Jati.Dharm etc) kisi insan kee niyat par koi shak karne lagta hi to wah puri manavta par sandeh karne lagta hi.jo budhiman hote hain wah to iske khilaf tarkeek bahas chalate hain lekin teenagers aur kam padhe log aise paristhiti men hinsak-ugra bhee ho jata hi. kuch logon kee wajah se pure koum par shak karne wale desh ke liye aatankwadiyon se jyada khatra paida karte hain.

Sachin Jain said...
This comment has been removed by the author.
Vivek Ranjan Shrivastava said...

.......इस देश में कुल सक्रिय आतंकियों की संख्या हो जाती है बहमुश्किल 12 हजार। चलिये और अधिक मान लेते हैं- 15 हज़ार। अब ज़रा ये सोचिये कि क्या इन पंद्रह हज़ार लोगों ने देश के करीब बीस करोड़ मुसलमानों (आधिकारिक 15 करोड़) की छवि को नुकसान नहीं पहुंचाया है। बेशक बहुंचाया है।.....bhut hi bebak likha hai apne ..aaj jrurat hai ki libral muslims ko , padhe likhe muslims ko samaj support kare aur unhe in mutthi bhar aatanki logo dvara failaye ja rahe gumrah jihad ke viruddh , kuran ke jihad ki vastvik vyakhya kar musalmano ko veshvik star par aatank ka paryay project karne per rok lage .

Vivek Ranjan Shrivastava said...

.......इस देश में कुल सक्रिय आतंकियों की संख्या हो जाती है बहमुश्किल 12 हजार। चलिये और अधिक मान लेते हैं- 15 हज़ार। अब ज़रा ये सोचिये कि क्या इन पंद्रह हज़ार लोगों ने देश के करीब बीस करोड़ मुसलमानों (आधिकारिक 15 करोड़) की छवि को नुकसान नहीं पहुंचाया है। बेशक बहुंचाया है।.....bhut hi bebak likha hai apne ..aaj jrurat hai ki libral muslims ko , padhe likhe muslims ko samaj support kare aur unhe in mutthi bhar aatanki logo dvara failaye ja rahe gumrah jihad ke viruddh , kuran ke jihad ki vastvik vyakhya kar musalmano ko veshvik star par aatank ka paryay project karne per rok lage .

Vivek Ranjan Shrivastava said...

.......इस देश में कुल सक्रिय आतंकियों की संख्या हो जाती है बहमुश्किल 12 हजार। चलिये और अधिक मान लेते हैं- 15 हज़ार। अब ज़रा ये सोचिये कि क्या इन पंद्रह हज़ार लोगों ने देश के करीब बीस करोड़ मुसलमानों (आधिकारिक 15 करोड़) की छवि को नुकसान नहीं पहुंचाया है। बेशक बहुंचाया है।.....bhut hi bebak likha hai apne ..aaj jrurat hai ki libral muslims ko , padhe likhe muslims ko samaj support kare aur unhe in mutthi bhar aatanki logo dvara failaye ja rahe gumrah jihad ke viruddh , kuran ke jihad ki vastvik vyakhya kar musalmano ko veshvik star par aatank ka paryay project karne per rok lage .

Sachin Jain said...

Naddem Ji,

dekhie main Dharm ke maamle main bahut hi udaseen hoon, mujhe farak nahi padta hi koun kis dharam ka hai, humara business hai home town me and mostly we have mulim customers and emplyees and we all are bahaving equal with them,

My father goes to Peer eveny thursday from last 30 yrs without missing, and he belong to RSS also, you are seeing only one side of the picture that is after effects,

See the poicture of what happen before that all that happen , I am not arguing that modi is right aur karela police is right, but they did all that when someone created problem for them, They all are wrong when it comes to kill people either they are hindu or they are muslims,

And as far as politics are concern, I know that these politian can anything for votes but they will never make bomb blast at any cost, No party will do that,

aur rahi baat aatankwaad ki, to aap koi bhi record uddaa lijiee, pichle 20-25 saalon ke kise bhi desh ke to ye saaf ho jaaega ki adhiktar Aatankwadi muslim hi hain, Prashasan usme kuch nahi kar sakta, agar wo talashi lenge to wo bhi muslim ghar hi milega, agar poochtaach kaenge to wo bhi muslim hoga, Isslie hum sabhi ki ye jimmedaari banti hai ki Sarkaar ka sahyog karin, Inki khabar de police ko prashashan ko naa ki ye rona machaae ki Hume pareshan kia jaa raha hai kyonki hum ek vishesh samuday se hain,

I personally do not believe in the Castism and thats why never write for that, because people from both side are wrong, But when I saw your blog I can not escape writing............

