Tuesday, September 2, 2008

राइट टू फन

विष्णु राजगढ़िया
आजकल नये-नये अधिकारों का जमाना है. हर इंडियन सिटिजन को आज राइट टू इनफोरमेषन मिला हुआ है. राइट टू फूड के कंसेप्ट ने स्कूल गोइंग छोटे बच्चों को मीड-डे मिल दिलाया है. राइट टू वर्क के एक शुरूआती एक्सपेरिमेंट के बतौर नरेगा कार्यक्रम चल रहा है. राइट टू हेल्थ की बात हो रही है और इस दिषा में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिषन को एक इंपोर्टेंट कदम माना जा रहा है. राइट टू एडुकेषन और राइट टू जस्टिस की भी बात जोरों से चल रही है. ऐसे दौर में सड़क किनारे बड़ा-सा एक होर्डिंग कुछ अलग ही कहानी सुनाता मिला. लड़कियों के लिए बने किसी टू-व्हीलर के इस विज्ञापन में एक मासूम-सा सवाल पूछा गया था- `व्हाई ऑल फन फोर ब्वायज ओनली?` इसमें एक अल्हड़ किषोरी यह दावा करती नजर आ रही थी कि हमें भी मौज-मस्ती का अधिकार मिले, यानी राइट टू फन. वाह, क्या आइडिया है.
वह होर्डिंग किसी टू-व्हीलर की बिक्री बढ़ाने का एडवरटाइजमेंट मात्र ही था. लेकिन उसकी भावना आज देष और दुनिया में बह रही नयी हवा की खबर सुना रही थी. राइट टू फन के रूप में यह राइट टू इक्वलिटी की बात है. लड़कियों को भी लड़कों जितनी स्वतंत्रता मिले. जेंडर का कोई दुराग्रह न रहे. विज्ञापन चाहता है कि लड़कियां भी अब सड़कों पर मजे से टू-व्हीलर उड़ाती चलें और उस कंपनी की बिक्री बढ़े. लड़कियों के लिए टू-वहीलर की राइडिंग सिर्फ ट्रेवलिंग की जरूरत तक सीमित न रहे बल्कि मौज-मस्ती का भी पार्ट बने.
क्या वाकई लड़कियों के लिए राइट टू फन का स्लोगन जरूरी है? क्या किसी ने उन्हें सड़कों पर बाइक या मोटर चलाने से रोका है? इस सवाल के जवाब में हम कह सकते हैं कि इस मेल-डोमिनेटेड सोसाइटी ने फिमेल को सड़कों पर आने और मोटर चलाने दिया ही कब था जो उन्हें रोका जाता? आज भी छोटे शहरों, कस्बों में लड़कियां सड़कों पर साइकिल पर पैंडल मारती हैं तो मानो पुरूषों की आंखों में तीर की तरह चुभती हैं. फिर छोटे शहर हों या महानगर, हर जगह सड़कों पर वाहन चलाती वुमेन को कॉमन प्राबलम से गुजरना पड़ता है. कुछ मनचले जिनमें उम्रदराज लोग भी शामिल होते हैं, जान-बूझकर उनके रास्ते में बाधा डालते हैं, बगल से गुजरने या पास देने या पास मांगने के दौरान टीजिंग हरकतें करते हैं. सड़क पर बाइक या कार चलाते हुए कोई वुमेन गुजरती है तो अगल-बगल खड़े लोग घूर-घूर कर देखते हैं, कमेंट्स करते हैं.
लड़कियां सड़क पर ड्राइविंग करना चाहें तो गार्जियन कहते हैं कि तुम ठीक से नहीं चला पाओगी, एक्सीडेंट हो जायेगा. गार्जियन की चिंता जेनुइन है. लेकिन उनके लिए राहत की एक नयी बात सामने आयी है. देष की एक कार बनाने वाली फेमस कंपनी ने पिछले दिनों कार-ड्राइविंग का एक सर्वे कराया. लगभग पांच हजार लोगों का टेस्ट लिया. इनमें लगभग आधी महिलाएं थी.ं पता चला कि लगभग पंद्रह प्रतिषत महिलाओं को अच्छी ड्राइविंग के लिए 80 प्रेसेंट से ज्यादा नंबर मिले. जबकि 80 प्रेसेंट पाने वाले पुरूषों की संख्या कम थी. साबित हुआ कि जिन महिलाओं को सड़क पर उतर कर ड्राइविंग का मौका मिला, उन्होंने पुरूषों से अच्छा परफोर्म करके दिखाया. इस सर्वे में पार्टिसिपेट करने वाली महिलाओं ने पूरी दुनिया की औरतों के लिए एक बड़ी जीत हासिल की. अब कौन कहेगा कि औरतें अपनी शारीरिक स्थितियों या सीमाओं की वजह से पुरूषों के मुकाबले खराब ड्राइविंग करती हैं. इस तरह, कार-ड्राइविंग पर अपनी इस जीत के जरिये औरतों ने एक और मोरचे पर मर्दों को पछाड़कर राइट टू इक्वलिटी की दिषा में अपनी हैसियत मजबूत की है. अब अगर टू-व्हीलर के बहाने लड़कियां राइट टू फन के बारे में सोचना शुरू करें तो हो सकता है कि उनके लिए भी उमंगों का एक नया दौर शुरू हो. यानी उन्हें भी मिले उमंगों का अधिकार. (आई- नेक्स्ट से साभार)

6 comments:

प्रमोद said...

