और भी तनहा कर जाती है
तनहा-तनहा बहती रात ....
चुपके-चुपके पैर दबाकर
जाती है ये आती रात......
अक्सर आकर खा जाती
है ख्वाबों को भी काली रात
मुझे सुलाती प्यारी रात....
प्यारा सपना आते ही दूर
चली जाती है सारी रात....
आँखों को मूँद लेता हूँ तो
आखों में भर जाती रात....
शाम गए जब घर लौटूं तो
जख्मों को सहलाती रात....
मुझसे तो अक्सर ही प्यारी
बातें करती प्यारी रात....
कुछ मुझसे सुनती है और
5 comments:
ati sundar!
वाह जनाब वाह...शाम गए जब घर लौटूं तो....भाई मान गए आप के हुनर को....बेहतरीन रचना...लिखते रहें...
नीरज
रात को यह लड़की कहाँ जा रही है भूत भाई.
कविता बहुत अच्छी लगी.
khoob kaha aapne bhootnath g
likhte rahen....
shubhkamnaen...
khoob kaha aapne bhootnath g
likhte rahen....
shubhkamnaen...
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