धर्म जीने देने के लिए है,मिटाने के लिए नहीं......!!
सच कहूँ तो इस्लाम क्या,अपितु सभी धर्मों को आत्म-मंथन की तत्काल ही गहन आवश्यकता है,अगर यह समयानुकूल नहीं हो पाया तो समय इसे ग्रस लेने वाला है,सच कहूँ तो टिप्स मेरे पास भी हैं,मगर इस्लाम के अनुयायी-मौलवी आदि किसी भी टिप्स को स्वीकार करने में अपनी हेठी समझते हैं....दरअसल आदमी का अंहकार कभी आदमी को आदमी नहीं बना रहने देता !!
वह अपने ही दुर्दमनीय हाथों का शिकार हो जाता है,इस्लाम आज एक ऐसे मुकाम पर है,जहां से उसे बदलने की तत्काल आवश्यकता है....जैसा कि हर धर्मों में होता आया है...जैसा कि हम जानते हैं,ये सारी चीज़ें इंसान की ही बनायीं हुई हैं....जैसा कि प्रकृति का अपरिवर्तन-शील नियम ही है...सतत परिवर्तन-शीलता...अगर इंसान इसको ना माने तो पीछे मिट चुकी अनेकानेक चीज़ों और जातियों की तरह उसे भी मिट जाना है......इंसान का असल ध्येय है इंसान होकर जीना....और परमेश्वर की कल्पना उसके इसी ध्येय का एक माध्यम !! परमेश्वर है भी तो आपको उसके एक अंश होकर ही जीना है....और उसके अंश की तरह जीने के लिए अपनी ही रूढ़ पड़ चुकी मान्यताओं की बलिवेदी पर इंसान को मौत अपनाने पर विवश कर देना,यह किसी भी धर्म का ना तो कभी उद्देश्य था...और ना कभी हो भी सकता है....अल्लाह हो या भगवान्....इंसान के जीवन में इनकी महत्ता इंसान की सोच को अपार विस्तार प्रदान करने की होनी चाहिए....बेशक दुनिया में कईयों तरह के धर्म गढ़ लिए जाएँ....मगर धर्म के पागलपन की जगह इंसान होने का पागलपन,एक सच्चे इंसान होने का पागलपन अगर इंसान पर तारी हो सके...अगर अल्लाह या भगवान् के बन्दे अल्लाह और भगवान् के अन्य बन्दों को हंसा सके....उनका दुःख दूर करने को अपने जीवन का उद्देश्य बना सकें....तब तो इंसान होने का कोई अर्थ है....इंसान होने में कोई गरिमा है....और भगवान या अल्लाह के वजूद की कोई सार्थकता......!!मगर यह क्या कि अल्लाह या भगवान् ने आपको भेजा तो है जीने और दूसरों को जीने देने के लिए....और आप यहाँ आकर जीवन को मेटते ही जा रहे हो आप शब्दों की जुगाली में जीवन की गरिमा को नष्ट किये जा रहे हो.... कोई गेरुआ...कोई हरा झंडा उठाये बस एक दुसरे को भयभीत किये जा रहा है....यह सब क्या है....??....क्या यही है जीवन.....आधी आबादी यानि स्त्री जात को आप उसका यथोचित सम्मान से वंचित ही नहीं कर रहे....बल्कि उसे कदम-कदम पर अपमानित करते उसे मौत सरीखा जीवन जीने पर विवश किये हुए हो....यह सब क्या है....तरह-तरह की थोथी मान्यताओं आड़ लेकर इंसान के जीवन को तरह-तरह से प्रताडित किये जा रहे हो..यह सब क्या है...??...अगर सच में ही तुम सबके जीवन का उद्देश्य प्रेम ही है,तो वह सिर्फ तुम्हारे पुराणों और कुरानों में शब्दों तक ही सीमित है क्या....वह तुम्हारे जीवन में कब तलक उतरेगा....तुम्हारा जीवन कुरानानुकुल-पूरानानुकुल कब तलक संभव होगा....तुम्हारे मौलवी और पंडित कब एक दुसरे से हाथ मिलायेंगे.....??तुम्हारे जीवन में कब मानवता का उजाला होगा....??जिसे तुम वाकई प्रेम कहते हो,प्रेम समझते हो,वह जैसा भी हो,वह कब तुम्हारे जीवन को असीम ब्रहामान्दनीय-ब्रहमांडनीय चेतना से पुलकित करेगा....??तुम कब मनुष्य जीवन में अपने मानव होने का यथेष्ट योगदान दोगे....??......कुरान और पुराण के समुचित अर्थ को कब अकथनीय विस्तार दोगे....??जीवन एक बहता हुआ दरिया है दोस्तों....धरम अगर तरह-तरह के दरियायों के नाम हैं....तो इंसान होना इक विराट समुद्र....अगर तुम यह समुद्र हो सको तो सारे धरम तुम्हारे भीतर ही सिमट जायेंगे....और अगर यूँ ही दरिया की तरह उफनते रहे तो समूची मनुष्यता तुम्हारी हिंसा की बाढ़ में विनष्ट हो जायेगी....तुम्हें क्या होना है....यह अब तुम्ही तय करो....ओ मनुष्यों.....यह बात इक भूत तुम्हें तार-तार रोता हुआ बोल रहा रहा है....बोले ही जा रहा है....बोलता ही रहेगा....!!!!
