Wednesday, March 18, 2009

मौत का एक दिन मुअयन्न है.....!!

जिन्दगी किसके साथ किस प्रकार का खेल खेलती है...यह किसी को भी नहीं पता...अलबत्ता खेल पूरा हो चुकने के बाद हमारा काम उसपर रोना-पीटना या हंसना-खिलखिलाना होता है...किस बात का क्या कारण है...हमारे जिन्दा रहने या अकाल ही मर जाने का रहस्य क्या है....यह भी हम कभी नहीं जान सकते....हम सिर्फ चीज़ों को देख सकते हैं...गर सचमुच ही हम चीज़ों को गहराई से देख पाते हों....तो किसी की भी....किसी भी प्रकार की मौत हमारे इंसान होने के महत्त्व को रेखांकित कर सकती है....क्या हम सच में इस बात समझ सकने के लिए तैयार हैं......?????
.........जेड गुडी ही क्यों....किसी भी कोई भी इंसान किसी भी दुसरे इंसान की तरह ही उतना ही महत्वपूर्ण है....अपनी अर्थवत्ता और अपने महत्त्व को इतना सभ्य.... ..इतना शिक्षित....इतना विवेकशील कहलाने वाला इंसान भी नहीं समझता और तमाम तरह के दुर्गुणों....लालचों.....व्यसनों....और अन्य बुराईयों में जानबूझकर जकडा हुआ रहता है....
हर वक्त किसी से भी झगड़ने को तैयार रहता है....और तरह-तरह के नामों के खांचे में खुद को सीमित कर तरह-तरह की लडाईयाँ लड़ता रहता है....!!
............आखिर क्या बात है.....??.....आखिर इंसान को चाहिए तो आखिर क्या चाहिए.....???....कितना कुछ उसके शरीर के और मन के पेट भरने को काफी है...??.... सच तो यह है.....की हम पाते हैं कि कितना भी कुछ इंसान को क्यूँ ना मिल जाए....उसकी हवस उसको मिले कुल सामान से "द्विगुणित" हो जाती है....हमारे चारों और तरह-तरह के जेड़ गुडी बिखरे पड़े हैं....जो विभिन्न तरह के कैंसरों से लड़ते-लड़ते जीते-जी मर रहे हैं....और अंततः जिन्दगी की तमाम जंग हार जा रहे हैं...जो मीडिया में है...या जो मीडिया को दिखाई पड़ता है...सिर्फ उतनी ही यह धरती नहीं है....और ना ही उतने ही धरती के दुखः......!!
...........हम सब....या हममे से कुछ लोग भी अगर बेहतर इंसान होने का मदद अपने भीतर भर लें.....तो समाज के बहुत तरह के कैंसर एक क्षण में दूर हो सकते हैं...क्या हम एक बेहतर इंसान बनाने को तैयार हैं.....??क्या हम अपने कर्तव्यों को समझते हैं....??क्या हम समझ पाने को व्याकुल हैं कि धरती को सच्चे इंसानों की बहुत से समय से तलाश है...??क्या हम समस्त इंसानों की थोडी सी खुशियों के लिए अपने थोड़े से स्वार्थों की तिलांजलि देने को तैयार हैं....??...................याद रखे धरती हमें यह नहीं कहती कि हम दुखी हो जाएँ....बस इतना ही चाहती है कि हम अपने थोड़े से सुखों को किसी और को सौंप दें.....और इसमें बड़ा मज़ा आता है....हमारे अपने सुखों से कहीं बहुत ही ज्यादा....सच....हाँ दोस्तों मैं बिलकुल सच ही कह रहा हूँ.....सिर्फ इक बार आजमा कर देखें ना....बार-बार आजमाने को जी चाहेगा...सच....सच...सच.....हाँ सच.....!!!!
................बाकी मौत का तो एक दिन मुअयन्न है ही......है ना...........????

3 comments:

ghughutibasuti said...

बात तो सही कह रहे हैं। कोशिश करेंगे।
घुघूती बासूती

vicky said...

