Friday, January 30, 2009

गांधी को गाली देने से पहले...

1948: The news of Gandhi's assassination hits the
streets. A stunned crowd gathers in Calcutta.

बरसों से गांधी के बारे में बहुत सारे विचार पढता चला आ रहा हूँ! अनेक लोगों के विचार तो गाँधी को एक घटिया और निकृष्ट प्राणी मानते हुए उनसे घृणा तक करते हैं!! गांधीजी ने भारत के स्वाधीनता आन्दोलन के लिए कोई तैंतीस सालों तक संघर्ष किया। उनके अफ्रीका से भारत लौटने के पूर्व भारत की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियां क्या थीं, भारत एक देश के रूप में पिरोया हुआ था भी की नहीं, इक्का-दुक्का छिट-पुट आन्दोलन को छोड़कर (एकमात्र 1857 का ग़दर बड़ा ग़दर हुआ था तब तक) कोई भी संघर्ष या उसकी भावना क्या भारत के नागरिकों में थी, या उस वक्त भारत का निवासी भारत शब्द को वृहत्तर सन्दर्भों में देखता भी था अथवा नहीं, या उस वक्त भारत नाम के इस सामाजिक देश में राजनीतिक चेतना थी भी कि नहीं, या इस देश में देश होने की भावना जन-जन में थी भी कि नहीं !! इक बनी-बनाई चीज़ में तो आलोचना के तमाम पहलु खोजे जा सकते हैं, चीज़ बनाना दुष्कर होता है, महान लोग यही दुष्कर कार्य करने का बीड़ा लेते हैं और बाकी के लोग उस कार्य की आलोचना!! लेकिन सवाल ये नहीं है, सवाल तो ये है कि मैदान में खेल होते वक्त या तो आप खिलाड़ी हों या अंपायर-रेफरी हों या कम-से-कम दर्शक तो हों.!! या किसी भी माध्यम से उस खेल का हिस्सा तो हों! अब बेशक पकी-पकाई रोटी में आप सौ दुर्गुण देख सकते हों, सच तो यह भी है कि ये भी भरे पेट में ही सम्भव है। खाली पेट में तो यही आपके लिए अमृत-तुल्य होती है। मेरी बात आपके द्वारा समझी जा रही होगी, क्यूंकि इधर मैं लगातार देखता आ रहा हूँ कि गांधी को गाली देने वाले लोगों कि संख्या बढती ही चली जा रही है, क्यूँ भई आप कौन हो "उसे" गाली देने वाले? एक मोहल्ले के रूप में भी ख़ुद को बाँध कर ना रख सकने वाले आप, सूटेड-बूटेड होकर रहने वाले आप, इंगरेजी या हिंग्रेजी बोलने वाले आप, अपने बाल-बच्चों में खोये रहने वाले आप, अपने हित के लिए देश का टैक्स खाने वाले आप, तरह-तरह की चोरियां-बेईमानियाँ करने वाले आप, अपने अंहकार के पोषण के लिए किसी भी हद तक गिर जाने वाले आप, बच्चों, गरीबों, मजलूमों का बेतरह शोषण करने वाले आप, स्त्रियों को दोयम दर्जे का समझने वाले आप और भी न जाने क्या-क्या करने वाले आप। आप कौन हैं भाई?
आपकी गांधी के पासंग औकात भी क्या है? आप गांधी के साथ इक पल भी रहे हो क्या? आपने गांधी के काल की परिस्थितियों का सत्संग का इक पल भी जीया है क्या? क्या आप घर तक को एकजुट कर सकते हो? उसे मोतियों की तरह पिरो सकते हो?
सच तो यह है कि इस लेखक की भी गांधी नाम के सज्जन से बहुत-बहुत-बहुत सी "खार" है कि गांधी नाम का ये महापुरुष मीडिया में आए विमर्शों के अनुसार विक्षिप्त था, औरतों के साथ सोता था, पत्नी को पीटता था, पुत्र के साथ भी उचित व्यवहार नहीं करता था, ऐसी बहुत सारी अन्य बातें, जिनका स्त्रोत मीडिया ही है, के माध्यम से मैं भी खार खाने लगा हूँ, लेकिन मैं नहीं जानता कि और मुझे कोई यह बता भी नहीं सकता कि यह सब कितना कुछ सच है और इस सबके भीतर असल में क्या है? जो भी हो, मगर इतना अवश्य जानता हूँ कि "गांधी" नाम के इस शख्स के सम्मुख मैं क्या हूँ! आराम की जिन्दगी जीते हुए हम सब आजाद और "आजादखयाल" लोग किसी भी चीज़ को बिल्कुल भी गंभीरता से ना समझने वाले हमलोग और अतिशय गंभीरता का दंभ भरने वाले हमलोग, परिस्थितियों का आकलन मन-मर्जी या मनमाने ढंग करने वाले हमलोग, किसी अन्य की बात या तथ्य की छानबीन ना कर उसी के आधार पर अन्वेषण कर परिणाम स्थापित करने वाले हम लोग!! मैं अक्सर सोचता हूँ कि बिन औकात के हम लोग किसी के भी बारे में ऐसा कैसे कह सकते हैं। खासकर उस व्यक्ति के बारे में जिसके सर के इक बाल के बराबर भी हम नहीं। एक चोर भी अगर जिसने अपने समाज में कोई अमूल्य योगदान दिया है और हमने अगर सिवाय अपने पेट भरने के जिन्दगी में और कुछ भी नहीं किया तो बागवान की खातिर हमें उस चोर की बाबत चुप ही बैठना चाहिए और अगरचे वो गांधी नाम का व्यक्ति हो तो सौ जनम भी हम उसके बारे में कुछ भी बोलने के हकदार नहीं। मैं आपको बता दूँ कि गाँधी सिर्फ़ इक व्यक्ति का नाम नहीं, एक देशीय चेतना का नाम है, एक ब्रहमांडइय चेतना का नाम है, एक सूरज हैं वो जो बिन लाग-लपेट के सबको रौशनी देता है। उनके बहुत सारे विचारों का विरोध करते हुए मैं पाता हूँ कि मैं उनके सामने एक कीडा हूँ। मैं चाहे जो कुछ भी उनके बारे में कह लूँ, सच तो यही है कि मैंने और ऐसा कहने वाले तमाम लोगों ने कभी कुछ रचा ही नहीं। देश की आजादी तो दूर, आज़ाद देश में अपने मोहल्ले की गंदगी को साफ़ कराने का कभी बीडा नहीं उठाया। गली-चौक-चौराहों-पत्र-पत्रिकाओं-मीडिया-टी.वी. आदि में बक-बक करना और बात है, और सही मायनों में अपने समाज के लिए कुछ भी योगदान करना और बात। मेरी बोलती यहीं आकर बंद हो जाती है। दोस्तों किसी पर चीखने-चिल्लाने से पहले हम यह भी सोच लें कि हम क्या हैं और किसके बारे में किसकी बात पर चीख रहे हैं!! गांधी को गरियाने की औकात रखने वाले हम यह भी तो नहीं जानते कि अगर गांधी हमारे सामने होते तो हमें भी माफ़ करते। ऐसे लोग पहले किसी स्वच्छ तालाब में अपना मुंह धोकर आयें और अपनी आत्मा की गहराई से ये महसूस करें कि राम क्या है। किसी की भी आलोचना करने से पूर्व और अगर वो व्यक्ति देश के लिए अपना जीवन आत्मोसर्ग कर के गया हो!! आज गांधी जी की पुण्यतिथि है। इस पुण्यतिथि पर हम अवश्य ये सोच कर देखें कि आज जिसकी पुण्यतिथि हम मना रहे हैं, उसे याद कर रहे हैं और आने वाले तमाम वर्ष याद करेंगे, बजाय इसके हमारी पुण्यतिथि पर हमें याद करने वाले लोग कितने होंगे?