7 comments:
भूतनाथ जी बढिया आलेख लिखा है।बधाई।
वैसे आप हैं तो भूत लेकिन बात आपने वर्तमान और भविष्य की की है और बिलकुल अकाट्य बात कही है...
समस्या किसी भी धर्म में नहीं है, इस पूरे विश्व में तीन सबसे बड़ी समस्या हैं :
पंडित/पुरोहित जी
मौलवी साहब
फादर/पादरी साहब
इनसे अगर बच कर रहे तो फुर्सत कहाँ है किसी और बात के लिए....
ये तीनों अगर अपनी महत्ता नहीं बना कर रखेंगे तो इनके घर का चूल्हा कैसे जलेगा ????
और इसी के जोगाड़ में ये लगे रहते हैं और न जाने कितने बेवकूफ हालाक़ हो जाते और हलाक़ कर जाते हैं...
कभी सुना है किसी पंडित जी, मौलवी साहब या पादरी को धर्म के नाम पर बलि चढ़ते.......सुना है ????????
आपने सही कहा भूत भाई कि,
...सभी धर्मों को आत्म-मंथन की तत्काल ही गहन आवश्यकता है,अगर यह समयानुकूल नहीं हो पाया तो समय इसे ग्रस लेने वाला है,सच कहूँ तो टिप्स मेरे पास भी हैं....
मैं आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि आत्म-मंथन की तत्काल आवश्यकता है... आत्म मंथन के लिए पहले हमें यह देखना होगा कि हमारे स्रोत अर्थात वेदों, पुराणों और बाइबल और कुर'आन क्या कहते हैं....
वो लोग जो ये कहते है कि वेद या कुर'आन की बातें अब नहीं चल सकती, वो इसलिए कहते हैं क्यूंकि उन्होंने इन किताबों (ईश्वरीय किताबों) का वास्तव में कभी अध्ययन किया ही नहीं....और चल दिए उनमें मीन मेख निकलने....वे दरअसल मीन मेख इसलिए निकलते हैं क्यूंकि वे उनके चन्द उन अनुनाईयों को देखते हैं जो समाज की काली भेंडे हैं...अर्थात गलत लोग.... हमें यह कहने से पहले कि ये गलत है उससे पहले बिना किसी पूर्वाग्रह से उनका अध्ययन करना चाहिए.....
आत्म-मंथन तो तभी हो सकेगा भाई जब आप उनका अध्ययन करोगे...बिना अध्ययन के आप किस बातों पर आत्म-मंथन करोगे.... आत्म मंथन स्वतंत्र होकर नहीं किया जा सकता... उसके लिए हमें उन सभी स्रोत अर्थात वेदों, पुराणों और बाइबल और कुर'आन क्या कहते हैं....
आगे आपने कहा
",इस्लाम आज एक ऐसे मुकाम पर है,जहां से उसे बदलने की तत्काल आवश्यकता है...."
आपसे एक मात्र सवाल कि इस्लाम या कुर'आन में कोई एक ऐसी बात या तत्व बता दीजिये जो गलत हों....कोई एक बात
आगे आपने कहा
...जैसा कि हम जानते हैं,ये सारी चीज़ें इंसान की ही बनायीं हुई हैं.
नहीं भाई ऐसा नहीं है....सारी चीज़ें इन्सान ने नहीं भाई बल्कि उस सर्व शक्ति संम्पन्न इश्वर ने बनाई है ... ये धरती, सूरज चाँद ये आसमान तारे, पेड़-पौधे ये सब इन्सान ने नहीं बनाये इश्वर के बनाये हुए हैं और उन सभी को देख हम को यह एहसास होता है कि हाँ, वही एक शक्ति है जिसने यह बनाया है जो सर्वे सर्वा है....
हाँ, हम इंसानों ने ईश्वर के वास्तविक वजूद को समझे बिना उनके फोटो, बुत, मूर्ति का रूप दे दिया.... जबकि प्रमाणिक स्रोतों में साफ़ तौर पे लिखा है कि
"न तस्य प्रतिमा अस्ति"
उसकी अर्थात ईश्वर की कोई प्रतिमा (कोई बुत, कोई फोटो, कोई पिक्चर, कोई मूर्ति) नहीं हो सकती...
आपने कहा
".इंसान का असल ध्येय है इंसान होकर जीना"
मेरा मानना है कि इन्सान को केवल इंसान होना ही काफ़ी नहीं है क्यूंकि वह पैदा होते ही एक इन्सान है और मरते दम तक एक इन्सान ही रहेगा...इन्सान को इन्सान की तरह जीने के लिए हम इंसान को यह जानना बहुत ज़रूरी है हम इंसान को बनाने वाले अर्थात ईश्वर ने हमें बनाया क्यूँ है....देखिये भूत भाई... ये ज़िन्दगी ईश्वर ने एक इम्तिहान की तरह दी है... इंसान की ये ज़िन्दगी ईश्वर की नज़र में एक इम्तिहान है वह देख रहा है कि कौन इंसान है जो उसके बनाने वाले अर्थात ईश्वर की बातें मान रहा है कि नहीं, नेकियाँ कर रहा है कि नहीं....उसको याद करता है कि नहीं ....