जिस पर बीतती है वोही जानता है भूतनाथ जी
भूतनाथ जी आपका आलेख देखा..बुरा मत मानना आप लकिन आपने निहायत ही बकवास बातें लिखी है...आपने लेख का पहले para में मौत को समजने के बारे मैं कुछ लिखा है. आप एक बात बातें की आपने आज तक किसी को मरते देखा है. किसी ऐसे आदमी को आप जानते है क्या जिसने मौत को हंसते हंसते गले लगा लिया हो...मुझे लगता है की आपने हाल मैं ही बाबु मोशे वाली फिल्म आनंद देखि है...आप जो बाषण झार रहे है वो फिल्म का लगता है....मौत पर ऊ बाषण देना साधू महात्माओं का काम है....उन्ही को गीता का सार बताने दीं आप...वैसे गीता का बाषण देने वाहून की भी मौत के बारे मैं सोचकर कापने लगते है...भगवन न करे के आप के किसी परिचीत को उस स्टेज मैं दीखने का मौका आपको मिले....अगर कभी मिला तो मरने वाले के हालत देखकर आपको आपकी बेबसी पर तरस न आया तो कहना आप......आपने आपने दुसरे उसे मैं बताया है की सब इंसान एक जैसे है....इसलिए सबकी मौत भी एक जैसे है....आप एक बात बताओ....आप बूरा मत मानना....लकिन आप मरोगे तो कितने लोगो को पता चलेगे की भूतनाथ मर गया है.....क्या आप हंसते हंसते मर सकोगे.....सुनो यार...आदमी आपने कर्मों से बार या महान बनता है....जो जीते जी एक साहर मैं भी नाम न कम सका....आप उसके बारे मैं कैसे सोचते हो की उसके मरने पर उसको कोई सम्मान मिलेगा या उसको कोई याद करेगा.....भूतनाथ जी आपने जेड़ गुड्डी के बारे मैं लिखा है....माफ़ करना...लकिन आपकी औकात नहीं है जेड़ गुड्डी के बारे मैं कुछ लिखने की.....जेड़ गुड्डी ने आपने मरने को आपने बैटन के लिए बीचा है...वो चाहकर भी रोटी नहीं...मीडिया के सामने आकर हंसते हंसते आपनी मौत की मार्केटिंग कर रही है....उसकी हिम्मत को सलाम करें आप.....बाशन मत दें आप....आप कहते है की जेड़ गुड्डी बखरे परे है.....आप एक khoj कर बता दे...यहाँ आपको यह भी बताता चलूँ की जेड़ इंग्लैंड की बहूत बरी अबिनेत्री रही है....वो आप जैसे नहीं है.....पुरे वर्ल्ड मैं लोग उसकी hemmat की तारीफ कर रहे है....और जो सुख दुःख पर बाषण दे रहे है न आप....आप याद रखे...आप भारत मैं रहते है....जहा एक बेगा ज़मीन के लिए भाई भाई का ही गला काट डेथ है.....भाई मरता भी रहे तो भी उसकी मदद नहीं करता.....भारत मैं दुनिया के सबसे जयादा गरीब और बीख्मंगे है... आपने कितने ज़रुरत मंदों की मदद की है....कितने मरतो को बचाया है....कितने बीख्मंगो का जीवन सवार है....ज़रा बताना....उसके बात ये बाषण पेलना आप.....बचूं की जैसे बातें सस्ती लोकप्रियता बटोरने या दूसरों को गलत साबित करने के लिए लिखना बंद करे आप प्लेस........

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

..............दोस्तों , सबसे पहले जैक ट्वीड के उस जज्बे को हमारा सलाम.......और सच कहूँ तो इन सब घटनाओं से हममें मानवता के प्रति फिर से विश्वास पैदा हो जाता है....वो vishvas जो कम-से-कम प्रेम के अर्थों में हममे से पूरी तरह छीज चुका है.....और उसकी जगह अब हमेशा लिए एक वितृष्णा हममे जन्म ले चुकी है....दोस्तों.....ट्वीड भाई सचमुच इक मिसाल के रूप में हमारे सामने हैं....और जेड़ गुडी का साहस भी मौत पर उनके अटूट विश्वास को रेखांकित करता करता है.........जब मरना तय हो ही गया........तो रोना काहे का.......हंसते हुए क्यूँ ना मरा जाए....दोस्तों.....मैं कहना तो यही चाहता हूँ कि जब मरना तय है ही तो फिर जीकर ही क्यूँ ना मरा जाए.........आईये ना इसी बात पर हम सब जी लें........सच्चे इंसानों की तरह....जेड़ गुडी जी....ट्वीड जी...आप सबको हमारा बहुत-बहुत-बहुत प्रेम............!!