Monday, January 26, 2009

स्लम-डॉग की वाह-वाह.....!!

स्लम डॉग बेशक एक सच है....मगर इस सो कॉल्ड डॉग को इस स्लम से निकालना उससे भी बड़ा कर्तव्य आपके ख़ुद के बच्चे का नाम रावण नामकरण,कंस,पूतना,कुता,बिल्ली आदि क्या कभी आप रखते हो....नाम में ही आप अच्छाई ढूँढ़ते हो.....और हर किसी नई चीज़ या संतान या फैक्ट्री या दूकान या कोई भी चीज़ का नामकरण करते हो....नाम में ही आप शुभ चीज़ें पा लेना चाहते हो......स्लम-डॉग........ये नाम........!!नाम तो अच्छा नहीं है ना .......एक अच्छी चीज़ बनाकर उसका टुच्चा नाम रखने का क्या अर्थ है ....क्या इसका ये भी मतलब नहीं आप भारत की गंदगी ....बेबसी .और लाचारी को भुनाना चाहते हो .......क्या इसे दूर करने का भी उपाय किसी के पास है .....??मैं अक्सर देखता आया हूँ कि यथार्थ का चित्रण करते कई साहित्यकार,फिल्मकार,नाटककार,चित्रकार,या अन्य कोई भी "कार" जिन विन्दम्बनाजनक स्थितियों का कारुणिक चित्रण कर वाहावाही बटोरते हैं....पुरस्कार पाते हैं,वो असल में कभी उन परिस्थितियों के पास शूटिंग आदि छोड़कर कभी अन्य समय में खुली आंखों से देखने भी जाते हैं......??एक पत्रकार जिन कारुणिक दृश्यों को अपने कैमरे में कैद करता है,उसका उस स्थिति के प्रति कोई दायित्व है भी कि नहीं.......??क्या हर चीज़ का दायित्व सरकार और उससे जुड़ी संस्थाओं का ही है....??क्या आम नागरिक,जो चाहे कैसे भी चरित्र का क्यूँ ना हो, वो हर चीज़ से इस तरह विमुख होकर जी सकता है......??अगर हाँ तो उसे क्यूँ इस तरह जीने का हक़ देना चाहिए.........??अगर सब लोग इसी तरह सिर्फ़ व् सिर्फ़ गंदगी का चित्रण करने को ही अपना एकमात्र दायित्व समझ कर हर चीज़ को ज्यों का त्यों दिखलाकर अपना कर्तव्यबोध पूरा कर के इतिश्री कर लें तो क्या होगा......??अगर कुछेक संस्थायें जो वस्तुतः ईमानदारी से भारत को भारत बनने के कार्य को बखूबी संपन्न कर रहीं हैं.......आप सोचिये कि वो या कार्य छोड़कर अगर इसीप्रकार का यथार्थ-चित्रण में लग जाए तो क्या होगा....??क्या होगा जो देश के वे सब लोग अपना काम करना छोड़ दें,जो वाकई आँखे नम कर देने लायक,या आँखें खोल देने लायक उत्प्रेरक कार्यों में अनवरत जुटे हुए हैं.....??स्थितियों का वर्णन बड़ी आसान बात होती है.........कलाकारी तो उससे ज्यादा आसान,क्यूंकि आदमी से बड़ा कलाकार इस धरती पर है ही कहाँ....??सच्ची कलाकारी तो इस बात में है.......कि आप भूखी-नंगी जनता के लिए कुछ भी कर पायें......अगर आप इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कुछ कर सकने में सक्षम नहीं हैं.....या करने को व्याकुल नहीं है......तो आपकी कलाकारी गई चूल्हे में....उन्हीं कुत्तों की बला से,जिनका चित्रण आपने "स्लम-डॉग" में किया है........!!भइया इस तरह के चित्रण को कर के दुनिया के तमाम फिल्मी मंचों पर तालियाँ अवश्य बटोरी जा सकती है.....मगर उससे कुछ भी बदल नहीं पाता........अगर सच में हीरो बनने का इतना ही शौक है........तो आईये इसी स्लम के खुले और विराट मैदान में और कीजिये मजलूमों भूखों-नंगों-अपमानित लोगों के पक्ष में ज़ोरदार आवाज़ बुलंद........!!हम भी देखें कि मुद्दुआ क्या है....आपमें माद्दा कितना है.......कितना है कलाकारी का जूनून....और कितना है जोश जो एक नागरिक को एक नागरिक बनाता है.......और उन्हीं लोगों के कुल जोड़ और उनकी चेतना का कुल प्रतिफल उनका देश.......मेरा वतन सचमुच अपने सच्चे हीरो का इंतज़ार कर रहा है......आईये ना दोस्तों दिखा दीजिये ना अपनी सचमुच की कलाकारी.......यह देश सदियों-सदियों आपका अहसानमंद रहेगा....और इसकी संताने आपकी सदा के लिए कृतज्ञ ....!!

4 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

गणतंत्र दिवस की आपको बहुत बहुत बधाई

संगीता पुरी said...

बहुत अच्‍छा......गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं।

Manish Kumar said...

राजीव भाई, पुरस्कार बटोरने की विदेशी मानसिकता के बारे में आपका कथन सही है। पर वास्तविकता जो है उसे देखने दिखाने में परहेज भी नहीं होना चाहिए। सिनेमा के माध्यम से अगर जनता और नेताओं की संवेदनाओं को थोड़ा कष्ट पहुँचे तो पहुँचना चाहिए।

आपने सवाल उठाया है कि बदलाव कैसे आएगा। बदलाव लाने का जिम्मा सरकार, नौकरशाहों और आम जनता का है। कलाकारों का जो काम है उन्होंने फिल्म के माध्यम से किया है । पर ये स्थिति ये भी दिखाती है कि जिन्हें जो करना चाहिए वो नहीं कर रहे हैं।

travelwithmanish.blogspot.com
ek-shaam-mere-naam.blogspot.com

Vinay said...
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