कोई भी देश के २० करोड़ लोगो को आतंकवादी कर्रार नही करवा सकता पर हाँ २० करोड़ लोगो की चुप्पी करा सकती है...... bus yahi main kahna chah raha thaa and masijeevi got the words,

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

नदीम भाई , आज कुछ बातें खुल के कहना चाहता हूँ अच्छी या बुरी लगने की बात बाद में सोची जायेगी !! हकीकत ये है कि एक जीने का सिद्दांत है कि या तो आप परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बिठा लो और तत्कालीन सामाजिक और मानवीय आवश्यकताओं के साथ बदल जाओ,जिसे समय के साथ बदलना भी कहते हैं ,या फिर मिट जाने को तैयार रहो !!राजनीति अच्छी हो या बुरी,सच तो यह है कि हम अपनी कमजोरी को राजनीति के मलीन परदे के पीछे कतई नहीं ढक सकते,ना ही हमें ढकना चाहिए !!एक आम आदमी अपनी तमाम कमजोरियों के लिए अक्सर अपनी परिस्थिति को जिम्मेवार ठहराता है,वहीं हम अपने बरसों पुराने या फ़िर अभी-अभी गुज़रे अतीत से यही खुलासा पाते हैं कि हमारे तमाम महापुरुष इन्हीं परिस्थितियों में और इन्ही रास्तों से गुज़रकर महान बने ,फर्क सिर्फ़ इतना है कि उनकी आंखों में बजाय अपने,वतन के लिए एक सपना हुआ करता था,हमारी आंखों में महज अपने और अपने परिवार को रोटी खिलाने का एक सूत्री कर्तव्य !!आप जब बस इतना भर ही सोचते हो तो आप कुछ भी बन सकते हो!!चोर,डाकू,देशद्रोही,आतकवादी या फिर कुछ भी,फिर चाहे आप हिंदू हों या मुसलमान !! रोटी कुछ भी करवा सकती है ,मगर आपको कुछ भी करने या ना करने की आज्ञा देने वाला तो आपके भीतर ही मौजूद है !?है या नहीं ?!और भीतर की आवाज़ कौन सुन सकता है?रोटी की खातिर कुकर्म करने से कौन बच सकता है?सिर्फ़ वो जो इस भीतर आवाज़ सुन सकता है !और भीतर की आवाज़ कौन सुन सकता है?वो ही जो निम्नतम रूप में ही सही,मगर पढ़ा-लिखा हो !! पढाई !!यही वो स्थान है जहाँ दुनिया का यह सर्वप्रमुख (मुस्लिम) समुदाय एकदम से सबसे नीचे के पायदान पर पाया जाता है!और इससे ठीक ऊपर जो भी है,इससे (मुस्लिम) से कई गुना ऊपर है !!शिक्षा सिर्फ़ साक्षरता भर नहीं होती,यह अच्छे-बुरे का ज्ञान.....ज्ञान की ललक ....आगे जाने की इच्छा ....संस्कार की तमीज ...मेहनत करके आगे बढ़ने का हौसला और अंतत अपने भीतर की बुराईयों तथा कमजोरियों पर विजय भी होती है!!जिन समाजों ने अपने-आपको इस कसौटी पर बदल लिया,वे वाकई कहाँ के कहाँ पहुँच चुके हैं !! स्वयं पढ़ा-लिखा मुस्लिम भी तो ....!!इस कसौटी पर बाकि का मुस्लिम समुदाय कहाँ ठहरता है!उसे कहाँ जाना है ??नदीम भाई,बस इसी मर्ज़ का इलाज़ करना है,बाकी चीजें तो इसीके पीछे हैं,अपने आप ठीक हो जाएँगी !!इसलिए इस मुद्दे पर भावुक ना होकर प्रोफेशनल बनिए!!भावुकता सब कबाडा करती आई है,इसने व्यवहारिक मुद्दों को हजम कर लिया है,सठियाये मुद्दों को उभारती है!माहौल और भी ज्यादा ख़राब करती है,दूसरों को भी मौका देती है,सठियाने का,एकीकृत होने का.....और देश का मिजाज बदलता जाता है,ख़राब होता जाता है!!अब यह सब हटाईये और अपनी समूची शक्ति से इस ज्ञान की ज्योति से विहीन अभागे समाज को शिक्षा के प्रकाश से आलोकित कीजिये,अपने तमाम संपर्कों का लाभ उठाईये,और अपने तमाम शिक्षित मुस्लिमों को एसा करने पर "विवश"भी कीजिये !!आने वाले वर्षों में ज्ञान की ज्योति से अधिकतम मुस्लिम इस प्रकार जगमगा उठें कि दुनिया उन्हें निहारती ही रह जाए !!कोई शुरुआत ही करे ...यह रास्ता ज्यादा बड़ा नहीं है,मगर इसे तय करके जो मिलना है,उसकी कोई भी कीमत भी कम है,क्यूंकि शिक्षा का कोई मोल नहीं,ये तो अमूल्य है ....सच !!