3 comments:

नदीम अख़्तर said...

हे राम!! गांधी जी ने वैसे तो बहुत सारी बातें कही लेकिन उनमें से एक मुझे अभी याद आ रही है - "सत्य से बढ़कर कोई भगवान नहीं", आज की तारीख में किसी के पास सत्य नहीं। तो, हालात को देखते हुए मेरा मानना है कि गांधी जी आलोचनाओं और मरणशीलों के विचारों से ऊपर उठे हुए संत हैं। उनके बारे में कुछ भी बोलने से बेहतर है चुप रहना। चुप रह कर ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है।

अक्षत विचार said...

हम सब के थे प्यारे बापू...... बहुत भावनात्मक लेख लिखा है।

समीर सृज़न said...

आपने जो ब्लॉग लिखा है वो काफी प्रशंसनीय है.गाँधी जी के सन्दर्भ में कुछ भी बोलने और सुनाने से पहले हमें ये अच्छी तरह सोचना चाहिए की उनका कद हम हिन्दुस्तानियो के लिए कितना बड़ा है..विचारो में भिन्नता हो सकती है. और कोई भी मनुष्य कोम्प्लित नहीं होता है. परन्तु उन्होंने जो कुछ भी दिया है हमें भुलाना नहीं चाहिए. इस मामले मे मेरा विचार नदीम जी से थोडा इतर है...गाँधी जी के बारे में आपके और हमारे विचार जो भी हो उन्हें समय आने पर कहना ही चाहिए. चुप रहने से लोग हमें कमज़ोर समझते है औए हम कमज़ोर तो नहीं है कम से कम इस मामले में..
राजीव जी इसी स्वतंत्रता संग्राम,गाँधी जी और शहीदों के ऊपर मैंने भी ब्लॉग लिखा है..हो सके तो उधर भी नज़ारे इनायत कीजिएगा और सम्बंधित सुझाव दीजिए..