Monday, November 10, 2008

मेरी प्यारी-प्यारी रात.....!!



और भी तनहा कर जाती है
तनहा-तनहा बहती रात ....
चुपके-चुपके पैर दबाकर
जाती है ये आती रात......
अक्सर आकर खा जाती
है ख्वाबों को भी काली रात
गम रोये तो आँचल देकर
मुझे सुलाती प्यारी रात....
प्यारा सपना आते ही दूर
चली जाती है सारी रात....
आँखों को मूँद लेता हूँ तो
आखों में भर जाती रात....
शाम गए जब घर लौटूं तो
जख्मों को सहलाती रात....
मुझसे तो अक्सर ही प्यारी
बातें करती प्यारी रात....
कुछ मुझसे सुनती है और
कुछ अपनी भी सुनाती रात.....

5 comments:

Alpana Verma said...

ati sundar!

नीरज गोस्वामी said...

वाह जनाब वाह...शाम गए जब घर लौटूं तो....भाई मान गए आप के हुनर को....बेहतरीन रचना...लिखते रहें...
नीरज

सुनील मंथन शर्मा said...

रात को यह लड़की कहाँ जा रही है भूत भाई.
कविता बहुत अच्छी लगी.

योगेन्द्र मौदगिल said...

khoob kaha aapne bhootnath g
likhte rahen....
shubhkamnaen...

योगेन्द्र मौदगिल said...

khoob kaha aapne bhootnath g
likhte rahen....
shubhkamnaen...