नदीम भाई-
सारे राईट तो ठीक हैं,
पर है एक हमारा राईट,
'वोटिंग राईट',
वैधानिक रूप से हमारा,
होता है पर इस से-
नेताओं का वारा-न्यारा.

नदीम अख़्तर said...

असल में भारत में इतनी अनपढ़ता है कि यहाँ किसी लड़की को बाइक चलता देख कुछ तथाकथित मर्द अपने अन्दर छुपी मर्दानगी दिखाने लगते हैं. इसमें सबसे ज़्यादा दोष अगर किसी का है, तो वो है उन संगठनो का जो वैलेनटाइन-डे और फ्रेंडशिप-डे वगैरह के विरोध में पार्कों में उत्पात मचाने के लिए निकल पड़ते हैं. असल में इन लोगों को हमारी मां-बहनों की इज्ज़त नीलाम करनी होती है, जिसके चलते ये लोग सरेआम पार्क या सार्वजनिक जगहों पर धावा बोल कर व्यक्ति की स्वंत्रता का अपहरण करते हैं. ऐसे लोगों को अगर वास्तव में महिलाओं-लड़कियों की इज्ज़त का ख़याल है, तो ये लोग सड़क के मनचलों और बुढापे की दहलीज़ पर कदम रख रहे मूर्ख तथा संस्कार से कंगाल लोगों की बेतरह धुनाई क्यों नहीं करते? उस वक्त कहाँ घुस जाती है, बजरंग दल, जमात-ऐ-इस्लामी, विश्व हिंदू परिषद् आदि संगठनो की 'मर्द रोगनी'. असल में इन सभी संगठनों को सिर्फ़ आसान टारगेट चाहिए, जिससे इन संगठनों से जुड़े कथित मर्द अपनी मां-बहनों की इज्ज़त नीलाम कर सकें. इनका ध्येय कभी भी समाज को सभ्य या सुशिक्षित अथवा संस्कारवान बनाना नहीं है, ये कायर लोग हैं जिनका मूल मकसद है भोग. मैं विष्णु जी की इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि सड़क पर बाइक या कार चलाते हुए कोई औरत या लड़की गुजरती है तो अगल-बगल खड़े लोग घूर-घूर कर देखते हैं, कमेंट्स करते हैं. ऐसे लोगों को पकड़ कर सड़क पर ही मुर्गा बना देना चाहिए और हर आती जाती लड़कियों से इन पर थुकवाना चाहिए, तभी सभ्य होगा हमारा समाज क्योंकि भारत और भारत के अनपढ़ लोगों को प्यार की भाषा समझाना सबसे बड़ी मूर्खता है.

Anonymous said...

इस ब्लॉग पर विष्णु जी का लेख एक सुखद अनुभूति है. उन्होंने जो मुद्दा उठाया है वह भी गंभीर है. पर संसद मे अबतक महिला आरक्षण बिल पास नही हो सका है इसे भी याद रखना होगा.

मोनिका गुप्ता said...

विष्णु जी आपने मुद्दा तो बहुत प्रासंगिक उठाया है और लेख के माध्यम से अपनी बात को बखूबी स्थापित भी किया है. लेकिन अफ़सोस की बात तो यह है की आपकी तरह सोच रखने वाले लोग ही कितने है इस समाज में. लोग बातें तो बड़ी बड़ी करते है लेकिन जब अपनी बेटियों, बहनों और पत्नियों को स्वतंत्रता देने की बात आती है तो उनका रवैया भी उन लोगो से कुछ अलग नही होता जो लड़कियों के विकास के मार्ग में तरह तरह की अटकले लगाते है . इसलिए यदि सही मायने में लड़कियों का विकास करना है तो पहले इस समाज के लोगो को अपनी कथनी और करनी के अन्तर को समाप्त करना होगा.

sunil choudhary said...

आप लड़कों के लिए योग्य होने की शर्त रखते हो . जॉब में होना चाहिए . अच्छी पगार वाला होना चाहिये . क्या कोई किसी जोब्लेस यूथ से शादी कर सकती है . नही न. तो मोनिका जी फिर क्या ग़लत है कि सुपर वूमन कोई चाहता हो.इसमे हर्ज़ ही क्या है, सारी योग्यताएं लड़कों में ही क्यों देखी जाए. लड़कियों में क्यों नही?

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

monikaa ji,aurton ki barabari ki baat karnaa aur baat hai...use apni zindgi ke vyavahaar men shaamil karnaa aur baat ....hamame se kisi ki bhi bahan rah me kisi se baate karti nazar aa jaaye... hamaari asliyat turat baahar aa jaati hai ...hamame se kisi ki biwi oonche swar me aawaaz nikaale hamaara pauroosh jaise jaag jaataa hai... lekhakho ki baato ka bharosaa kyaa... kisi ke bhi ghar me jhaakiye ...wahi sab kuch hai.. kahin daba-dhanka.. kahin ooghdra- nanga.... sach sirf-v-sirf yahi hai ki aurat ko hamne vastoo maanaa hai ...khud aurat ne bhi apne-aap ko waisaa hi banaa liyaa hai ...sundar..saaf-soothri...goyaa ki sajakar rakhne laayak ..ya pakakar khane laayak ....!!mai hairan hu magar mai kya kar saktaa hu,kyunki mai to bhoot hun !!!