dahleez said...

नदीम जी अापने बहुत अच्छे मुद्दे उठाए हैं। सवाल यह उठता है िक क्या मुसिलम अकिलयत कट्टरपंथी ताकतों के अागे िबल्कुल बेबस है। अातंकवाद िकसी मजहब और संपऱदाय का सवाल नहीं है। यह सवाल है पूरे समाज का। भारत में रहनेवाले मुसिलम, िहंदू,िसख ईसाई और तमाम लोग से इससे पऱभािवत हैं। बम फटता है तो यह नहीं देखता िक मरनेवाला कौन है। भारत में सौहादऱॆ की पिरभाषा क्या है? नई पीढ़ी के सामने यह एक बहुत बड़ी चुनौती है िक हम इससे कैसे िनपटते हैं।

Anonymous said...

नदीम जी आपने जो भी लिखा है मैं उससे सहमत हूँ , हमारे हिंदुस्तान में सबसे बड़े गुनाहगार हमारा नेता ही हैं , जो हमें कभी जाति तो कभी धर्म के नाम पर मरवाते है , मगर हम यह कभी नही सोचते की किसी आतंकवादी घटना में कोई भी नेता क्यों नही मरता क्यों की सोचने वाला तथ्य यह है .की जब आतंकवादी हमारे देश की सुरक्षा में सेंध कर सकता हैं तो क्या उनके लिए हमारे नेतागणों की सुरक्षा में सेंध लगना मुस्किल है? नही ! मगर कोई भी अपने मालिक या आका को क्यों मारेगा. यह हमें और हमारी नौजवान पीढी को सोचना होगा .

Anonymous said...

नदीम जी आपने जो भी लिखा है मैं उससे सहमत हूँ , हमारे हिंदुस्तान में सबसे बड़े गुनाहगार हमारा नेता ही हैं , जो हमें कभी जाति तो कभी धर्म के नाम पर मरवाते है , मगर हम यह कभी नही सोचते की किसी आतंकवादी घटना में कोई भी नेता क्यों नही मरता क्यों की सोचने वाला तथ्य यह है .की जब आतंकवादी हमारे देश की सुरक्षा में सेंध कर सकता हैं तो क्या उनके लिए हमारे नेतागणों की सुरक्षा में सेंध लगना मुस्किल है? नही ! मगर कोई भी अपने मालिक या आका को क्यों मारेगा. यह हमें और हमारी नौजवान पीढी को सोचना होगा .

Anonymous said...

nadeem ji atankwad ki koi jaat ya dharm nahi hoti. par apne gujrat ka mudda uthaya hai. gujrat ki baat sab karte hai, par godhara ki baat nahi karte. orissa me jo kuch bhi hua, uske pehle kya hua tha. kyon swami laxmananad ko mara gaya. kisne mara. mera manana hai ki santan dharm aaj bhi shantipriya hai. sahayad yehi karan hai ki aaj tak ye chal raha hai. warna kitne dharm aye aur gaye.

Sachin Jain said...

मजहबी दुश्मनी ने देखो कैसी आग लगाई है, दिलो मैं दूरियां तो पहले से थी, अब चिंगारियां लगाई हैं...........