ईश्वर ने मानव को पैदा किया तो ऐसा नहीं है कि उसने उनका मार्गदर्शन न किया जिस प्रकार कोई कम्पनी जब कोई सामान तैयार करती हैं तो उसके प्रयोग का नियम भी बताती है उसी प्रकार ईश्वर ने मानव का संसार में बसाया तो अपने बसाने के उद्देश्य ने अवगत करने के लिए हर युग में मानव ही में से कुछ पवित्र लोगों का चयन किया ताकि वह मानव मार्गदर्शन कर सकें .. हर युग में कोई ना कोई किताब भी दी.. अगर हम उन सभी किताबो (अर्थात वेद, पुराण, बाइबल) का अध्ययन करें तो हमें यह पता चल जायेगा कि इन सबकी कड़ी में आखिरी और सम्पूर्ण किताब कुर'आन है (यह बात आपको वेदों, बाइबल आदि को पढ़ कर पता चल जायेगी) और अगर हम उन सभी किताबो (अर्थात वेद, पुराण, बाइबल) और बौद्ध और जैन आदि का अध्ययन करेंगे कि सभी धर्म की किताबो में साफ़ तौर पर लिखा है कि ईश्वर का सन्देश पहुँचने के लिए उसने अनेक संदेष्टा भेजे जिनकी आखिरी कड़ी हज़रत मुहम्मद (ईश्वर की उन पर शांति हो) हैं....आप स्वयं पढ़े और जाने...
mr.स्वच्छ हिन्दुस्तान जी,
मुझे सिर्फ इतना ही बताइए क्या बम्बई में इतने लोगों की हत्या आपके कसाब भाई और उनके साथियों ने जो किये हैं क्या वो कुरान या इस्लाम के हिसाब से सही हुआ है ?
आप स्वच्छ हिन्दुस्तान की कल्पना क्या सारे हिन्दुओं को मार कर या सबको इस्लाम में परिवर्तित कर के कर रहे हैं?
क्या इस्लाम में अपने काम से काम रखो नाम को कोई बात कही गई है ?
क्या इस्लाम में अपनी ही नारियों के साथ दुर्व्योहार मत करो लिखा हुआ है ?
क्यों बम्बई की ९५% तस्कर मुसलमान है क्या इस्लाम इसकी इज्जाज़त देता है ? और क्या वो सारे तस्कर मुसलमान है... अगर नहीं तो आप इसके लिए क्या कर रहे हैं ?
क्या daud इब्राहीम मुसलमान है ?
क्या ओसामा बिन लादेन अच्छा मुसलमान है ?
क्या आप तालेबान के पक्ष में हैं ?
किसे परवाह है कि क़यामत का दिन कब आएगा जब अब तक नहीं आया तो कब आएगा और आएगा भी तो पहले उनका हिसाब होगा जो हमसे पहले गए हैं ....स्वच्छ साहब हमारी बारी तो बहुत बाद में आएगी...
हम आज और कल जीने कि बात कर रहे हैं.... हर दिन जीने कि बात ....और आप हर बात को कुरान और वेद से ना जोड़ा करें..
हम जान गए हैं कि आपने बहुत ज्यादा अध्ययन किया है लेकिन शायद हम उतना अध्ययन नहीं करना चाहते हैं..
अब आपकी बारी है हमारी बात समझने की, आप धर्म पुस्तकों की गूढ़ता से बाहर निकालिए और रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से जुड़िये जहाँ इस्लाम के नाम पर मानव बम भेज दिए जाते हैं वो भी 'हूरों' के लिए, दुनिया में आपको तकलीफ हो जाती है हूरों को देख कर उन्ही हूरों के लिए आप दूसरों की जाँ लेते हैं शर्म आनी चाहिए आप लोगों को ऐसी दोगली बातों को मानने के लिए...
क्या इस्लाम सिर्फ पायजामा एडी के नीचे आ जाने से या दाढी कटवा लेने से बेईज्ज़त हो जाता है..
क्या इस्लाम के नाम पर प्रगति को रोकना बुरा नहीं है और उस पर क़यामत ये के उन्ही ताकिनिकियो का इस्तेमाल करना तबाही मचाने के लिए दोगला पाना नहीं है...
कसाब की फोटो देखिये कितना मॉडर्न कपडे पहने हुए है. मॉडर्न मशीन सब कुछ माडर्न लेकिन तालेबान अभी भी एडी के नीचे पायजामा आने पर कोडे लगाने को बैठा हुआ है..
अरे कुछ तो दीमाग लगाओ यार...हर वक्त इस्लाम का पुन्गा लेकर बैठे रहते हो...
क्यों ??
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